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क्या है रंजीत सिंह मर्डर केस की पूरी सच्चाई, गुरमीत राम रहीम के सर पर कैसे लटकी तलवार

सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक, डेरा प्रमुख को रंजीत सिंह पर डेरा अनुयायियों के बीच एक गुमनाम पत्र प्रसारित करने का संदेह था. पत्र में उन पर डेरा के अंदर महिला अनुयायियों (साध्वी) का यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया था. यह वही पत्र था, जिसे सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने अपनी समाचार रिपोर्ट में उजागर किया था. इसके लिए डेरा प्रमुख ने छत्रपति की हत्या करवा दी थी.

Ram Rahim Ram Rahim
हाइलाइट्स
  • रंजीत सिंह कौन थे और उनकी हत्या क्यों की गई थी?

  • पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाने पर स्टे ऑर्डर क्यों जारी किया?

  • जगसीर की याचिका पर हाईकोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

  • ट्रायल के दौरान तबादला 

  • डेरा प्रमुख के लिए नई मुश्किलें खड़ी करेगा ये फैसला 

  • डेरा प्रमुख के खिलाफ अन्य मामले 

एक विशेष सीबीआई अदालत ने हाल ही में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह और चार अन्य को 2002 में उनके एक अनुयायी रंजीत सिंह की हत्या की साजिश रचने का दोषी ठहराया. रंजीत का बेटा जगसीर, जो उस समय 8 साल का था, के साथ उनकी बहनों और परिवार के अन्य सदस्यों ने लगातार कानूनी लड़ाई लड़ी. 

रंजीत सिंह कौन थे और उनकी हत्या क्यों की गई थी?

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह के कट्टर अनुयायी और हरियाणा के सिरसा में डेरा के प्रबंधकों में से एक रंजीत सिंह की 10 जुलाई 2002 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. थानेसर पुलिस स्टेशन में हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप में एक प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी. 10 नवंबर 2003 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. 3 दिसंबर 2003 को सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की. सीबीआई की जांच में जसबीर सिंह, सबदिल सिंह, कृष्ण लाल, इंदर सेन और डेरा प्रमुख को आरोपी बताया गया था.

सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक, डेरा प्रमुख को रंजीत सिंह पर डेरा अनुयायियों के बीच एक गुमनाम पत्र प्रसारित करने का संदेह था. पत्र में उन पर डेरा के अंदर महिला अनुयायियों (साध्वी) का यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया था. यह वही पत्र था, जिसे सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने अपनी समाचार रिपोर्ट में उजागर किया था. इसके लिए डेरा प्रमुख ने छत्रपति की हत्या करवा दी थी. चूंकि डेरा प्रमुख को उस पत्र के प्रसारित करने के पीछे रंजीत सिंह पर शक था, इसलिए उसने कथित तौर पर उसकी हत्या करने की भी साजिश रची थी.

डेरा प्रमुख के खिलाफ 2007-2008 में रंजीत सिंह हत्याकांड में आरोप तय किए गए थे और फैसला इस साल अगस्त में सुनाया जाना था. लेकिन, रंजीत सिंह के बेटे जगसीर ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर मामले को विशेष सीबीआई अदालत, पंचकुला से स्थानांतरित करने की मांग की. हालांकि, उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी, जिससे पंचकुला में सीबीआई अदालत के लिए आगे बढ़ने और फैसले की घोषणा करने का मार्ग प्रशस्त हुआ.

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाने पर स्टे ऑर्डर क्यों जारी किया?

24 अगस्त को, विशेष सीबीआई कोर्ट (पंचकुला) रंजीत सिंह की हत्या के मामले में फैसला सुनाने से दो दिन पहले, रंजीत सिंह के बेटे, जगसीर सिंह ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर मामले को ट्रांसफर करने की मांग की. जगसीर ने आरोप लगाया था कि सीबीआई के लोक अभियोजक केपी सिंह पहले चंडीगढ़ के विशेष सीबीआई न्यायाधीश के साथ तैनात था, जब पीठासीन अधिकारी वहां तैनात थे. पंचकुला में अपने ट्रांसफर के बाद, वह न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप कर रहा था और पूरी कार्यवाही को प्रभावित कर रहा था. 24 अगस्त, 2021 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान ने विशेष सीबीआई अदालत (पंचकुला) द्वारा अगले आदेश तक फैसला सुनाए जाने पर स्टे ऑर्डर जारी किया था. पीठासीन अधिकारी (सीबीआई कोर्ट, पंचकुला) और लोक अभियोजक केपी सिंह की टिप्पणी भी मांगी गई थी.

