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सपा ने पुराने प्रत्याशी का काटा टिकट, इंग्लैंड रिटर्न गैंगस्टर की बेटी लड़ेंगी चुनाव

रुपाली दीक्षित बहुबली अशोक दिक्षित की बेटी हैं. अशोक दीक्षित जेल में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं. वहीं उनकी बेटी रुपाली राजनीति में हैं. रुपाली ने हाल ही में समाजवादी पार्टी जॉइन की है.

रूपाली दीक्षित रूपाली दीक्षित
हाइलाइट्स
  • रूपाली ने इंग्लैंड से की है पढ़ाई

  • महिला विकास पर है मेन फोकस

यूपी में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. अब चुनाव की लिस्ट भी जारी हो चुकी है. हर पार्टी ने अपने उम्मीदवारों वाले पत्ते खोल दिए हैं. ऐसे में कई तरह के उम्मीदवार इन दिनों सुर्खियां बटोर रहे हैं. आज हम बात कर रहे हैं आगरा की फतेहाबाद सीट से चुनाव लड़ रही रुपाली दीक्षित की.

कौन है रूपाली दीक्षित?
रुपाली दीक्षित बहुबली अशोक दिक्षित की बेटी हैं. अशोक दीक्षित जेल में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं. वहीं उनकी बेटी रुपाली राजनीति में हैं. रुपाली ने हाल ही में समाजवादी पार्टी जॉइन की है, लेकिन इससे पहले वो बीजेपी में थी. मगर 2017 में टिकट नहीं मिल पाने के कारण उन्होंने इस बार समाजवादी पार्टी का हाथ थाम लिया. 

सपा से क्यों मिला रूपाली को टिकट
रुपाली जब समाजवादी सुप्रीमो अखिलेश यादव से जब मिली तो उन्होंने अखिलेश से ये वादा किया कि अगर वो जीत जाती हैं, तो अपने क्षेत्र में हर साल कुछ ना कुछ विकास करेंगी. बस यही बात सुनते ही अखिलेश ने टिकट फाइनल कर दिया. रुपाली बताती हैं कि उन्हें अखिलेश यादव से मिलने के लिए केवल 3 मिनट का समय मिला था, और तीन मिनटों में उन्होंने अखिलेश के सामने खुद को साबित कर दिया था. अखिलेश ने पहले से घोषित उम्मीदवार के टिकट की जगह रूपाली को टिकट दिया.

इंग्लैंड से की है पढ़ाई
रुपाली ने इंग्लैंड में कार्डिफ यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है. इसके अलावा रुपाली ने कई बड़ी कंपनियों में नौकरी भी की है. वो साल 2016 में राजनीति में आईं और 2017 में भाजपा की सदस्यता ली. अशोक दीक्षित के बेटी होने की वजह से भाजपा में शामिल होने पर इनको काफी विरोध भी झेलना पड़ा. 2017 में रुपाली ने बीजेपी से टिकट मांगा, पर टिकट न मिलने पर रुपाली चुनाव नहीं लड़ सकीं. मगर, इस बार सपा ने पहले घोषित प्रत्याशी का टिकट काटकर रूपाली को मैदान में उतारा है. इससे पहले आगरा से राजेश शर्मा को टिकट मिला था. 

महिला विकास पर है मेन फोकस
रुपाली दीक्षित कहती है कि महिलाएं अगर राजनीति में अगर आगे आएगी तो शायद उस परिस्थितियों में महिलाओं के विकास की राह आसान होगी. उन्होंने आगे कहा कि राजनीतिक दलों को ये समझना होगा कि  अगर ये महिला प्रत्याशी हार भी गयी तो उसको दोबारा मौका देना उस पार्टी का कर्तव्य बनता है. प्रत्याशी का कर्तव्य ये है कि वो हारने या जीतने के बाद सिर्फ जनता के साथ रहे, और जनता की सेवा करें.