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लावारिस लाशों की वारिस! शालू सैनी ने 500 आत्माओं को दी गंगा में विदाई, कर चुकीं 5000 अंतिम संस्कार 

शालू की कहानी प्रेरणा का एक जीता-जागता उदाहरण है. कोरोना काल में जब लोग डर के मारे अपने रिश्तेदारों की लाशों को छूने से कतरा रहे थे, तब शालू ने बिना किसी डर के इस सेवा को अपनाया. उनका यह मिशन अब तक 5000 लावारिस शवों को सम्मानजनक अंतिम संस्कार दे चुका है!

शालू सैनी शालू सैनी

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की सड़कों पर एक ऐसी महिला का नाम गूंजता है, जिसने इंसानियत की मिसाल कायम की है. शालू सैनी, जिन्हें "लावारिस लाशों की वारिस" कहा जाता है, ने अपने साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट के जरिए एक ऐसा काम किया है, जिसे सुनकर हर कोई दंग रह जाता है. सोमवार, 26 मई 2025 को, शालू ने हरिद्वार के पवित्र सती घाट पर 500 लावारिस शवों की अस्थियों को पूरे रीति-रिवाज के साथ गंगा में विसर्जित किया. 

यह कोई पहला मौका नहीं है, 2019 की कोरोना महामारी से शुरू हुआ उनका यह मिशन अब तक 5000 लावारिस शवों को सम्मानजनक अंतिम संस्कार दे चुका है! हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई- हर धर्म की आत्माओं को उनके रीति-रिवाजों के साथ विदाई देती हैं शालू. उनकी इस अनोखी सेवा ने न सिर्फ नाइजीरिया की गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जगह बनाई, बल्कि इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी उनका नाम दर्ज है.

कोरोना काल से शुरू हुआ मिशन
शालू सैनी की कहानी 2019 में उस वक्त शुरू हुई, जब कोरोना महामारी ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. उस दौर में लोग अपने अपनों की लाशों को छूने से डर रहे थे. सड़कों पर, अस्पतालों में, और नदियों के किनारे लावारिस शव बिखरे पड़े थे. ऐसे में शालू ने ठान लिया कि वह इन आत्माओं को सम्मानजनक विदाई देंगी. उन्होंने साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की नींव रखी और लावारिस शवों का अंतिम संस्कार शुरू किया. चाहे हिंदू हों, जिनके लिए वह श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करती हैं, या मुस्लिम, जिनके लिए वह कब्रिस्तान में दफन की व्यवस्था करती हैं- शालू हर धर्म का सम्मान करती हैं.

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500 अस्थियों का गंगा विसर्जन
शालू बताती हैं कि वह हर 3 से साढ़े 3 महीने में लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करती हैं और उनकी अस्थियों को इकट्ठा करती हैं. फिर अमावस्या के दिन हरिद्वार के सती घाट पर इन अस्थियों को गंगा में विसर्जित करती हैं. 26 मई को उन्होंने 500 से ज्यादा शवों की अस्थियों को पूरे विधि-विधान के साथ गंगा में प्रवाहित किया. शालू कहती हैं, "कई बार परिवार वाले बाद में अस्थियां लेने आते हैं. इसलिए मैं कुछ दिन इंतजार करती हूं. अगर कोई नहीं आता, तो मैं खुद गंगा में विसर्जन करती हूं." इस प्रक्रिया में वह हर आत्मा की पुण्यतिथि भी मनाती हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले.

साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट
शालू की साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट न सिर्फ अंतिम संस्कार का खर्च उठाती है, बल्कि पूरे रीति-रिवाज के साथ यह काम करती है. मुजफ्फरनगर के हर थाने की पुलिस अब शालू से ही संपर्क करती है, जब उन्हें कोई लावारिस शव मिलता है. शालू कहती हैं, "यह महाकाल की दी हुई जिम्मेदारी है. जो लोग इस दुनिया से लावारिस चले जाते हैं, उन्हें कम से कम कफन और सम्मानजनक विदाई तो मिलनी चाहिए." उनके इस काम ने उन्हें स्थानीय लोगों का हीरो बना दिया है.

गिनीज बुक से लेकर सम्मान तक
शालू सैनी का यह नेक काम सिर्फ मुजफ्फरनगर तक सीमित नहीं रहा. उनके नाम नाइजीरिया की गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हैं. उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी उनकी सेवा के लिए उन्हें सम्मानित किया है. शालू कहती हैं, "मुझे यह सम्मान मेरे सहयोगियों और उन लोगों की वजह से मिला, जो इस ईश्वरीय सेवा में मेरे साथ हैं. मैं अकेले यह सब नहीं कर सकती."

कैसे शुरू हुआ यह सफर?
शालू की कहानी प्रेरणा का एक जीता-जागता उदाहरण है. कोरोना काल में जब लोग डर के मारे अपने रिश्तेदारों की लाशों को छूने से कतरा रहे थे, तब शालू ने बिना किसी डर के इस सेवा को अपनाया. वह कहती हैं, "कोई इस दुनिया में कुछ लेकर नहीं आता, और न ही कुछ लेकर जाता है. अगर हम किसी लावारिस आत्मा को सम्मान दे सकें, तो इससे बड़ी सेवा और क्या हो सकती है?" उनकी यह सोच न सिर्फ इंसानियत की मिसाल है, बल्कि समाज को एक नई दिशा देती है.

इंसानियत की मिसाल
शालू सैनी का यह मिशन हमें यह सिखाता है कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं. वह हर धर्म, हर समुदाय के शवों का सम्मान करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि किसी भी आत्मा को लावारिस न छोड़ा जाए. वह कहती हैं, "मैं सभी से अपील करती हूं कि इस सेवा में जुड़ें. हर मृतक को कफन और सम्मान मिलना चाहिए." उनकी यह बात हर उस इंसान को प्रेरित करती है, जो समाज के लिए कुछ करना चाहता है.

शालू का मिशन अभी रुका नहीं है. वह कहती हैं, "जब तक मेरे शरीर में ताकत है, मैं यह सेवा करती रहूंगी." उनकी ट्रस्ट अब और लोगों को इस नेक काम से जोड़ने की कोशिश कर रही है. वह चाहती हैं कि समाज में ऐसी जागरूकता आए कि कोई भी शव लावारिस न रहे. उनके इस काम ने न सिर्फ मुजफ्फरनगर, बल्कि पूरे देश में लोगों को प्रेरित किया है.

शालू सैनी की कहानी हमें यह सिखाती है कि एक इंसान की छोटी सी कोशिश भी समाज में बड़ा बदलाव ला सकती है. उनके इस जुनून ने न सिर्फ हजारों आत्माओं को सम्मान दिया, बल्कि लाखों दिलों को छू लिया. वह कहती हैं, "यह सेवा मेरे लिए ईश्वर का आदेश है. मैं बस उसका पालन कर रही हूं."

(संदीप सैनी की रिपोर्ट)