
बहुविवाह को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. जिसमें बहुविवाह को रेगुलेट करने के लिए कानून बनाने के निर्देश देने की मांग की गई है. याचिका में मुस्लिम पुरुषों को दूसरी शादी करने से पहले पहली पत्नी से सहमति लेने की मांग की गई है. इसको लेकर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और 6 हफ्ते में जवाब मांगा है. भारत में शादी को लेकर हर धर्म के अलग-अलग कानून हैं. हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और मुस्लिमों के लिए दूसरी शादी को लेकर कानून में क्या प्रावधान हैं. आइए जानते हैं...
हिंदू धर्म में दूसरी शादी का कानून-
हिंदी विवाह अधिनियम 1955 के तहत बिना तलाक के दूसरी शादी का प्रावधान नहीं है. हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पत्नी की सहमति से भी दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं है. इस कानून के तहत बौद्ध, सिख, जैन आते हैं. हालांकि कुछ मामलो में इस एक्ट के तहत आने वाले लोग बिना तलाक के दूसरी शादी कर सकते हैं. बिना तलाक के हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन इन हालातों में दूसरी शादी कर सकते हैं-
हिंदू विवाह एक्ट के तहत बिना तलाक दूसरी शादी करने पर सजा का प्रावधान भी है. आईपीसी की धारा 494 के तहत दूसरी शादी अपराध है. ऐसे मामले में 7 साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है.
मुस्लिम धर्म में दूसरी शादी-
भारत में मुसलमानों के लिए एक से ज्यादा शादी करने की छूट है. आईपीसी की धारा 494 के तहत मुसलमान पुरुषों को दूसरा निकाह करने की इजाजत है. इसी तरह से शरियत कानून की धारा 2 के तहत बहुविवाह की अनुमति है. पहली पत्नी की सहमति के बिना चार शादियां करने की छूट है. हालांकि इस कानून के तहत सिर्फ पुरुषों को दूसरी शादी की इजाजत है. मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम विवाह अधिनियम 1937 के तहत दूसरी शादी की इजाजत नहीं है. अगर कोई मुस्लिम महिला दूसरी शादी करना चाहती है तो पहले उसे पति से तलाक लेना होगा.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम समुदाय को बहुविवाह के छूट वाले प्रावधान को चुनौती दी गई है और इसे गैरसंवैधानिक करार देने की मांग की गई है.
ईसाई धर्म में दूसरी शादी-
ईसाई धर्म में दूसरी शादी की मनाही है. बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं हो सकती है. अगर दंपति मेंसे किसी की मौत हो जाती है तो दूसरी शादी की जा सकती है. पहली शादी को चर्च में रद्द होना भी जरूरी है.
ये भी पढ़ें: