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क्या है ऑपरेशन हर्कुलस, कैसे दिया गया अंजाम, क्यों जरूरी था ऑपरेशन?

भारतीय वायु सेना ने इस अभ्यास में अपने C-17 ग्लोबमास्टर, IL-76 और N-32 जैसे विमानों का इस्तेमाल किया. इन विमानों ने पश्चिमी वायु कमान के एक फॉर्वर्ड बेस से उड़ान भरी.

ऑपरेशन हर्कुलस ऑपरेशन हर्कुलस
हाइलाइट्स
  • वायुसेना ने इस अभ्यास में C-17 ग्लोबमास्टर, IL-76 और N-32 जैसे विमानों का इस्तेमाल किया.

  • भारत और चीन के बीच तनाव को देखते हुए यह ऑपरेशन चलाया गया. 

भारत ने चीन के साथ जारी सीमा गतिरोध को ध्यान में रखते हुए  हवाई अभ्यास किया. कड़ाके की सर्दी वाले मौसम में पूर्वी लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों तक सैन्य उपकरण और सहायता पहुंचाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए भारत ने ये हवाई अभ्यास किया. इस दौरान वायु सेना के माल वाहक विमानों से राशन और अन्य सामान को उत्तरी क्षेत्र में पहुंचाया गया.

अधिकारियों ने बताया कि वायु सेना और थल सेना द्वारा सोमवार को संयुक्त तौर पर किए गए इस हवाई अभ्यास का नाम ऑपरेशन हर्कुलस (Operation Hercules)  था. रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘तेजी से एयरलिफ्ट का मकसद उत्तरी सेक्टर में सामरिक आपूर्ति को मजबूत करना और अभियान वाले क्षेत्रों में शीतकालीन भंडार को बढ़ाना है.' पूर्वी लद्दाख के हॉट स्प्रिंग्स और अन्य सभी टकराव वाले जगहों से सैनिकों की वापसी के संबंध में भारत और चीन के बीच सहमति नहीं बनने के चलते यह ऑपरेशन चलाने का फैसला लिया गया. 

कैसे दिया गया अंजाम

भारतीय वायु सेना और सेना द्वारा ये संयुक्त अभ्यास 15 नवंबर को आयोजित किया गया था. इस दौरान सैनिकों और हथियारों की तेजी से एक थियेटर से दूसरे थियेटर तक आवाजाही, सटीक स्टैंड-ऑफ जैसी क्षमताओं का प्रदर्शन किया गया. इस दौरान निर्धारित लक्ष्यों को गिराने और तेजी से पकड़ने का भी अभ्यास किया गया. भारत ने चीनी सैन्य निर्माण और हमले की संभावना को देखते हुए लद्दाख थिएटर में 50 हजार से 60 हजार सैनिकों और उन्नत हथियारों को तैनात किया है. 

क्यों जरूरी था ऑपरेशन?

भारतीय वायुसेना ने इस अभ्यास में अपने C-17 ग्लोबमास्टर, IL-76 और N-32 जैसे विमानों का इस्तेमाल किया. इन विमानों ने पश्चिमी वायु कमान के एक फॉर्वर्ड बेस से उड़ान भरी. ऑपरेशन के दौरान इस बात की भी जांच हुई कि जरूरत पड़ने पर वायु सेना कितनी तेजी से सामान बॉर्डर तक पहुंचा सकती है. दरअसल, सर्दी के मौसम में पूरे इलाके का सड़क संपर्क चार-पांच महीने के लिए कट जाता है, जिसके चलते सेना को पर्याप्त राशन और अन्य सामान जुटाना पड़ता है.

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