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Qutub Minar Case: कुतुब मीनार की मुगल मस्जिद में क्या मिल पाएगा नमाज का अधिकार? ASI ने आखिर किस आधार पर दिए आदेश, जानें असलियत  

कुतुब मीनार का मामला कोर्ट में है. अब मुगल मस्जिद मामले में नमाज अदायगी की रोक पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं. कुछ का कहना है कि 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान नमाज पर प्रतिबंध लगाया गया था. तो वहीं कुछ का मानना है कि मस्जिद में कभी नमाज पढ़ने की अनुमति मिली ही नहीं है. 

Qutub Minar Qutub Minar
हाइलाइट्स
  • दिल्ली वक्फ बोर्ड भी है तैयार 

  • मस्जिद में कभी नहीं मिली नमाज पढ़ने की अनुमति : ASI

कुतुब मीनार मामले में वक्त के साथ कई कहानियां अब लोगों के सामने है. जहां एक तरफ कुतुब मीनार का मामला कोर्ट में है तो वहीं दूसरी ओर अब मुगल मस्जिद मामले में नमाज अदायगी की रोक पर अब सवाल उठने शुरू हो गए हैं.

कुतुब मीनार परिसर में मुगल मस्जिद में अगर इमाम शेर मोहम्मद की मानें तो उनका कहना की इस मस्जिद में  लगातार इबादत होती थी. पहले नमाज की अदायगी में कभी कोई दिक्कत नहीं आई. लगातार सिलसिला चल रहा था पर अचानक क्यों बंद किया इसका जवाब एएसआई की तरफ से नही मिला. इमाम कहते हैं कि हमसे सिर्फ इतना कहा गया कि आपके पास परमिशन नहीं है.

2010 में लगा था प्रतिबंध

एएसआई के पूर्व अधिकारी और कुतुब मीनार परिसर के इंचार्ज रहे के. के राजदान बताते हैं कि 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान नमाज पर प्रतिबंध लगाया गया था. क्योंकि नमाजियों के पास आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पास नमाज पढ़ने से संबंधित कोई अनुमति पत्र नहीं था. फिर साल 2016 के करीब इस छोटी मस्जिद में एक बार फिर नमाज शुरू हो गई थी.

मस्जिद में कभी नहीं मिली नमाज पढ़ने की अनुमति 

हालांकि, इस मामले में एएसआई के अधिकारियों का कहना की एएसआई की तरफ से इस मस्जिद में कभी नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं दी गई. किसी भी लिविंग मोन्यूमेंट में पूजा अर्चना की अनुमति तभी मिलती है जब एएसआई ने उस इमारत को आधिकारिक रूप से जब अपने अंतर्गत लिया था और उस समय उसमें किसी भी प्रकार की नमाज या पूजा होती हो. लेकिन मुगल मस्जिद के बारे में इस तरह के कोई अधिकारिक प्रमाण नहीं मिलते हैं. इसलिए हमारी तरफ से कोई अनुमति नहीं दी गई.

दिल्ली वक्फ बोर्ड भी है तैयार 

गौरतलब है कि इस पूरे मामले में अब दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अमानतुल्ला ने कहा है कि मुगल मस्जिद   दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधीन थी. ऐसे में यहां के इमाम को वक्फ बोर्ड की तरफ से 46 साल से गुजारा भत्ता और सैलरी दी जा रही है. अमानतुल्लाह ने कहा है कि इस पूरे मामले को अगर कोर्ट के जरिए सुलझाना पड़ा तो दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड उसके लिए तैयार है.