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बाढ़ की रेत किसानों को बना रही लखपति! फल और सब्जियां उगाकर सोना पैदा कर रहे सुपौल के किसान

बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी नदी का नाम सुनते ही इलाके के लोगों के मन में खौफ और तबाही की तस्वीर उभर आती है. हर साल मानसून के दौरान कोसी की विकराल धाराएं सुपौल सहित बिहार के दर्जनों जिलों में कहर बरपा देती हैं.

कई एकड़ में तरबूज और लौकी की खेती कई एकड़ में तरबूज और लौकी की खेती
हाइलाइट्स
  • कोसी की रेत पर लाखों एकड़ में खेती कर रहे हैं किसान

  • मानसून के साथ कोसी फिर उफान पर आएगी

बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी नदी का नाम सुनते ही इलाके के लोगों के मन में खौफ और तबाही की तस्वीर उभर आती है. हर साल मानसून के दौरान कोसी की विकराल धाराएं सुपौल सहित बिहार के दर्जनों जिलों में कहर बरपा देती हैं. सैकड़ों गांव जलमग्न हो जाते हैं, फसलें बर्बाद हो जाती हैं, घर, मवेशी और संपत्ति बहकर हजारों लोगों को बेघर कर देती है. मगर जब बाढ़ रूपी रौद्रता शांत होती है, तो अपने पीछे दूर-दूर तक रेत का अथाह अंबार छोड़ जाती है. यही रेत सैकड़ों किसानों के लिए वरदान बन जाती है. कोसी की वही रेत, जो कभी विनाश का माध्यम थी, अब तरबूज, खीरा, ककड़ी, कद्दू जैसी सब्जियां और फल उगाने का जरिया बनकर रोजगार और आमदनी का स्रोत बन चुकी है.

कोसी की रेत पर लाखों एकड़ में खेती कर रहे हैं किसान
यह बानगी इंडो-नेपाल सीमा पर बसे सुपौल जिले के भगवानपुर गांव की है. कोसी के बीचोबीच फैले बालू के मैदान पर दूर-दूर तक हरियाली फैली हुई है. यहां किसान फल और सब्जियां उगाकर सोना पैदा कर रहे हैं. नेपाल के कोसी बैराज से लेकर कटिहार के कुरसेला तक फैले क्षेत्र में सुपौल, सहरसा, मधेपुरा समेत दर्जनों जिलों के हजारों किसान कोसी की रेत पर लाखों एकड़ में खेती कर रहे हैं और लाखों की आमदनी कर रहे हैं. हालांकि ये खुशी कुछ ही दिनों की मेहमान है, क्योंकि जून से बाढ़ का मौसम फिर दस्तक देने वाला है और कोसी फिर से अपना रौद्र रूप दिखा सकती है. 

रेत सैकड़ों किसानों के लिए वरदान 
सुपौल के एक किसान सुशील कुमार ने बताया कि कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है. हर साल जून से सितंबर के बीच कोसी अपना विनाशकारी रूप दिखाकर बिहार के कई जिलों में तबाही मचाती है. पूर्वी और पश्चिमी तटबंधों के बीच बसे सैकड़ों गांवों में लाखों लोगों की जिंदगियां प्रभावित होती हैं. जमीन जलमग्न हो जाती है, सड़कों का नामोनिशान मिट जाता है और हजारों लोग बेघर हो जाते हैं. लेकिन कोसी का एक और चेहरा भी है, रोजगार और समृद्धि का. जहां तक नजर जाती है, वहां तक रेत पर हजारों एकड़ में तरबूज, खीरा, ककड़ी, कद्दू, लौकी जैसी फसलों की खेती हो रही है. सैकड़ों लोगों को इससे रोजगार मिला है और लाखों की आमदनी हो रही है.

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कई एकड़ में तरबूज और लौकी की खेती
सुशील कुमार ने बताया कि उन्होंने कई एकड़ में तरबूज और लौकी की खेती की है. उनकी उपज को सिलीगुड़ी, पटना और कोलकाता की मंडियों में भेजा जा रहा है. इलाके के मजदूरों, गाड़ी वालों और किसानों को इस रेत खेती से रोजगार मिल रहा है और अच्छी कमाई हो रही है. ऐसे हजारों किसान हैं जो रेत पर सब्जियां उगा रहे हैं, लेकिन अब उनकी खेती अंतिम चरण में है, क्योंकि कुछ ही दिनों में बाढ़ का खतरा फिर सामने आने वाला है.

कभी दुख का कारण तो कभी सुख का सहारा
उत्तर प्रदेश के बागपत से आए एक किसान ने बताया कि वे लोग रेत पर खेती के अनुभवी हैं. कोसी घूमने आए तो यहां की रेत देख खेती शुरू की. उनके देखादेखी सुपौल सहित कई जिलों के किसान भी रेत पर खेती करके कमाई कर रहे हैं. हालांकि किसान की यह खुशी अब जल्द ही बाढ़ के गम में बदलने वाली है. मानसून के आगमन के साथ ही कोसी फिर से बाढ़ का तांडव रूप धारण करने वाली है. कोसी की यही दोहरी भूमिका कभी दुख का कारण तो कभी सुख का सहारा...इस इलाके की नियति बन चुकी है.

मानसून के साथ कोसी फिर उफान पर आएगी
कोसी, एक तरफ तबाही का पैगाम है तो दूसरी तरफ जीवन की नई उम्मीद भी. यह नदी बिहार के लोगों के लिए एक ऐसी सच्चाई है, जो हर साल डर भी देती है और दुआओं का कारण भी बनती है. हालांकि यह खुशहाली स्थायी नहीं है. जून आते-आते मानसून के साथ कोसी फिर से उफान पर आ जाएगी और यही उपजाऊ रेतीली जमीन एक बार फिर जलसमाधि में समा जाएगी. कोसी का यही दोहरा स्वरूप एक ओर अभिशाप, तो दूसरी ओर वरदान जब ये कहर बरपाती है तो जिंदगी को मुश्किल बना देती है, और जब शांत होती है तो उसी जीवन में हरियाली की सौगात ले आती है.

-रामचंद्र मेहता की रिपोर्ट