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Yashwant Sinha: राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार होंगे यशवंत सिन्हा, जानें कैसा रहा है उनका सियासी सफर

Yashwant Sinha profile: देश में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में यशवंत सिन्हा के नाम पर विपक्ष ने आखिरकार मुहर लगा ही दी है. उम्मीदवार के नाम को चुनने के लिए मंगलवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने संसद भवन में बैठक बुलाई थी. जिसके बाद उनका नाम फाइनल किया गया है. बता दें, 18 जुलाई को चुनाव होना है.

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हाइलाइट्स
  • 1996 के लोकसभा चुनाव से पहले हो गए थे बीजेपी में शामिल 

  • पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाने से की थी करियर की शुरुआत 

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार होंगे. मंगलवार को 19 विपक्षी दलों ने सिन्हा के नाम पर सहमति जताई. यशवंत सिन्हा केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रह चुके हैं. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से बीजेपी से उनकी दूरियां बढ़ती गईं और आखि‍रकार यशवंत सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस का दाम थाम लिया था.

देश में नए राष्ट्रपति के लिए 18 जुलाई को चुनाव होना है. ऐसे में विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार का ऐलान कर दिया गया है. इसके लिए एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को नई दिल्ली में एक बैठक बुलाई थी जिसके बाद 19 विपक्षी दलों ने सर्वसम्मति से यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमति जताई.

दरअसल, इससे पहले शरद पवार, फारुक अब्दुल्ला और महात्मा गांधी के पौत्र गोपाल कृष्ण गांधी के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की बात हो रही थी. लेकिन अचानक से यशवंत सिन्हा का नाम चर्चा में आ गया और फिर इनके नाम पर ही सभी ने अपनी सहमति दर्ज कर दी. 

नौकरशाह से राजनेता बने यशवंत सिन्हा के सियासी सफर पर एक नज़र डालते हैं...

पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाने से की करियर की शुरुआत

6 नवंबर 1937 को पटना में जन्मे यशवंत सिन्हा की पढ़ाई लिखाई पटना में ही हुई. राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री लेने के बाद यशवंत सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत पटना यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान पढ़ाने से की. यशवंत सिन्हा 1960 में आईएएस की नौकरी में शामिल हुए. उन्होंने ब्यूरोक्रेसी में 24 साल से ज्यादा समय बिताया है. बता दें, इन 24 सालों के दौरान वे तत्कालीन अविभाजित बिहार के अलग-अलग जिलों में सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM) और जिला मजिस्ट्रेट (DM) के रूप में कार्य कर चुके हैं.

अपनी तीखी जुबान के जाने जाते हैं सिन्हा 

अपने करियर की शुरुआत में, सिन्हा अपनी तीखी जुबान के लिए जाने जाते थे. इसके पीछे एक वाकया भी याद किया जाता है कि जब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा ने उन्हें सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई थी, तो यशवंत सिन्हा ने इसका विरोध करते हुए पलटवार किया था और कहा था, "मैं किसी दिन मुख्यमंत्री बन सकता हूं, लेकिन आप कभी आईएएस अधिकारी नहीं बन सकते."

आईएएस छोड़कर ज्वाइन की जनता पार्टी 

यशवंत सिन्हा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी माने जाते हैं. यशवंत सिन्हा ने 1984 में आईएएस की नौकरी छोड़ सियासत की दुनिया में कदम रखा. सियासत की शुरुआत जनता पार्टी से की. बाद में जनता पार्टी, लोक दल और वी पी सिंह के जन मोर्चा के विलय के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को हटाने के लिए यशवंत सिन्हा को नवगठित जनता दल के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया. हालांकि, चंद्रशेखर से यशवंत की निकटता के कारण उन्हें 1989 में सत्ता में आई वी पी सिंह सरकार में मंत्री पद से हटा दिया गया था. 

वित्त मंत्री के रूप में मिली जगह 

कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने नवंबर 1990 और जून 1991 के बीच अपनी अल्पकालिक सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में यशवंत सिन्हा को जगह दी. 

1996 के लोकसभा चुनाव से पहले हो गए बीजेपी में शामिल 

1996 के लोकसभा चुनाव से पहले यशवंत सिन्हा भाजपा में शामिल हो गए थे. यशवंत सिन्हा ने हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1998 के चुनाव में भी यशवंत सिन्हा को जीत ही मिली. यशवंत सिन्हा केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में करीब 4 साल वित्त मंत्री और दो साल विदेश मंत्री रहे. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में यशवंत सिन्हा हजारीबाग से चुनाव हार गए थे. हालांकि अगले साल यानी 2005 में राज्यसभा का चुनाव जीतकर यशवंत सिन्हा फि‍र से संसद पहुंचे. 

एक समय आया जब सिन्हा बन गए बीजेपी के सबसे बड़े आलोचक 

गौरतलब है कि यशवंत सिन्हा को सियासी दुनिया में ‘मिस्टर यू टर्न’ कहा जाता है. यशवंत सिन्हा को 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने टिकट नहीं दिया था. इसके बजाय उनके बेटे जयंत सिन्हा को हजारीबाग सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया था. जयंत सिन्हा जीते और बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री के रूप में कार्य भी किया. कहा जाता है कि पार्टी और सरकार में हाशिए पर जाने से निराश सिन्हा मोदी और पार्टी के कटु आलोचक बन गए. 

साल 2018 में यशवंत सिन्हा ने पार्टी की स्थिति का हवाला देते हुए ये कहकर बीजेपी छोड़ दी कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है. जिसके बाद 2021 में यशवंत सिन्हा ने ममता बनर्जी की अगुवाई में टीएमसी का दामन थाम लिया.