
सोशल मीडिया पर इस हफ्ते की शुरुआत में कई रक्षा क्षेत्र में रूचि रखने वाले लोग कावेरी जेट इंजन प्रोजेक्ट पर चर्चा करते हुए पाए गए. लोगों ने हैशटैग (#FundKaveriEngine) चलाकर इस प्रोजेक्ट में तेजी से प्रगति की मांग की. एक वक्त पर तो यह हैशटैग एक्स पर नंबर एक पर ट्रेंड करने लगा. कई यूज़र्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ज्यादा धन मुहैया कराने और स्वदेशी इंजन को प्राथमिकता देने का आग्रह किया.
दरअसल यह प्रोजेक्ट भारत का एयर डिफेंस के लिए बहुत अहम साबित हो सकता है. हालांकि यह लंबे वक्त से टला हुआ है. आइए जानते हैं कि यह प्रोजेक्ट क्या है और भारतीय एयर डिफेंस के लिए इतना ज़रूरी क्यों है.
क्या है कावेरी इंजन प्रोजेक्ट?
कावेरी एक जेट प्रोपल्शन इंजन है जिसे गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (GTRE) और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की प्रयोगशाला विकसित कर रही है. कावेरी एक लो बाईपास, ट्विन स्पूल टर्बोफैन इंजन है जिसमें 80 किलोन्यूटन (kN) थ्रस्ट है. इस इंजन की परिकल्पना सबसे पहले 1980 के दशक में की गई थी. कावेरी का उद्देश्य भारत के स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस को शक्ति देना था.
इंजन में ज्यादा गति और ज़रूरत से ज़्यादा गर्म तापमान की हालत में थ्रस्ट लॉस को कम करने के लिए एक फ्लैट-रेटेड डिज़ाइन है. बढ़ी हुई विश्वसनीयता के लिए मैनुअल ओवरराइड के साथ एक ट्विन-लेन फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल (FADEC) सिस्टम शामिल है. इस इंजन को 2008 में तेजस प्रोग्राम से अलग कर दिया गया था क्योंकि यह पर्फॉर्मेंस लिमिट को पूरा नहीं कर सका था.
क्यों टलता रहा कावेरी प्रोजेक्ट?
साल 2008 तक आते-आते तेजस की ज़रूरतें बदल चुकी थीं इसलिए कावेरी इंजन को इसमें इंटिग्रेट नहीं किया जा सका. इस असफलता के कई कारण रहे. सबसे पहले तो भारत के सामने एयरोथर्मल से जुड़ी बाधाएं थीं जिनका समाधान करने में भारत को पहले कोई अनुभव नहीं था. भारत के 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद लगाए गए प्रतिबंधों के कारण सिंगल-क्रिस्टल टरबाइन ब्लेड जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियों की कमी ने भी इसमें योगदान दिया.
इसके अलावा भारत के पास ज़रूरी घरेलू सुविधाएं भी नहीं थी. इसकी वजह से भारत को उच्च-ऊंचाई वाले परीक्षणों के लिए रूस के सीआईएएम (Central Institute of Aviation Motors) पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे उन्नत एयरोस्पेस इंजीनियरिंग प्रयासों के लिए कुशल जनशक्ति की कमी भी भारत को खलती थी.
इसके ऊपर 2013 में फ्रांसीसी फर्म स्नेक्मा ने प्रस्तावित साझेदारी को भी तोड़ दिया था. इन अड़चनों के कारण कावेरी इंजन जब बनकर तैयार हुई तो उसकी शक्ति कम और वज़न ज़्यादा था. अंततः भारत को तेजस में अमेरिकी डिफेंस कंपनी जीई एयरोस्पेस (GE Aerospace) के इंजन जीई एफ404 और बाद में जीई एफ414 इस्तेमाल करने पड़े.
अब क्यों उठी फंडिंग की मांग?
सोशल मीडिया पर लोग कावेरी प्रोजेक्ट में फंडिंग की मांग करते हुए कह रहे हैं कि भारत को एक स्वदेशी इंजन की ज़रूरत है. तेजस लड़ाकू विमानों में भले ही इसका इस्तेमाल न हो रहा हो, लेकिन कावेरी इंजन को नए रक्षा प्लेटफॉर्म के लिए फिर से तैयार किया जाने लगा है. इंजन का एक वर्जन इस समय मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहनों (UCAV) को शक्ति देने के लिए तैयार किया जा रहा है. इसमें आगामी घातक स्टील्थ यूसीएवी भी शामिल है.
उल्लेखनीय रूप से, निजी क्षेत्र की भागीदारी ने इसमें भूमिका निभानी शुरू कर दी है. गोदरेज एयरोस्पेस जैसी फर्मों ने महत्वपूर्ण इंजन मॉड्यूल तैयार किए हैं और हाल ही में उड़ान के दौरान किए गए परीक्षण से पता चलता है कि परियोजना ने वर्षों की सुस्ती के बाद गति पकड़ ली है.