

जिंदगी जब आपसे सब कुछ छीन लेती हैं और आप सब कुछ खोकर भी अपनी हौसला नहीं टूटने देते तब आप असली जंग जीत जाते हैं. शायद इसी तरह से जिंदगी की जंग जीतकर मिसाल कायम कर रही हैं उत्तराखंड के ऋषिकेश की अंजना.
अंजना के पास अब खोने के लिए तो कुछ नहीं है लेकिन उसे पूरा आसमां पाने की चाह है. दरअसल बचपन से ही अंजना के दोनों हाथ नहीं हैं और वो अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वो अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सकी. लेकिन आज विकलांगता के बावजूद वो अपने पैरों से खूबसूरत पेंटिंग्स और स्केचेस बना रही है. अंजना कभी ऋषिकेश के लक्ष्मण झूले पर बैठकर या फिर अपने घर की छोटी सी छत पर बैठकर चित्रकारी करती हैं.
अंजना खासतौर पर सिर्फ भगवान के चित्र ही कैनवास पर उकेरती है. उनके ये चित्र ज्यादातर विदेशी लोग खरीदते हैं. इससे पहले अंजना पैरों की उंगलियों से ही राम नाम लिखा करती थीं. फिर एक दिन विदेशी महिला ने उसे चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया. तब से वो चित्र ही बनाती हैं.
पेंटिंग बनाने से मिलती है उर्जा
उनका कहना है कि भगवान के चित्र बनाने से मुझे असीम ऊर्जा मिलती है. उनका दिन सुबह पांच बजे शुरू होता है. अंजना आठ बजे से चित्र बनाना शुरू करती है क्योंकि वो जहां रहती है वहां पहुंचने में ही उसे दो घंटे का समय बीत जाता है. अंजनी कहती हैं कि खासतौर पर वो श्री कृष्ण और राधा की तस्वीरें बनाती हैं. अंजना के घर में उनकी माता और भतीजा रहते हैं. पिता की कुछ सालों पहले मौत हो गई थी.
पेटिंग करके निकाला घर खर्च
लेकिन अंजना के जीवन का संघर्ष यही नहीं रुका. अपने घर की छत पर श्री कृष्ण की तस्वीर बनाते हुए वे थोड़ी सी भावुक होते हुए बताती हैं कि जब वो पैदा हुई तब कोई खुश नहीं था. हाथ पैर नहीं होने के कारण उनके पापा ने उनकी मां से कह दिया था इस लड़की को फेंक दो. अंजना कहती हैं,"पैदा होते ही मुझे पापा ने अपनाने से मना कर दिया था. मां को कह दिया था कि मुझे फेंक दिया जाए." इन सबके बावजूद अंजना जिंदादिली से अपनी जिंदगी जीती रहीं और अपने लिए रास्ता बनाती रहीं. एक दिन अचानक पिता की तबियत खराब हो गई. डॉक्टर ने बताया कि उनके पिता को कैंसर है, अंजना बताती हैं कि उस दौरान उन्होंने पिता के इलाज के लिए पैसा इकट्ठा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हर संभव चीज की जिससे वो पैसे कमा सकें. कुछ समय तक तो उनके पिताजी ठीक रहे लेकिन उसके बाद उनका देहांत हो गया. अंजना ने परिवार की जिम्मेदारी उठाते हुए अपनी मां, बड़ी बहन और खुद का भी खर्चा पेंटिंग करके उठाया.
चलते रहना जरूरी
अंजना कहती हैं कि भगवान ने मुझे जो दिया है, जैसे बनाया है मैं वैसे ही खुश हूं. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. बस मैंने अपने सफर से यही सीखा है कि चाहे कुछ भी हो जाए कभी हार नहीं मानना है. मैं दूसरों को भी यही सलाह देती हूं कि चाहे कुछ भी हो जाए जिंदगी रुकनी नहीं चाहिए, कुछ न कुछ काम करते रहना चाहिए. आप सफर में टूटेंगे, गिरेंगे , लड़खड़ाएंगे लेकिन चलना जारी रखना होगा तभी आप सुबह के सूरज को देख पाएंगे."