
पाकिस्तान के साथ बढ़ते सैन्य तनाव के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को ब्रह्मोस सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल (BrahMos Missile) प्रोडक्शन यूनिट का वर्चुअल उद्घाटन किया. लखनऊ में उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे में बनी इस सुविधा को सालाना 80 से 100 मिसाइलों के निर्माण के लिए डिज़ाइन किया गया है.
ब्रह्मोस मिसाइल भारत के लिए कितनी अहम है, यह ऑपरेशन सिंदूर में साबित हो गया. क्योंकि जब बात हवाई युद्ध की आई तो पाकिस्तान ब्रह्मोस को इंटरसेप्ट नहीं कर पाया. ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि भारत का ब्रह्मास्त्र, 'ब्रह्मोस' ऐसी कौनसी खूबी रखता है कि दुश्मन उसे रोक नहीं पाता? आइए जानते हैं कि इस मिसाइल की क्या विशेषताएं और युद्ध की स्थिति में यह दुश्मनों के लिए क्यों घातक साबित हो सकता है.
भारत-रूस की दोस्ती का प्रमाण
ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस के संयुक्त उद्यम का परिणाम है. यह डिफेंस क्षेत्र में भारत-रूस की दोस्ती का प्रमाण भी है. इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मॉस्कवा नदी से प्रेरित है. इसलिए इसे ब्रह्म + मॉस यानी ब्रह्मोस कहा जाता है.
ब्रह्मोस को भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और रूस की NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया ने मिलकर विकसित किया है. जो रूसी पी-800 ओंकिस मिसाइल की तकनीक पर आधारित है. ब्रह्मोस दुनिया की सबसे तेज और घातक सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइलों में से एक है.
क्यों खास है ब्रह्मोस
अब एक नज़र इसकी खासियत पर डाल लेते हैं. ब्रह्मोस की गति मैक 2.8 से 3.0 (लगभग 3700-6126 किमी/घंटा) है. जो ध्वनि की गति से तीन गुना अधिक है. इसकी मारक क्षमता शुरुआत में 290 किमी थी, लेकिन 2016 में भारत के मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजिम (MTCR) में शामिल होने के बाद इसे बढ़ाकर 450-800 किमी कर दिया गया. यह 200-300 किलोग्राम का वारहेड ले जा सकती है, जो पारंपरिक और परमाणु दोनों तरह के हमलों के लिए सक्षम है.
इस मिसाइल का वजन लगभग 3 टन और लंबाई 8.4 मीटर है. यह उन्नत नौवहन और मार्गदर्शन प्रणाली से लैस है जो इसे कुछ मीटर की सटीकता के साथ लक्ष्य भेदने में सक्षम बनाती है. यह मिसाइल जमीन, समुद्र, हवा और पनडुब्बी से लॉन्च की जा सकती है. ब्रह्मोस 'फायर एंड फॉरगेट' गाइडेंस सिस्टम पर चलने वाली मिसाइल है यानी दुश्मन पर निशाना लॉक करने के बाद इसे सिर्फ शूट करना होता है.
क्यों है ब्रह्मोस खतरनाक?
ब्रह्मोस की सुपरसॉनिक गति और स्टील्थ तकनीक इसे दुश्मन के रडार और वायु रक्षा प्रणालियों के लिए लगभग अजेय बनाती है. यह कम ऊंचाई पर उड़ती है, जिसकी वजह से दुश्मन के लिए इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है. "फायर एंड फॉरगेट" के सिद्धांत पर काम करने वाली इस मिसाइल को जब दुश्मन इंटरसेप्ट नहीं कर पाता तो यह बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के दुश्मन को तबाह करने का माद्दा रखती है.
ब्रह्मोस की तुलना अमेरिका की टॉमहॉक मिसाइल से की जाती है, लेकिन यह उससे दोगुनी तेज और ज्यादा सटीक है. यह गतिशील और स्थिर दोनों लक्ष्यों को भेद सकती है, जिससे यह सर्जिकल स्ट्राइक और रणनीतिक हमलों के लिए आदर्श है. इन्हीं सब चीज़ों की वजह से ब्रह्मोस भारत की डिफेंस रणनीति का अहम हिस्सा है. इसकी लंबी रेंज और गति इसे पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के गहरे क्षेत्रों में लक्ष्य भेदने में सक्षम बनाती है. हाल के ट्रायल्स ने इसकी क्षमता को और साबित किया है. ब्रह्मोस का एक नया वर्जन, ब्रह्मोस-II मैक 7-8 की गति के साथ भविष्य में और घातक होगा.