PM Modi
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम को लेकर कांग्रेस को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि जब मुस्लिम लीग और ब्रिटिश सरकार भारत के विभाजन की तैयारी कर रही थी और उस समय असम को अविभाजित बंगाल यानी पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की भी योजना थी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस साजिश का हिस्सा बनने जा रही थी, लेकिन बोरदोलोई ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम की पहचान नष्ट करने की इस साजिश का विरोध किया और असम को देश से अलग होने से बचाया.
प्रधानमंत्री मोदी ने जिस योजना का जिक्र किया, वह क्या थी और साल 1946 में क्या हुआ था. इस योजना पर महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की क्या प्रतिक्रिया थी? चलिए समझते हैं.
1946 की कैबिनेट मिशन योजना-
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1940 के दशक में दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद यह साफ हो गया था कि अब अंग्रेज भारत छोड़कर जाएंगे और आजादी की प्रक्रिया और नई सरकार के गठन का काम किया जाना बाकी था. इसी सिलसिले में ब्रिटिश पीएम रिचर्ड एटली ने 3 मंत्रियों का कैबिनेट मिशन भारत भेजा. इसमें लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस, स्टैफोर्ड क्रिप्स और लॉर्ड एवी अलेक्जेंडर शामिले थे. इस मिशन का मकसद भारत की आजादी और नई सरकार बनाने का रास्ता निकालना था. इस मिशन ने भारत को एकजुट रखने के लिए अंतिम कोशिश की. लेकिन योजना में विरोधाभास की वजह से इस सफल नहीं हो सका.
मिशन ने जो मसौदा दिया था, उसके मुताबिक भारत में तीन स्तर की व्यवस्था रखना था. सबसे ऊपर केंद्र सरकार, सबसे नीचे राज्य औरर बीच में राज्यों के समूह होगा. अंग्रेजों ने राज्यो को तीन ग्रुप में बांटा. ग्रुप ए में मध्य भारत, ग्रुप बी में उत्तर-पश्चिम के मुस्लिम बहुल राज्य जैसे पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और ग्रुप सी में पूर्व के राज्य यानी बंगाल और असम आ गए.
असम और बंगाल को ग्रुप सी में रखा गया था. जबकि बंगाल में मुस्लिम आबादी ज्यादा थी, इसलिए ये ग्रुप मुस्लिम लीग के प्रभाव में जाना था. कांग्रेस इसको लेकर राजी थी. क्योंकि कांग्रेस को लगता था कि इससे भारत का बंटवारा नहीं होगा और देश एक रहेगा. मुस्लिम लीग ने भी इसे मान लिया था.
बोरदोलाई को था एतराज-
असम के मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई असम को बंगाल में रखने के खिलाफ थे. उनको लगता था कि इस ग्रुपिंग के चलते असम की पहचान खत्म हो जाएगी और उनको मुस्लिम बहुल क्षेत्र में धकेल दिया जाएगा. बोरदोलोई ने इसका विरोध करने का ठान लिया. हालांकि बोरदोलोई इस फैसले को लेकर महात्मा गांधी से सलाह लेना चाहते थे. उन्होंने अपने दो साथियों को महात्मा गांधी के पास भेजा. गांधी ने भी साफ कह दिया कि असम को ये प्लान नहीं मानना चाहिए. महात्मा गांधी ने सलाह दी कि असम को अपनी आवाज उठानी चाहिए. असम को गलत के आगे झुकना नहीं चाहिए. महात्मा गांधी का समर्थन मिलने के बाद बोरदोलोई ने इसका विरोध किया और असम को बंगाल के साथ जाने से बचा लिया.
जवाहर लाल नेहरू का रुख-
जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि कैबिनेट मिशन योजना चिन्ना की प्रतिष्ठा बचाने और उनको असंभव परिस्थिति में धकेलने से बचने के लिए अंग्रेजों ने बनाई गई थी. नेहरू ने असम को किसी भी तरह के दबाव में डालने का विरोध किया. 22 जुलाई 1946 को नेहरू ने बोरदोलोई को लिखा कि मुझे लगता है कि ग्रुप के खिलाफ निर्णय लेना सही और उचित था. 23 सितंबर 1946 को उन्होंने बोरदोलोई को फिर से लिखा कि हम किसी भी हालत में असम जैसे प्रांत को उसकी इच्छा के खिलाफ कुछ भी करने के लिए मजबूर करने पर सहमत नहीं होंगे. इसके अलावा 1946 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में भी नेहरू ने सीमा प्रांत, असम, पश्चिम बंगाल और दक्षिण पंजाब को पाकिस्तान का हिस्सा मानने से इनकार किया था.
10 जुलाई 1946 को नेहरू ने बंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. जिससे कैबिनेट मिशन योजना के भविष्य लगभग तय हो गया था, क्योंकि इसे योजना को कांग्रेस द्वारा अस्वीकृति के तौर पर देखा गया था.
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