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सहारनपुर में 300 साल पुराना साइकस पेड़, मुगलों के जमाने से जुड़े हैं तार.. भारत में अपनी तरह का एकलौता

इस पेड़ की खासियत सिर्फ इसकी उम्र या दुर्लभता तक सीमित नहीं है. यह सहारनपुर की पहचान को वैश्विक स्तर पर ले जाता है. जापान जैसे देश में इसकी प्रजाति का होना बताता है कि यह पेड़ वैज्ञानिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. उद्यान के कर्मचारियों का कहना है कि यह पेड़ न सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित करता है, बल्कि स्थानीय लोगों में प्रकृति के प्रति जागरूकता भी बढ़ाता है.

300 year old tree 300 year old tree

सहारनपुर का सुभाष चंद्र बोस उद्यान सिर्फ हरियाली और शांति का ठिकाना नहीं, बल्कि एक ऐसी रहस्यमयी धरोहर का घर है, जो 300 सालों से इतिहास की कहानियां बयां कर रहा है! यहां खड़ा है ब्रांच साइकस, एक ऐसा पेड़ जो न सिर्फ भारत में अपनी तरह का इकलौता है, बल्कि पूरी दुनिया में केवल दो जगहों पर पाया जाता है. दूसरा ठिकाना? जापान की ओकायामा यूनिवर्सिटी! मुगल काल से जुड़ा यह पेड़ सहारनपुर की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का गहना है. 

मुगलों के जमाने का जीवित साक्षी
सहारनपुर के सुभाष चंद्र बोस उद्यान में खड़ा यह ब्रांच साइकस पेड़ कोई साधारण वृक्ष नहीं है. इसकी उम्र करीब 300 साल है, यानी यह मुगल बादशाहों के दौर से चला आ रहा है! कहा जाता है कि यह पेड़ उस समय की सैर-सपाटों और बागवानी की शौकीन मुगल संस्कृति का हिस्सा रहा होगा. इसकी हर शाखा, हर पत्ती इतिहास की कहानियां समेटे हुए है. उद्यान में इसे किसी बुजुर्ग की तरह संभाला जाता है, और इसे देखने आने वाले लोग इसे "जीवित इतिहास" कहकर पुकारते हैं.

क्या है ब्रांच साइकस की खासियत?
पहली नजर में यह पेड़ ताड़ की तरह दिखता है, लेकिन जरा गौर करें तो यह बिल्कुल अनोखा है. ताड़ के पेड़ों में शाखाएं नहीं होतीं, लेकिन इस ब्रांच साइकस की शाखाएं इसकी पहचान हैं. इन विशाल शाखाओं को सहारा देने के लिए आठ मजबूत पिलर लगाए गए हैं. जैसे-जैसे पेड़ बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इसके पिलर भी बढ़ाए जा रहे हैं, ताकि इस धरोहर को सुरक्षित रखा जा सके. इसकी हरियाली और भव्यता देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.

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दुनिया में सिर्फ दो जगह!
ब्रांच साइकस कोई साधारण प्रजाति नहीं है. यह इतना दुर्लभ है कि पूरी दुनिया में यह सिर्फ दो जगह पाया जाता है- जापान की ओकायामा यूनिवर्सिटी और सहारनपुर का सुभाष चंद्र बोस उद्यान. इसकी दुर्लभता ही इसे खास बनाती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी उम्र का अनुमान पेड़ पर बने रिंग्स से लगाया जाता है. एक साल में एक रिंग बनती है, और इस पेड़ पर करीब 300 रिंग्स हैं, जो इसकी 300 साल की उम्र की गवाही देते हैं.

सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर
यह पेड़ सिर्फ एक वनस्पति नहीं, बल्कि सहारनपुर की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का प्रतीक है. सुभाष चंद्र बोस उद्यान में इसकी देखभाल किसी अनमोल खजाने की तरह की जाती है. उद्यान के कर्मचारी इसे पानी, खाद और सुरक्षा देते हैं, ताकि यह सैकड़ों साल और जीवित रहे. दूर-दूर से पर्यटक और प्रकृति प्रेमी इस पेड़ को देखने आते हैं. कोई इसके साथ सेल्फी लेता है, तो कोई इसके नीचे बैठकर इतिहास की सैर करता है. स्थानीय लोग इसे "सहारनपुर का गौरव" कहते हैं.

क्यों है यह पेड़ इतना खास?
इस पेड़ की खासियत सिर्फ इसकी उम्र या दुर्लभता तक सीमित नहीं है. यह सहारनपुर की पहचान को वैश्विक स्तर पर ले जाता है. जापान जैसे देश में इसकी प्रजाति का होना बताता है कि यह पेड़ वैज्ञानिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. उद्यान के कर्मचारियों का कहना है कि यह पेड़ न सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित करता है, बल्कि स्थानीय लोगों में प्रकृति के प्रति जागरूकता भी बढ़ाता है.

यह ब्रांच साइकस पेड़ हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है. पर्यावरण विशेषज्ञ प्रिया शर्मा कहती हैं, "ऐसी दुर्लभ प्रजातियों को बचाना हमारी जिम्मेदारी है. यह पेड़ हमें याद दिलाता है कि प्रकृति और इतिहास का कितना गहरा नाता है." सहारनपुर के लोग गर्व महसूस करते हैं कि उनके शहर में ऐसा अनमोल खजाना है.

(अनिल कुमार भारद्वाज की रिपोर्ट)