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Presidential Election 2022: देश का प्रथम नागरिक बनने की ख्वाहिश पाले बैठे हैं ये आम लोग, हर बार राष्ट्रपति पद के लिए भरते हैं नामांकन

राष्ट्रपति चुनाव के लिए कोई भी आदमी नामांकन कर सकता है, लेकिन उनके पास कम से कम 50 सांसदों या विधायकों का समर्थन होना चाहिए. आज हम आपको ऐसे कुछ उम्मीदवारों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हैं तो आम नागरिक लेकिन अपने मन में देश का प्रथम नागरिक बनने की ख्वाहिश पाले बैठे हैं.

Presidential Election 2022 Presidential Election 2022
हाइलाइट्स
  • राष्ट्रपति बनना चाहते हैं ये आम नागरिक

  • हर बार राष्ट्रपति पद के लिए भरते हैं नामांकन

18 जुलाई को राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है. भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है, इससे पहले भारत को उसका 15वां राष्ट्रपति मिल जाएगा. 21 जुलाई को मतों की गिनती की जाएगी. नीतीश कुमार और शरद पवार चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन दोनों खुद ही इस रेस से बाहर हो चुके हैं. राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने के लिए विपक्षी दलों की अगली बैठक 21 जून को हो सकती है. 

इस बार हर संसद सदस्य के हर वोट की कीमत 700 तय की गई है. प्रत्येक राज्य के विधानसभा सदस्यों के वोटों की अहमियत उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करती है. 

 
देश के सर्वोच्च नागरिक का चुनाव बेहद ही गोपनीय तरीके से होता है. राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचित सदस्य वोट डालते हैं. देश का कोई भी नागरिक कितनी भी बार राष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़ सकता है. लेकिन उसकी आयु 35 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और उस उम्मीदवार के पास 50 प्रस्तावक और 50 समर्थक विधायक का होने चाहिए. आज हम आपको ऐसे कुछ उम्मीदवारों के बारे में बताने जा रहे हैं जो हैं तो आम नागरिक लेकिन अपने मन में राष्ट्रपति बनने की ख्वाहिश पाले बैठे हैं. 

जीवन कुमार मित्तल 
दिल्ली के रहने वाले जीवन कुमार मित्तल ने तीसरी बाद राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी ठोकी है. हालांकि हर बार वे पहले राउंड में ही बाहर हो जाते हैं क्योंकि उनके नामांकन पत्र पर किसी एमपी और एमएलए का साइन नहीं होता है. वैसे भी अपनी उम्मीदवारी जताने के लिए किसी भी नागरिक को 50 सांसद और विधायकों का समर्थन चाहिए होता है. जो किसी आम आदमी के  लिए मुमकिन नहीं हो पाता. 

नागरमल बजौरिया
बिहार के रहने वाले नागरमल बजौरिया ने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी के खिलाफ नामांकन दाखिल किया था. जो रद्द हो गया था. राष्ट्रपति के अलावा बजौरिया बिहार विधान सभा चुनाव में 282वीं बार चुनावी मैदान में उतर चुके हैं. हालांकि वे एक बार भी कोई चुनाव नहीं जीत सके हैं.

किशनलाल वैद्य
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर निवासी किशनलाल वैद्य हर बार इस उम्मीद में नामांकन भरते हैं कि उन्हें यूपी के नेताओं से समर्थ मिलेगा. किशनलाल कई बार नामांकन भरने के लिए अर्थी और भैसों पर बैठकर जा चुके हैं. हालांकि हर बार उन्हें पहले राउंड में ही बाहर कर दिया जाता है.

आनंद सिंह कुशवाहा
मध्यप्रदेश में चाय की दुकान चलाने वाले आनंद सिंह कुशवाहा तीन बार राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी ठोक चुके हैं. हालांकि हर बार उन्हें हार का मुंह ही देखना पड़ा है. आनंद अभी तक राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सांसद, विधायक और पार्षद का चुनाव लड़ चुके हैं.

नरेंद्र नाथ दुबे
अपने निधन से पहले तक बनारस के नरेंद्र नाथ दुबे उर्फ अडिग चार बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ चुके थे. चुनाव लड़ने का जुनून ही इनकी पहचान हुआ करती थी. 40 सांसदों के फर्जी हस्ताक्षर करके उपराष्ट्रपति पद के नामांकन मामले में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था.

रामफेर
आगरा के रामफेर उर्फ चुंटी भी ऐसे ही रणबांकुरों में शुमार हैं जो देश का प्रथम नागरिक बनने की ख्वाहिश मन में पाले बैठे हैं. उन्हें कामयाबी तो नहीं मिली लेकिन उनके इसी जुनून से उनको अलग पहचान जरूर दिलाई है.

काका जोगिंदर सिंह 
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के काका जोगिंदर सिंह ने अपने निधन से पहले तक 350 चुनाव लड़े. इसमें राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल था. उन्होंने विधायक से लेकर राष्ट्रपति तक के 350 से ज्यादा चुनावों में अपनी उम्मीदवारी दर्ज कराई थी. 

के पद्मराजन
तमिलनाडु के सलेम के रहने वाले डॉ. पद्मराजन अभी तक 170 चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन एक भी चुनाव नहीं जीत पाए हैं. इस बार भी उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया है. उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में 'भारत के सबसे असफल उम्‍मीदवार' के रूप में दर्ज है.