जगसीर की याचिका पर हाईकोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

हालांकि 5 अक्टूबर को जस्टिस अवनीश झींगन ने, जगसीर की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि "एक न्यायाधीश को दी गई शक्तियों और निष्पक्ष सुनवाई का संचालन करने के बारे में पता है". लालू प्रसाद यादव बनाम झारखंड राज्य, कैप्टन अमरिंदर सिंह बनाम प्रकाश सिंह बादल, आशीष चड्ढा बनाम आशा कुमारी, मेनका संजय गांधी बनाम रानी जेठमलानी सहित विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि “याचिकाकर्ता की आशंकाओं को तर्कसंगत होने के लिए जांचा नहीं जा सकता है. ये काल्पनिक हैं और अनुमानों पर आधारित हैं. सुनवाई फैसले की घोषणा के चरण में है. याचिकाकर्ता ने अप्रैल, 2021 से विशेष न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई में भाग लिया. स्थानांतरण याचिका की आड़ में याचिकाकर्ता को अपनी पसंद की पीठ रखने या अपनी इच्छा के अनुसार मुकदमे का परिणाम प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. प्रौद्योगिकी की प्रगति और सोशल मीडिया की सक्रियता के साथ, ऐसे वादियों द्वारा लगाए गए आरोपों की बहुत सावधानी से जांच करने की आवश्यकता है. याचिका को गुणदोष रहित बताते हुए खारिज किया जाता है."

ट्रायल के दौरान तबादला 

दो तारीखों को जगसीर सिंह की याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सांगवान ने मामले में आगे की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. “यह मेरे संज्ञान में आया है कि मैं वर्ष 1986-1988 में कुरुक्षेत्र में 02 दीवानी मुकदमों में रंजीत सिंह के साथ-साथ उनके पिता स्वर्गीय जोगिंदर सिंह, सरपंच की ओर से एक वकील के रूप में पेश हुआ था. मुख्य न्यायाधीश से उचित आदेश प्राप्त करने के बाद इस मामले को किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए", न्यायमूर्ति सांगवान ने 2 सितंबर, 2021 को अपने आदेश में यह बात लिखी.

31 मार्च, 2021 को लोक अभियोजक केपी सिंह के तबादले के साथ ही वरिष्ठ लोक अभियोजक पीके डोगरा का चंडीगढ़ तबादला कर दिया गया. केपी सिंह सीबीआई कोर्ट, पंचकुला में एक नामित लोक अभियोजक थे, जबकि  वरिष्ठ लोक अभियोजक, डीएस चावला और  विशेष लोक अभियोजक एचपीएस वर्मा को विशेष रूप से रंजीत सिंह की हत्या के मामले में ट्रायल के उद्देश्य से नियुक्त किया गया था. हालांकि 29 सितंबर को डीएस चावला को भी चंडीगढ़ से वापस भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया.

डेरा प्रमुख के लिए नई मुश्किलें खड़ी करेगा ये फैसला 

गुरमीत राम रहीम सिंह पहले से ही दो महिला अनुयायियों के बलात्कार के लिए 20 साल के कठोर कारावास की सजा काट चुका है. वह सिरसा के पत्रकार राम चंदर छत्रपति की हत्या के मामले में भी आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. रंजीत सिंह की हत्या के मामले में आरोप साबित हो जाने पर, डेरा प्रमुख के जेल से बाहर आने की कोई संभावना नहीं बची है. हाल के दिनों में, डेरा प्रमुख को रोहतक की सुनारिया जेल से कई मौकों पर बाहर निकाला गया है, जिसमें उनकी बीमार मां से मुलाकात और अपने स्वयं के मेडिकल चेकअप ग्राउंड शामिल हैं.

डेरा प्रमुख के खिलाफ अन्य मामले 

डेरा प्रमुख अपने डेरा के अनुयायियों की एक बड़ी संख्या के कथित रूप से नसबंदी कराने के संबंध में एक और सीबीआई मामले का भी सामना कर रहे हैं. 1 फरवरी, 2018 को सीबीआई ने विशेष सीबीआई कोर्ट (पंचकुला) में गुरमीत राम रहीम सिंह और दो डॉक्टरों पंकज गर्ग और एमपी सिंह के खिलाफ डेरा के अंदर अनुयायियों की नसबंदी कराने के लिए आरोप पत्र दायर किया था. चार्जशीट के मुताबिक, डेरा प्रमुख के कहने पर डॉ. गर्ग और डॉ. सिंह ने बड़ी संख्या में अनुयायियों की नसबंदी की थी. उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 326 (स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों या साधनों से गंभीर चोट पहुंचाना), 120-बी (आपराधिक साजिश) और 417 (धोखाधड़ी) के तहत आरोप लगाए गए थे.