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Exclusive: करीब 10 साल से चल रही है Sex Workers की ये लड़ाई, अब जाकर हुई पहली सीढ़ी तय… जानिए लड़ाई की पहली ईंट रखने वाली Bharati Dey से पूरे सफर के बारे में 

सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई, 2011 को एक पैनल का गठन किया था. जो ट्रैफिकिंग रोकने, सेक्स वर्क छोड़ने की इच्छा रखने वाली सेक्स वर्कर्स के लिए रिहैबिलेशन सेंटर और सेक्स वर्कर्स की डिग्निटी के मुद्दे पर बात करने के लिए बनाया गया था. भारती डे इसी पैनल का हिस्सा थीं.

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हाइलाइट्स
  • 10-20 सालों से लड़ रहे हैं यही लड़ाई

  • ज्यादातर लड़कियां अपनी मर्जी से पेशे में आती हैं 

आंकड़ों की मानें तो भारत में करीब तीस लाख से ज्यादा लोग देह व्यापार से जुड़े हुए हैं. लेकिन इसमें कितने अपनी मर्जी से हैं और कितने जबरन इसमें लाए गए हैं इसका आंकड़ा किसी के पास नहीं है.  कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने देह व्यापार को कानूनी दर्जा देने की बात कही थी. अब शुक्रवार को इसी में आगे बढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सेक्स वर्क को एक प्रोफेशन (Sex work is work) के तौर पर मानने की बात कही है. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई अपनी मर्जी से इस प्रोफेशन में आता है तो यह गैर-कानूनी नहीं माना जाएगा. इसके अलावा कोर्ट ने पुलिस से भी कहा है कि वे सेक्स वर्कर्स के साथ सम्मानजनक बर्ताव करें.  इस फैसले का सभी सेक्स वर्कर्स ने स्वागत किया है. 

जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.एस. बोपन्ना की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्ति का प्रयोग करते हुए इन सिफारिशों को लागू किया है. 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर GNT Digital ने सेक्स वर्कर्स के मुद्दों पर काम कर रहे दरबार (Durbar) फाउंडेशन की मेंटर भारती डे से बात की. उन्होंने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सेक्स वर्क को कानूनी दर्जा मिल जाने से जहां सेक्स वर्कर्स के हकों को उन्हें दिया जा सकेगा, वहीं महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा. इससे ट्रैफिकिंग भी कम होगी और समाज में सेक्स वर्कर्स भी इज्जत की ज़िन्दगी जी पाएंगे. 

भारती डे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहती हैं, “सेक्स वर्क भी किसी भी दूसरे काम की तरह ही एक काम है, जिसकी हमें कमाई मिलती है. हमें भी सभी अधिकार मिलने चाहिए. हालांकि, दक्षिणी भारत में सेक्स वर्कर्स की स्थिति थोड़ी ठीक हो गई है, लेकिन हम चाहते हैं कि पूरे भारत में हम सभी के हकों की बात करें. और सभी सेक्स वर्कर्स अपने हकों के लिए लड़ें.”

10-20 सालों से लड़ रहे हैं यही लड़ाई

दरअसल, ये लड़ाई अभी की नहीं है ये करीब 10 से 12 साल पुराना मुद्दा है. सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई, 2011 को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप घोष की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया था. जो ट्रैफिकिंग रोकने, सेक्स वर्क छोड़ने की इच्छा रखने वाली सेक्स वर्कर्स के लिए रिहैबिलेशन सेंटर और सेक्स वर्कर्स की डिग्निटी के मुद्दे पर बात करने के लिए बनाया गया था. भारती डे इसी पैनल का हिस्सा थीं.

वे कहती हैं, “2011 में सुप्रीम कोर्ट में एक पैनल बना था तो उसमें स्व डॉ. समरजीत जाना और मैं (भारती डे) थे. उस वक़्त तीन मुद्दों पर बात करने के लिए पेटिशन फाइल की गई थी. जिसमें, तीन बातों के बारे में कहा गया था- रिहैबिलेशन सेंटर, डिग्निटी और ट्रैफिकिंग. तो हमारी संस्था का काम सेल्फ रेगुलेटरी बोर्ड का है. इसमें हम ये देखते हैं कि जिस भी महिला को लाया गया है वे अपनी मर्जी से आई हैं या फिर उन्हें जबरदस्ती लाया गया है. साथ ही हम ये भी देखते हैं कि कहीं जिसे लाया गया है वो नाबालिग (माइनर) तो नहीं है, क्यूंकि हम इसके सख्त खिलाफ हैं. तब सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि ये बोर्ड हर राज्य में होना चाहिए. कम से कम 70 साल से ही मानकर चलिए सभी चाह रहे हैं कि सेक्स वर्क को एक वर्क के तौर पर माना जाए. हम 10-20 साल से इस लड़ाई को लड़ भी रहे हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अच्छा कदम उठाया है, हमें बहुत ख़ुशी हुई है कि जिसके लिए हम लड़ रहे हैं उसकी पहली सीढ़ी तय हो चुकी है."

