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दिल पर पत्थर रख मां ने निभाया फर्ज! एक साल के दुधमुंहे बेटे को छोड़ देश की रक्षा के लिए सीमा पर पहुंची महिला BSF जवान रेश्मा इंगळे

बीएसएफ की यह महिला जवान उन चुनिंदा बहादुर महिलाओं में से एक हैं, जो देश की रक्षा के लिए हर मोर्चे पर डटकर खड़ी हैं- फिर चाहे वो दुश्मन की गोली हो या अपने बच्चे की रुलाई.

अमरावती की रेश्मा इंगळे अमरावती की रेश्मा इंगळे
हाइलाइट्स
  • बॉर्डर पर रिपोर्ट करने का आदेश 

  • महिलाएं भी देश की रक्षा के लिए खड़ी हैं 

13 मई को अमरावती से एक ऐसा भावुक कर देने वाला दृश्य सामने आया, जिसने देशभक्ति, मातृत्व और कर्तव्य के बीच के संघर्ष को पूरी शिद्दत से सामने रखा. महाराष्ट्र के अमरावती जिले के बोरगांव पेठ की रहने वाली सीमा सुरक्षा बल (BSF) की महिला जवान रेश्मा इंगळे को अचानक बॉर्डर ड्यूटी पर लौटने का आदेश मिला. इस आदेश ने उनके मातृत्व को गहरे परीक्षण में डाल दिया क्योंकि वह महज एक साल के अपने दुधमुंहे बेटे के साथ छुट्टी पर घर आई थीं.

बॉर्डर पर रिपोर्ट करने का आदेश 
रेशमा अपने बेटे को गोद में लेकर खेला रही थीं, ममता बरसा रही थीं, तभी फोन आया आदेश था कि उन्हें तत्काल अमृतसर बॉर्डर पर रिपोर्ट करना है. यह आदेश पहलगाम आतंकी हमले के बाद सीमा पर बढ़े तनाव के चलते दिया गया था. आतंकी हमले में जान गंवाने वालों के बाद भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव की स्थिति है, और ऐसे हालात में सभी जवानों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं.

दिल पर रखा पत्थर 
जैसे ही रेश्मा को ड्यूटी पर लौटने का फरमान मिला, उन्होंने दिल पर पत्थर रख कर निर्णय लिया. बेटे को गोद से उतारा, वर्दी पहनी और ड्यूटी के लिए निकल पड़ीं. रवानगी के समय उनका बेटा बिलख-बिलखकर रोने लगा. उस मासूम की चीख सुनकर आसपास मौजूद हर आंख नम हो गई, लेकिन रेश्मा ने अपने आंसुओं को पोछा और कहा, "देश की सुरक्षा पहले है, परिवार बाद में. मेरा बेटा बड़ा होकर मुझ पर गर्व करेगा कि उसकी मां ने मातृभूमि के लिए अपने मातृत्व का बलिदान दिया."

रेश्मा के इस निर्णय ने हर उस महिला को प्रेरित किया है, जो घर-परिवार और राष्ट्र के बीच संतुलन बनाए रखती है. उनके परिवार वालों के लिए यह क्षण भावनात्मक रूप से बेहद कठिन था, लेकिन वे भी गर्व से भर गए.

महिलाएं भी देश की रक्षा के लिए खड़ी हैं 
बीएसएफ की यह महिला जवान उन चुनिंदा बहादुर महिलाओं में से एक हैं, जो देश की रक्षा के लिए हर मोर्चे पर डटकर खड़ी हैं- फिर चाहे वो दुश्मन की गोली हो या अपने बच्चे की रुलाई.

इस मौके पर उनके गांव वालों और रिश्तेदारों ने भी रेश्मा के इस जज्बे को सलाम किया. स्थानीय लोग कह रहे हैं कि रेश्मा जैसी बेटियां ही असली शेरनियाँ हैं, जो नारी शक्ति की सच्ची मिसाल पेश करती हैं.

गाड़ी में बैठते वक्त की कुछ तस्वीरें भी सामने आई हैं- जिसमें एक तरफ रेश्मा अपने बच्चे को गोद में लेती नजर आ रही हैं, और दूसरी तरफ वह अपने आंसुओं को छुपाकर वर्दी में ड्यूटी पर रवाना होती दिखाई देती हैं. ये दृश्य न सिर्फ दिल को छू जाने वाला है, बल्कि हर देशवासी के मन में गर्व और सम्मान भर देता है.

रेश्मा इंगळे का यह बलिदान देश के हर नागरिक के लिए एक प्रेरणा है. जब मातृत्व और देश सेवा के बीच चुनाव करना पड़े, तब ऐसी मांओं का निर्णय पूरे देश को सिर ऊंचा करने का मौका देता है.

(रिपोर्ट- धनञ्जय बी साबले)