
प्यार और अपनापन खून के रिश्तों का मोहताज नहीं होता- इस कहावत को सच कर दिखाया गजरात के एक पारसी ने. अहमदाबाद में रहने वाले गुस्ताद बोरजोरजी इंजीनियर का 89 साल की उम्र में निधन हो गया था. लेकिन अपने निधन से एक महीने पहले उन्होंने अपने घर की वसीयत 13 साल की अमीषा माकवाना के नाम कर दी थी. अब, करीब एक दशक बाद, शहर की सिविल अदालत ने वसीयत की कानूनी पुष्टि करते हुए अमीषा को संपत्ति का उत्तराधिकार प्रमाणपत्र (Succession Certificate) जारी कर दिया है.
वसीयत में मिला घर
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, गुस्ताद इंजीनियर कभी टाटा इंडस्ट्रीज से जुड़े हुए थे. वह शाहीबाग स्थित 159 वर्गगज के फ्लैट में रहते थे. उन्होंने 22 फरवरी 2014 को अरने निधन से एक महीने पहले, 12 जनवरी 2014 को वसीयत लिखी थी, जिसमें उन्होंने अपना घर अमीषा माकवाना के नाम कर दिया. इंजीनियर की पत्नी का निधन पहले ही हो चुका था और उनकी कोई संतान नहीं थी.
कौन हैं अमीषा मकवाना?
अमीषा की दादी, इंजीनियर परिवार में बतौर कुक काम करती थीं. छोटी उम्र से ही अमीषा अपनी दादी के साथ उनके घर जाती थीं. वहीं से गुस्ताद इंजीनियर और अमीषा के बीच एक इमोशनल रिश्ता बना. इंजीनियर ने अमीषा की शिक्षा की जिम्मेदारी ली और उन्हें अपनी बेटी की तरह स्नेह दिया. अमीषा ने टाओआई को बताया, "मैं उन्हें 'ताई' कहकर बुलाती थी. वह मेरे लिए मां और पिता दोनों जैसे थे."
अमीषा ने बताया कि इंजीनियर उन्हें गोद लेना चाहते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि अमीषा का धर्म और पहचान बदले. वह चाहते थे कि अमीषा को दोनों परिवारों का प्यार मिले. इसलिए उन्होंने अमीषा को अपनी बेटी की तरह पाला, लेकिन कानूनी गोद नहीं लिया.
अदालत का क्या फैसला?
2023 में अमीषा ने वकील आदिल सैयद के जरिए सिटी सिविल कोर्ट में वसीयत की प्रोबेट याचिका दाखिल की. उन्होंने कहा कि वह इंजीनियर के साथ ही रह रही थीं और उनकी देखभाल कर रही थीं. अदालत ने सार्वजनिक सूचना जारी कर आपत्तियां आमंत्रित कीं, लेकिन किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई. यहां तक कि इंजीनियर के भाई ने भी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) दिया. 2 अगस्त 2025 को कोर्ट ने वसीयत की पुष्टि कर दी और अमीषा के पक्ष में प्रोबेट और उत्तराधिकार प्रमाणपत्र जारी किया.
अब क्या कर रही हैं अमीषा?
आज की अमीषा अब एक प्राइवेट कंपनी में HR डिपार्टमेंट में काम करती हैं. लेकिन उनके जीवन में 'ताई' यानी इंजीनियर साहब की यादें अब भी जीवित हैं. यह मामला साबित करता है कि खून के रिश्तों से परे भी रिश्ते बनते हैं, जो ईमानदारी, प्यार और लगाव पर आधारित होते हैं. गुस्ताद इंजीनियर का यह कदम इंसानियत की एक प्रेरणादायक मिसाल बन गया है.
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