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Sharad Yadav Death: लालू के मार्गदर्शक से लेकर उनके विपक्षी फिर सहयोगी तक, जानिए कैसा रहा शरद यादव का राजनीतिक करियर

जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन हो गया. गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांसें लीं. उनकी बेटी ने सोशल मीडिया के जरिए इस बात की जानकारी दी.

जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन
हाइलाइट्स
  • 1974 में बटोरी सुर्खियां

  • विवादों से घिरे रहे शरद यादव

जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का गुरुवार निधन हो गया. शरद यादव की बेटी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए इस बात की जानकारी दी है. 75 साल की उम्र में शरद यादव ने अंतिम सांस ली. शरद यादव बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान रखते थे, अब उनके जाने से हर कोई शोक में डूब गया है. उनकी समाजवाद वाली राजनीति ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया था. गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में उनका निधन हुआ है. 
 
कुछ ऐसा रहा राजनीतिक करियर
एक इंजीनियरिंग स्नातक, यादव पहली बार 1974 में सुर्खियों में आए, जब जय प्रकाश नारायण ने उन्हें गृह राज्य मध्य प्रदेश में संसदीय उपचुनाव में कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी का उम्मीदवार बनाया. शरद यादव को इस चुनाव में जीत हासिल हुई. उसके बात 1977 में उन्हें दोबारा इस सीट से जीत मिली और 1980 में वो इस सीट पर अपना दमखम नहीं दिखा पाए. 
 
लगभग इसी समय, शरद यादव मुलायम सिंह यादव के करीबी सहयोगी बन गए, जो उस समय लोकदल के सदस्य थे. शरद यादव 1986 में लोक दल के राज्यसभा सदस्य बने और फिर मुलायम की मदद से 1989 के लोकसभा चुनाव में बदायूं सीट (यूपी में) जीते.
 
हालांकि, इस समय तक, उनके और मुलायम सिंह यादव के बीच मतभेद पैदा हो गए थे. लेकिन उनके अनुयायी, लालू तब तक बिहार की राजनीति में प्रमुखता से बढ़ चुके थे और राज्य के सीएम बन गए थे. 1991 के लोकसभा चुनावों के दौरान लालू मधेपुरा से यादव को जनता दल के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा. यह पार्टी कई समाजवादी पार्टियों के विलय से बनी थी. शरद यादव ने 2004 तक मधेपुरा सीट पर राज किया, यहां तक कि 1999 में उन्होंने लालू को भी हरा दिया.
 
यादव ने 1999 और 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विभिन्न विभागों को संभाला. 2003 में, वह जनता दल यूनाइटेड जदयू) के अध्यक्ष बने, एक पार्टी जिसमें उनके अन्य पूर्व अनुयायी, नीतीश कुमार शामिल थे. 2004 के लोकसभा चुनाव में हारने के बाद, नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा सीट दिलवाने में मदद की.
 
2009 में, वह फिर से मधेपुरा से लोकसभा के लिए चुने गए. लेकिन 2014 के आम चुनावों में जद (यू) की हार के बाद यादव के नीतीश कुमार के साथ संबंधों में खटास आ गई, भले ही नीतीश कुमार ने फिर से उन्हें राज्यसभा सीट दिलाने में मदद की. 2017 के बिहार विधानसभा चुनावों में, जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू) ने भाजपा के साथ गठबंधन किया तो शरद यादव ने इस गठबंधन को मानने से इंकार कर दिया. जिसके लिए जदयू ने उनके राज्यसभा से निष्कासन की मांग उठा दी. 
 
विवादों से घिरे रहे शरद यादव
अपने लंबे राजनीतिक करियर में शरद यादव कई विवादों से घिरे रहे. 2009 में, जब केंद्र में यूपीए सरकार द्वारा महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया था, तो यादव ने इसका विरोध किया, यह घोषणा करते हुए कि आरक्षण से केवल "परकट्टी" (छोटे बालों वाली) महिलाओं को लाभ होगा और बिल पारित होने पर आत्महत्या करने की धमकी भी दी.
 
2015 में, यादव ने फिर से देश की एक निश्चित पार्टी की महिलाओं के खिलाफ अपनी सेक्सिस्ट टिप्पणी से विवाद खड़ा कर दिया और उनके रंग पर टिप्पणी की. जब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इसका विरोध किया, तो उन्होंने कोई खेद नहीं जताया और कहा, "मुझे पता है कि आप किस तरह की महिला हैं", एक टिप्पणी जिसके लिए उन्होंने बाद में माफी मांगी.
 
2018 में, राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान, यादव ने लोगों से तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आराम करने के लिए कहा क्योंकि "वह मोटी हो गई हैं". उन्होंने कहा, "वसुंधरा को आराम दो, बहुत थक गई है, बहुत मोटी हो गई है, पहले पतली थी. हमारे मध्य प्रदेश की बेटी है."
 
एक और विवाद में, उन्होंने एक बार 2016 में पटना में कहा था, "वोट का सम्मान बेटी के सम्मान से ऊपर आता है". हालांकि महिलाओं विवादों में रहने की एकमात्र वजह महिलाओं पर टिप्पणी ही नहीं थी. 2011 में उन्होंने समाज सेवक अन्ना हजारे का भी मजाक उड़ाया था.