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मरते पौधों में जान ला देगी ये 5 रुपये की नीली चीज, हफ्ते भर में दिखेगा कमाल... जानें कैसे करना है इस्तेमाल

'नीला थोथा' एक शक्तिशाली कवकनाशी है. अगर आपके पौधे की स्थिति गंभीर हो और पौधा मरने की कगार पर हो, तब नीला थोथा संजीवनी की तरह काम करता है. जो कि केवल में 5 रुपये में पंसारी या बीज-भंडार की दुकान पर आसानी से मिल जाता है.

 कॉपर सल्फेट कॉपर सल्फेट

क्या आप भी गर्डनिंग के शौकीन हैं, लेकिन पौधों की देखभाल करने का समय नहीं मिलता, और तो और आपके घर में लगे पौधे सूखने लगे हैं? अगर हां, आपके पौधे और आप इन समस्याओं के जूझ रहे हैं, और समाधान की तलाश में हैं तो अब बेफिक्र हो जाइए, क्योंकि आज हम आपको 5 रुपये की एक ऐसी चीज के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आपके मुरझाए पौधे में फिर से जान ला देगा.

हम बात कर रहे हैं 'नीला थोथा' के बारे में, जिसका वैज्ञानिक नाम कॉपर सल्फेट है. यह एक शक्तिशाली कवकनाशी है. अगर आपके पौधे की स्थिति गंभीर हो और पौधा मरने की कगार पर हो, तब नीला थोथा संजीवनी की तरह काम करता है. जो कि केवल में 5 रुपये में पंसारी या बीज-भंडार की दुकान पर आसानी से मिल जाता है.

ऐसे करें इस्तेमाल...
बता दें कि, नीला थोथा एक केमिकल कंपाउंड है, जिसका इस्तेमाल बहुत सावधानी से करना चाहिए. इसे उपयोग में लाने के लिए लगभग 5 ग्राम नीला थोथा लें और उसे 1 लीटर पानी में घोलें. इसके बाद इसे करीब 12 घंटे के लिए भीगने दें ताकि पानी में अच्छी तरह मिल हो जाए. खास ध्यान रखें कि घोल को बनाने के लिए ऐसे प्लास्टिक या कांच के बर्तन का उपयोग करें जो घर के खाने-पीने के काम में न आता हो. लोहे या स्टील के बर्तन का उपयोग भूलकर भी न करें.

पौधे में डालने से जान लें ये बात
इस घोल को पौधों में सही मात्रा में डालना बेहद जरुरी है. पहले मिट्टी की अच्छी तरह गुड़ाई करें ताकि हवा जड़ों तक पहुंचे, उसके बाद ही लिक्विड को चारों तरफ डालें. सूखी मिट्टी इस दवा को तेजी से सोखती है और जड़ों में बैठे फंगस को खत्म करती है. इस उपाय को करने के मात्र 15 दिनों के भीतर आपको पौधे की टहनियों में नई जान और चमक दिखने लगेगी. अगर फंगस बहुत ज्यादा है, तो 15 दिन बाद दोबारा इस लिक्विड को डालें.

ध्यान दें कि, बड़े पौधे में 5 ग्राम वाला पूरा घोल डाला जा सकता है. लेकिन छोटे पौधों के लिए मात्र 2 ग्राम नीला थोथा प्रति लीटर पानी का हिसाब रखें. घोल डालने से पहले सुनिश्चित करें कि गमले की मिट्टी सूखी हो. वरना इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है.

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