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Mock Drill: मॉक ड्रिल से पहले क्या होती है तैयारी? कैसे बनता है पूरा प्लान, जानें

भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच देश के 244 जिलों में 7 मई को मॉक ड्रिल की जाएगी. इस मॉक ड्रिल के लिए पूरी तैयार है. मॉक ड्रिल से पहले क्या-क्या होता है? चलिए जानते हैं.

Security personnel deployed Security personnel deployed

मॉक ड्रिल यानी कि इमरजेंसी, या किसी आपदा के पहले रिस्पॉन्स टाइम समझने के लिए अक्सर एजेंसियां करती रहती हैं. मॉक ड्रिल के जरिये एजेंसियां अपनी कमी और गलती को समझती हैं. आइए जानते हैं कि मॉक ड्रिल से पहले पर्दे के पीछे क्या-क्या तैयारियां होती हैं, कैसे एजेंसियां संपर्क में रहती है और किसे भनक तक नहीं होती.

वजह-
मॉक ड्रिल क्यों करना है. आग, बम ब्लास्ट, भूकंप या फिर युद्ध के पहले की मॉक ड्रिल. आमतौर पर मॉक ड्रिल होता रहता है. लेकिन युद्ध से पहले का ना सिर्फ मॉक ड्रिल अलग होता है, बल्कि कोआर्डिनेशन भी अलग तरह से किया जाता है. लोगों को भी ट्रेन किया जाता है, ताकि सायरन बजने की स्थिति में क्या करना है, कब छिपना है, रात के वक़्त कब बिजली बंद करनी है?

मीटिंग-
मीटिंग में हर उस एजेंसी के चीफ शामिल होते हैं, जो इस ड्रिल का हिस्सा बनते हैं. इसमें तय किया जाता है कि किस तरह मॉक ड्रिल होगी. इसी मीटिंग में रोल्स और ज़िम्मेदारियां बाँटी जाती हैं.

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युद्ध से पहले की मॉक ड्रिल-
युद्ध से पहले की मॉक ड्रिल आम मॉक ड्रिल से अलग होती है. युद्ध की स्थिति में जब नौकरी किया जाता है तो इसमें लोकल पुलिस के अलावा पूरी केंद्रीय एजेंसियां सेवा के जवान, पैरामिलिट्री फोर्स की जवान, लोकल फायर सर्विस, सिविल डिफेंस के लोग शामिल होते हैं.

मॉक ड्रिल से पहले होगी स्क्रिप्टिंग-
मॉक ड्रिल से पहले होने वाली मीटिंग में जो तैयारी की जाती है, उसे बाकायदा लिख लिया जाता है कि मॉडल की जानकारी कितने लोगों को देनी, कब देनी और क्या बताया जाएगा? कोशिश की जाती है कि पूरी तरीके से असली अभ्यास जैसा लगे और कहीं किसी हिस्से में कुछ कमी हो तो वह सामने आ सके.

ड्रिल के दौरान फुल-स्केल रिस्पॉन्स दिखाना होता है. इसके लिए पुलिस, फायर ब्रिगेड, NDRF, अस्पताल और कभी-कभी आम नागरिकों तक को शामिल किया जाता है. सभी यूनिट्स को एक कोड वर्ड या टाइमलाइन दी जाती है.

रिहर्सल-
कई बार मॉक ड्रिल से पहले कभी कभी रिहर्सल भी किया जाता है. युद्ध के दौरान होने वाले मॉक ड्रिल में कमिश्ननरेट जहां है, जैसे दिल्ली, गाज़ियाबाद यहां पर पुलिस के पास 188 की सारी पावर होती है, जबकि बाकी शहरों में जहां कमिश्ननरेट नही है, वहां डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास रहती है. युद्ध की संभावना में केंद्रीय एजेंसियां लोकल पुलिस के संपर्क में रहती हैं.

सायरन-
लोगो को ड्रिल के जरिए बताया जाता है कि सायरन की आवाज़ सुन कर उन्हें कैसे रिएक्ट करना है. आवाज़ सुन कर घबराना नहीं है, बल्कि तुरन्त आसपास खुद को छिपाना है.

दिल्ली पुलिस को मिला LRAD सिस्टम-
इस सिस्टम के जरिये दिल्ली पुलिस लोगों को एक किलोमीटर से दूर तक एक बार मे सतर्क कर सकेगी. LRAD का इस्तेमाल सात मई को दिल्ली में होने वाले मॉक ड्रिल के दौरान किया जाएगा. फिलहाल अधिकारियों को इसकी जानकारी दी जा रही है कि कैसे इनके जरिए मैसेज आगे भेज जाए.

(हिमांशु मिश्रा की रिपोर्ट)

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