
क्या आपने कभी सोचा कि हमारे देश की अदालतें, जो न्याय का मंदिर कहलाती हैं, वहां जजों के चाय-कॉफी ब्रेक और बार-बार की छुट्टियां चर्चा का विषय बन सकती हैं? जी हां, सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के ठीक एक दिन बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसा कदम उठाया है, जो सुर्खियों में छा गया है.
13 मई को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी, जो झारखंड हाईकोर्ट में तीन साल तक लटके एक आपराधिक अपील के फैसले से जुड़ा था. इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने नाराजगी जाहिर करते हुए हाईकोर्ट के जजों की कार्यशैली पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "हम इतना पैसा सिस्टम पर खर्च कर रहे हैं, लेकिन आउटपुट क्या है? जजों का परफॉर्मेंस स्केल क्या है? कुछ जज इतनी मेहनत करते हैं कि हमें उन पर गर्व होता है, लेकिन कुछ जज ऐसे हैं जो हमें निराश करते हैं."
जस्टिस सूर्यकांत ने खास तौर पर जजों के बार-बार चाय-कॉफी ब्रेक लेने की आदत पर तंज कसा. उन्होंने कहा, "कुछ जज हर थोड़ी देर में चाय ब्रेक, कॉफी ब्रेक, ये ब्रेक, वो ब्रेक लेते हैं. अगर सिर्फ लंच ब्रेक लिया जाए तो परफॉर्मेंस और रिजल्ट दोनों बेहतर होंगे." सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने पूरे देश की अदालतों में हलचल मचा दी. यह सवाल उठने लगा कि क्या वाकई जजों के अनावश्यक ब्रेक के चलते न्याय में देरी हो रही है?
दिल्ली हाईकोर्ट का तुरंत एक्शन
सुप्रीम कोर्ट की फटकार का असर इतना तेज था कि अगले ही दिन, 14 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक नोटिफिकेशन (नंबर 13/G-4/Genl.I/DHC) जारी कर अपने कामकाजी समय में बड़ा बदलाव कर दिया. इस नोटिफिकेशन के मुताबिक, अब दिल्ली हाईकोर्ट के जज और कोर्ट स्टाफ सुबह 10:30 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक और फिर दोपहर 2:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक कोर्ट की कार्यवाही करेंगे. यानी, अब लंच ब्रेक का समय 1:30 बजे से 2:30 बजे तक होगा, जो पहले से 15 मिनट ज्यादा है.
इतना ही नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक और बड़ा फैसला लिया. अब तक हर महीने का चौथा शनिवार छुट्टी का दिन होता था, लेकिन अब यह भी कामकाजी दिन होगा. इसका मतलब है कि कोर्ट की रजिस्ट्री को अब और ज्यादा मेहनत करनी होगी. ये बदलाव न सिर्फ जजों की कार्यशैली को और सख्त करेंगे, बल्कि लंबित मामलों को निपटाने में भी मदद करेंगे.
क्यों जरूरी था ये बदलाव?
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया कि क्या जजों की कार्यशैली में सुधार की जरूरत है? आंकड़ों की मानें तो देश भर की हाईकोर्ट्स में लाखों मामले लंबित हैं. कई बार फैसले में देरी के चलते लोगों का न्याय प्रणाली से भरोसा उठने लगता है. दिल्ली हाईकोर्ट का यह कदम न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का जवाब है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कोर्ट जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से ले रहा है.
जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी कहा था कि कुछ जज अपनी मेहनत और प्रतिबद्धता से सिस्टम का नाम रोशन करते हैं, लेकिन कुछ जजों की लापरवाही पूरे सिस्टम पर सवाल उठाती है. दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला इस बात का संकेत है कि अब कोर्ट्स अपनी परफॉर्मेंस को और बेहतर करने के लिए तैयार हैं.
क्या होगा असर?
दिल्ली हाईकोर्ट के इस नए नियम से कई सकारात्मक बदलाव की उम्मीद है. सबसे पहले, लंच ब्रेक को 15 मिनट बढ़ाने से जजों और स्टाफ को पर्याप्त समय मिलेगा, जिससे वे तरोताजा होकर काम कर सकेंगे. दूसरा, चौथे शनिवार को कामकाजी दिन बनाने से कोर्ट में लंबित मामलों की सुनवाई में तेजी आएगी. तीसरा, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद जजों पर यह दबाव होगा कि वे अनावश्यक ब्रेक से बचें और अपनी जिम्मेदारी को और गंभीरता से निभाएं.