
ग्वालियर से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. जहां हाईकोर्ट के जमानत आदेश में ऐसी गलती हो गई, जिसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे. दरअसल, जिस आरोपी को जमानत मिलनी थी, उसकी अर्जी खारिज कर दी गई और जिसे जमानत नहीं मिलनी थी, उसे जमानत दे दी गई. मामला जैसे ही अदालत के संज्ञान में आया… आनन-फानन में पहला आदेश निरस्त कर नया आदेश जारी किया गया.
मामला 7 अगस्त को हल्के आदिवासी की जमानत पर सुनवाई हुई मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की खंड पीठ ग्वालियर में जिसमें 8 अगस्त की सुबह करीब पौने 11 बजे का है, जब कोर्ट ने हल्के आदिवासी नामक आरोपी को जमानत देने का आदेश पारित किया और उसे वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया लेकिन शाम 6 बजे के करीब एक और आदेश अपलोड हुआ, जिसमें लिखा था कि टाइपिंग मिस्टेक के चलते यह आदेश गलत हो गया था.
असल में, जिसे जमानत देनी थी उसका नाम किसी और का था, जबकि आदेश में हल्के आदिवासी का नाम आ गया और जिसे जमानत देनी थी उसकी निरस्त हो गई. यह एक गलती थी. कोर्ट ने तुरंत पहला आदेश रद्द कर दिया और सुनवाई की अगली तारीख जारी की. कानूनी जानकारों का कहना है कि कोर्ट में हर आदेश बेहद संवेदनशील होता है और इस तरह की गलती गंभीर मानी जाती है.
दरअसल विदिशा जिले के त्यौंदा थाना क्षेत्र में 5 जुलाई को एक हत्या का मामला दर्ज हुआ था. आरोप है कि प्रकाश पाल अपनी दुकान पर बैठा था, तभी हल्के आदिवासी और धर्मेंद्र नाम के दो आरोपियों ने डंडे और पत्थरों से हमला कर उसकी हत्या कर दी. इस मामले में हल्के को 8 जुलाई और अशोक को 10 जुलाई को पुलिस ने गिरफ्तार किया. इस मामले में दोनों आरोपियों ने ग्वालियर हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन किया था लेकिन सुनवाई के दौरान अदालत के आदेश में ऐसी गलती हो गई कि जिसे जमानत देनी थी उसकी अर्जी खारिज कर दी गई, और जिसे जमानत नहीं देनी थी उसे जमानत दे दी गई. बाद में समय रहते अदालत को यह त्रुटि पता चली और तुरंत पहले आदेश को निरस्त कर सही आदेश जारी किया गया.
हैरानी की बात ये रही कि आदेश अपलोड होते ही आरोपी के वकील ने जमानत भरवा ली और रिहाई का आदेश जेल तक पहुंच गया लेकिन हाईकोर्ट की तत्परता से आदेश रद्द कर दिया गया और रिहाई रुक गई. अब सोमवार को यानी आज इस मामले में फिर से सुनवाई होगी.
रिपोर्ट- सर्वेश