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Delhi Murder Case: श्रद्धा मर्डर केस का सच उगलवाने के लिए हो रहा है ब्रेन मैपिंग पर विचार, जानें कैसे होगा ये टेस्ट

Delhi Murder Case: आफताब पूनावाला का ब्रेन मैपिंग टेस्ट हो सकता है. गुरुवार को आफताब का नार्को टेस्ट हुआ. इस दौरान आफताब से जब पूछा गया कि श्रद्धा का फोन कहां है तो उसने कहा कि उसने कहीं फेंक दिया था.

Brain Mapping test Brain Mapping test
हाइलाइट्स
  • आफताब का हो सकता है ब्रेन टेस्ट

  • सुप्रीम कोर्ट की नजर में है अवैध

Delhi Murder Case: आफताब पूनावाला ने गुरुवार को नार्को टेस्ट के दौरान ये कुबूल किया कि उसने गुस्से में आकर श्रद्धा की हत्या की थी. इससे पहले आफताब का पोलिग्राफ टेस्ट भी हो चुका है. हालांकि, मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, आफताब इंवेस्टीगेशन में ज्यादा मदद साथ नहीं दे रहा है. सबूत के लिए पुलिस को अब ब्रेन टेस्ट करने की भी जरूरत पड़ सकती है. मामले की जांच को पूरी तरह समझने के लिए और इसे एक पुख्ता मामला बनाने के लिए अब ब्रेन मैपिंग पर विचार किया जा रहा है.

ब्रेन मैपिंग क्या है?

सोसाइटी फॉर ब्रेन मैपिंग एंड थेरेप्यूटिक्स के मुताबिक, "इमेजिंग, इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री,  मॉलिक्यूलर और ऑप्टोजेनेटिक्स, स्टेम सेल और सेलुलर बायोलॉजी के उपयोग के माध्यम से ब्रेन और रीढ़ की हड्डी की शारीरिक रचना और कार्य का अध्ययन किया जाता है.” बता दें, न्यूरोइमेजिंग को ब्रेन मैपिंग का हिस्सा माना जा सकता है. ब्रेन मैपिंग को न्यूरोइमेजिंग के एक हाइयर फॉर्म के रूप में माना जाता है.

कैसे आएगा इससे सच सामने?

कई समय पहले से सच्चाई को सामने लाने और अपराधियों की पहचान करने के लिए साइंटिफिक मेथड का इस्तेमाल किया जाता रहा है. इसमें इलेक्ट्रिकल ब्रेन सिग्नल को मापने का काम किया जाता है और सच को सामने लाया जाता है. यही काम आफताब के मामले में भी किया जाएगा.  

बताते चलें कि इसमें एक टेस्ट किया जाता है जिसे P300 वेव टेस्ट या ब्रेन फिंगरप्रिंटिंग के रूप में भी जाना जाता है. इसमें व्यक्ति के ब्रेन में किसी जवाब को देते हुए जो गतिविधि होती है उसे मापा जाता है.  जब व्यक्ति को किसी मामले से संबंधित फोटो या शब्द दिखाया जाता है, तो एक P300 वेव उत्पन्न होती है. इसे ‘P300 वेव’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि तस्वीरों को दिखाए जाने के 300 मिलीसेकंड बाद वेव उत्पन्न होती है. टेस्ट के दौरान उससे कई प्रश्न किए जाते हैं. ब्रेन फिंगरप्रिंटिंग को अमेरिकी आविष्कारक और पहले ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस डॉ. लॉरेंस फरवेल ने अपने नाम पर पेटेंट कराया है. 

कैसे है बाकी टेस्ट से अलग?

बता दें, नार्को टेस्ट की तुलना में ब्रेन-मैपिंग टेस्ट में किसी व्यक्ति को इंजेक्शन लगाने के लिए किसी केमिकल या ड्रग्स की आवश्यकता नहीं होती है. हालांकि पुलिस अपनी मर्जी से यह जांच नहीं करा सकती है. कोर्ट और आरोपियों की इजाजत चाहिए होता है. इसके अलावा इसमें विशेषज्ञों की मौजूदगी में ही टेस्ट किया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट की नजर में है अवैध

गौरतलब है कि 2010 में, सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किया है कि विषय की स्पष्ट सहमति के बिना नार्को-टेस्ट, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ अवैध हैं. जब तक कोई व्यक्ति स्वेच्छा से नहीं बताता है तब तक ये तरीके अनुच्छेद 20(3) में प्रदान किए गए स्व-अपराध के खिलाफ अधिकार और निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. इसके अलावा, 2013 में दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस को अब्दुल करीम टुंडा पर टेस्ट करने की अनुमति नहीं दी थी, क्योंकि लश्कर-ए-तैयबा के गिरफ्तार बम एक्सपर्ट ने अपने बुढ़ापे और स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला देते हुए इसके लिए अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया था.