भारती डे
भारती डे

ज्यादातर लड़कियां अपनी मर्जी से पेशे में आती हैं 

भारती डे आगे कहती हैं, “दरअसल, पुलिस वाले जब रैड मारती है तब वे सभी लड़कियों की फोटो भी अख़बारों में छपवा देते हैं. यह गलत है. न्यूज़ में लिखा जाता है कि इन लड़कियों को रेस्क्यू किया गया है. जबकि उनसे नहीं पूछा जाता है कि वे रेस्क्यू हुई हैं या फिर वे अपने मन से आई थीं. इसे देखना चाहिए. इसे इस तरह देखिये कि ये माइनर लड़कियां हैं उनका अगर चेहरा दिखा देंगे तो आगे उन्हें समाज में ही रहना है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन काफी सराहनीय है. सुप्रीम कोर्ट ने डिग्निटी की भी बात की जिसकी बात हम इतने सालों से कर रहे हैं. और आखिर में सेक्स वर्क इस लीगल की बात कही है. हमारा पूरा मदद और सारी मांगे ही इसी पर आकर टिक जाती हैं. अगर ये कानून बन जाता है तो इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता.” 

हम वर्कर्स राइट्स की बात करते हैं 

वे कहती हैं, “आंकड़ों की बात करें तो कुल 1 प्रतिशत महिलाएं ऐसी होती हैं जो जबरदस्ती इस पेशे में आ जाती हैं. हमने डेटा इकठ्ठा किया है जिसके मुताबिक करीब 97 प्रतिशत ऐसी महिलाए हैं जो अपने मन से इस पेशे में आई हैं. काम तो काम है. पैसे के लिए हर कोई काम करता है. हम वर्कर्स राइट की बात करते हैं. कि सभी को उनके अधिकार मिलने चाहिए जैसे किसी भी दूसरे काम में मिलते हैं.”

साथ रहकर लड़ना जरूरी 

भारती डे संगठन की बात करते हुए कहती हैं कि सभी सेक्स वर्कर्स को संगठित रहने की जरूरत है इसीलिए ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स एसोसिएशन (AINSW) और दरबार (DURBAR) जैसी संस्था बनाई गई हैं ताकि हकों की बात हो सके. क्योंकि कई सारी समस्याओं, हिंसा और भेदभाव का सामना सभी रेड लाइट एरिया में सेक्स वर्कर्स को  करना पड़ रहा हैं. अब हम इन चीजों से लड़ने के लिए एक साथ खड़े हैं. सामूहिक गठन के साथ, हिंसा कम हो गई है और लगभग बंद हो गई हैं. पुलिस के साथ संबंध भी अब भी बहुत बेहतर हो गए हैं. अब अगर हम कुछ कहते हैं तो वो हमारी बात गौर करके सुनते हैं. कई बार ऐसा होता है कि अगर उन्हें माइनर लड़की के बारे में कोई सूचना मिलती है तो वे पहले हमसे कन्फर्म करते हैं और हम उन्हें चेक करके बताते हैं और फिर वो लोग आते हैं. क्योंकि हम भी नहीं चाहते हैं कि कोई भी लड़की बिना अपनी मर्जी के या नाबालिग सेक्स वर्क के लिए आये. हम खुद इसके खिलाफ हैं.”

वे कहती हैं, “पहले ऐसा होता था कि पुलिस आती थी और सीधा तोड़-फोड़ शुरू कर देती थी. यहां तक कि हमसे  महीने का भाड़ा भी लेती थी. वहीं कई सारे लोग चंदा मांगने भी आते थे. हालांकि, अभी देश के कुछ राज्यों में ऐसा ही है. हम चाहते हैं कि AINSW जैसी संस्था से सभी जुड़ें ताकि हम सेक्स वर्कर्स के खिलाफ हो रही हिंसा को भी रोक पाएं. पश्चिमी बंगाल में हालांकि थोड़ा ठीक है जबकि कई राज्य के सेक्स वर्कर्स तो अभी भी अपने लिए नहीं बोल सकते हैं. इसीलिए हम चाहते हैं कि ऐसी संस्थाएं और बनें.”

आखिर में भारती डे कहती हैं कि जैसे मील कारखाने वाले लोग हैं या जो उनमें काम करते हैं उनके लिए कितनी सरकारी स्कीम होती हैं. जबकि हमारे पेशे में ऐसा कुछ नहीं होता है. जबकि काम तो दोनों हैं. हमें भी क़ानूनी तौर पर वर्कर की मान्यता मिलनी चाहिए. लेकिन जब ये कानून बन जाएगा तब हमें ये सब नहीं झेलना होगा.