
केंद्र सरकार ने भारत की अदालतों में लंबित लगभग 70 लाख मुकदमों के बोझ को कम करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. कानून और न्याय मंत्रालय ने एक नई नीति शुरू की है, जिसका नाम है ‘भारत सरकार द्वारा मुकदमेबाजी के कुशल और प्रभावी प्रबंधन के लिए निर्देश’. इसे आसान शब्दों में राष्ट्रीय मुकदमेबाजी नीति भी कहा जा रहा है. इस नीति का मकसद है कि लोगों को जल्दी और आसानी से न्याय मिले, अनावश्यक मुकदमे कम हों, और सरकारी विभागों के बीच बेहतर तालमेल हो.
10 जुलाई 2025 को कानून मंत्रालय ने सभी केंद्रीय मंत्रालयों और उनके अधीन काम करने वाले विभागों, स्वायत्त संस्थाओं, और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) के लिए एक दस्तावेज जारी किया. इस दस्तावेज को ऑफिस मेमोरेंडम (OM) कहा जाता है, जिसमें मुकदमों को बेहतर ढंग से संभालने के लिए कई नियम और दिशानिर्देश दिए गए हैं. इस नीति का मुख्य लक्ष्य है:
-अनावश्यक मुकदमों को रोकना.
- अदालतों में लंबित मामलों की संख्या कम करना.
- सरकारी विभागों के बीच तालमेल बढ़ाना.
- लोगों को तेजी से और आसानी से न्याय दिलाना.
रिपोर्ट्स के अनुसार, केंद्र सरकार देश भर की अलग-अलग अदालतों में करीब 7 लाख मुकदमों में शामिल है. इनमें से 1.9 लाख मामले सिर्फ वित्त मंत्रालय से जुड़े हैं. यह नीति इन मामलों को कम करने और नागरिकों के लिए जीवन आसान बनाने में मदद करेगी.
इस नीति में कई ऐसे नियम बनाए गए हैं जो मुकदमों को तेजी से निपटाने और प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करेंगे. आइए, इनके बारे में आसान शब्दों में समझते हैं:
1. मामलों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटना:
हर मंत्रालय में एक कानूनी सेल बनाई जाएगी. यह सेल सभी मुकदमों को तीन श्रेणियों में बांटेगी:
- अति संवेदनशील: जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, नीति, या बड़े पैसे से जुड़े मामले. इनकी समीक्षा बड़े अधिकारी (सचिव स्तर) करेंगे.
- संवेदनशील: जो थोड़े कम गंभीर हों.
- नियमित: छोटे-मोटे मामले.
2. सुप्रीम कोर्ट में अपील पर रोक:
सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) केवल तभी दायर की जाएगी, जब मामला बहुत जरूरी हो, जैसे नीति से जुड़ा हो या सामाजिक न्याय का सवाल हो. छोटे-मोटे मामलों में अनावश्यक अपील नहीं की जाएगी.
3. वकीलों का चयन और जांच:
सरकारी वकीलों को उनकी योग्यता और अनुभव के आधार पर चुना जाएगा. हर साल उनके काम की समीक्षा होगी. अगर उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा, तो उनकी सेवाएं खत्म की जा सकती हैं.
4. मध्यस्थता और पंचाट को बढ़ावा:
अदालत के बाहर मध्यस्थता (मेडिएशन) और पंचाट (आर्बिट्रेशन) के जरिए विवाद सुलझाने को प्राथमिकता दी जाएगी. सरकारी अनुबंधों में पंचाट से जुड़े नियम शामिल किए जाएंगे.
5. कानूनी सेल और प्रशिक्षण:
हर मंत्रालय में एक नोडल अधिकारी नियुक्त होगा, जिसके पास कानून की डिग्री (LLB) होगी. इसके अलावा, युवा पेशेवरों को अनुबंध पर काम पर रखा जाएगा ताकि मुकदमों को बेहतर ढंग से संभाला जा सके.
6. LIMBS पोर्टल का उपयोग:
लिगल इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट एंड ब्रीफिंग सिस्टम (LIMBS) एक ऑनलाइन पोर्टल है, जिसका इस्तेमाल मुकदमों की प्रगति को ट्रैक करने और वकीलों को शुल्क देने के लिए किया जाएगा. इसे नियमित रूप से अपडेट करना अनिवार्य होगा.
7. नई नीतियों की जांच:
सरकार नई नीतियां बनाते समय यह देखेगी कि उनसे भविष्य में मुकदमे न बढ़ें.
8. शिकायत निवारण तंत्र:
सरकारी कर्मचारियों की शिकायतों को सुलझाने के लिए एक स्वतंत्र और वरिष्ठ प्राधिकरण बनाया जाएगा.
9. मामलों को एक साथ निपटाना:
अगर कई मुकदमे एक ही तरह के कानूनी सवाल से जुड़े हैं, तो उन्हें एक जगह इकट्ठा करके एक साथ निपटाया जाएगा.
10. मास्टर सर्कुलर:
सभी नियमों और दिशानिर्देशों को एक दस्तावेज में संकलित किया जाएगा, जिसे मंत्रालयों की वेबसाइट पर डाला जाएगा ताकि लोग आसानी से समझ सकें.
भारत में इस समय 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमे अदालतों में लंबित हैं. इनमें से ज्यादातर मामले सरकार से जुड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट में 73% मामले सरकार से संबंधित हैं. वित्त मंत्रालय अकेले 1.9 लाख मामलों में पक्षकार है. कई बार सरकारी विभाग अनावश्यक अपील दायर करते हैं, जिससे अदालतों पर बोझ बढ़ता है और लोगों को न्याय मिलने में देरी होती है.
यह नीति इसलिए जरूरी है क्योंकि:
- यह अनावश्यक मुकदमों को रोकेगी.
- लोगों को जल्दी न्याय मिलेगा.
- सरकारी विभागों के बीच तालमेल बढ़ेगा.
- मध्यस्थता और पंचाट जैसे तरीकों से समय और पैसे की बचत होगी.
फायदों की बात करें, तो इसकी मदद से लोगों को जल्दी और आसानी से न्याय मिलेगा, जिससे उनका जीवन आसान होगा. वहीं, सरकारी विभागों में एकरूपता आएगी और नीतियों में विरोधाभास कम होगा. साथ ही, मध्यस्थता और पंचाट से मुकदमों को सुलझाने में कम समय और पैसा लगेगा.