
भारत के 'लौह पुरुष' (Iron Man of India) सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रमुख हस्तियों में से एक माना जाता है. राष्ट्र को एक साथ लाने में उनका बहुत बड़ा योगदान था. आज 31 अक्टूबर को भारत सरदार वल्लभ भाई पटेल की 147वीं जयंती मना रहा है.
अखंड भारत बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करने के लिए, सरकार ने 2014 में वल्लभभाई पटेल की जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाने का फैसला किया. राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत एक संयुक्त देश की स्थापना के लिए सरदार पटेल ने जो काम किया था उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है.
बारडोली सत्याग्रह के बाद मिली 'सरदार' की उपाधि
बहुत ही कम लोग जानते होंगे की पटेल ने 22 साल की उम्र में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की. वकील बनने की ख्वाहिश रखते हुए, उन्होंने अन्य वकीलों से किताबें उधार लेकर पढ़ाई की. उन्होंने दो साल से भी कम समय में कानून की परीक्षा पास कर ली और बाद में वह देश के टॉप बैरिस्टर्स में से एक थे.
पटेल को शुरू में राजनीति में बहुत कम दिलचस्पी थी. हालांकि, 1917 में गांधी जी से मिलने के बाद, उन्होंने अपने काम से इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए. कुछ ही वर्षों के भीतर, वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के प्रभावशाली पात्रों में से एक बन गए.
1928 में गुजरात में बारडोली सत्याग्रह हुआ. इसे ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष का एक महत्वपूर्ण घटक माना जाता है. बाद में, इस आंदोलन का नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया, और यह आंदोलन सफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें "सरदार" की उपाधि मिली.
कहलाते हैं लौह पुरुष
सरदार पटेल ने आजादी के बाद देश को एक करने की जिम्मेदारी उठायी. उन्होंने भारत की 550 से अधिक रियासतों का दौरा करके, देश के एकीकरण किया. पटेल के दृढ़ विश्वास, महिला सशक्तिकरण पर उनके के आशावादी दृष्टिकोण, और उनकी सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें 'भारत का लौह पुरुष' कहा गया.
देश की आजादी के बाद पटेल भारत के पहले उप प्रधानमंत्री थे. उन्हें देश की स्वतंत्रता की पहली वर्षगांठ पर भारत के गृह मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए भी चुना गया था. उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक देश की सेवा की और वह भी बिना किसी स्वार्थ के.
31 अक्टूबर 2018 को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नर्मदा नदी के तट पर उनके सम्मान में Statue of Unity का उद्घाटन किया. इस प्रतिमा को लगभग 2,989 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया. 182 मीटर ऊंची यह प्रतिमा वर्तमान में दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है.