
क्या आपने कभी सोचा है कि कुत्ते अब सिर्फ जिंदा लोगों को नहीं, बल्कि लाशों को भी ढूंढेंगे? वो भी सुनियोजित ट्रेनिंग के साथ, एक राष्ट्रीय योजना के तहत? मौत की खामोशी को तोड़ने के लिए NDRF की एक खास टीम तैयार हो रही है- 'कैडावर डॉग यूनिट'.
क्या है कैडावर डॉग यूनिट?
एनडीआरएफ यानी नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स देशभर में बचाव कार्यों के लिए जानी जाती है. अब पहली बार, एनडीआरएफ एक ऐसी डॉग यूनिट तैयार कर रही है जो सिर्फ मृत शरीरों (कैडावर्स) या उनके अवशेषों को ढूंढने का काम करेगी. ये यूनिट ‘कैडावर डिटेक्शन’ के लिए विशेष रूप से तैयार की जा रही है, जिसमें सबसे होशियार और संवेदनशील नस्ल के कुत्तों को शामिल किया गया है- बेल्जियन मेलिनोइस और लेब्राडोर.
कहां हो रही है ट्रेनिंग?
इन खास कुत्तों की ट्रेनिंग देश के दो अलग-अलग हिस्सों में हो रही है:
1. अरक्कोणम (तमिलनाडु)- जहां जलप्रलय, भूकंप जैसी आपदाओं में राहत का काम पहले से होता आया है.
2. गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)- जो दिल्ली-एनसीआर के रेस्क्यू बेस के रूप में विकसित हो चुका है.
करीब 6 कैडावर डॉग्स की पहली टीम इन दो जगहों पर पिछले कुछ महीनों से ट्रेनिंग ले रही है.
कैसे होती है ऐसी ट्रेनिंग?
अब सबसे बड़ा सवाल- ये कुत्ते आखिर लाश की गंध कैसे पहचानते हैं? चौंकाने वाली बात ये है कि ट्रेनिंग के लिए असली शव का प्रयोग करना बेहद मुश्किल और संवेदनशील होता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, एनडीआरएफ ने विदेशों से एक खास 'सिंथेटिक सेंट' मंगवाया है, जो सड़ते हुए मानव शरीर की गंध की हूबहू नकल करता है.
इस गंध की मदद से कुत्तों को सिखाया जाता है कि वे कैसे किसी मलबे, जंगल, बाढ़ या भूस्खलन जैसी स्थिति में मृत शरीर की पहचान कर सकें.
कैसे करते हैं शवों की पहचान?
कुत्तों की सूंघने की क्षमता इंसानों से 40 गुना अधिक होती है. अमेरिकी केनेल क्लब के अनुसार, ये कुत्ते:
क्या ये सिर्फ लाशें ही ढूंढ सकते हैं?
जी नहीं, इन कुत्तों को इस तरह तैयार किया जा रहा है कि वे:
कैसे बनेगा कोई डॉग कैडावर डिटेक्टर?
सबसे पहले 6-8 महीने की उम्र का कुत्ता लिया जाता है. उसे बेसिक कमांड्स और इंसानों की गंध की पहचान सिखाई जाती है. फिर सिंथेटिक सेंट के जरिए 'लाश' की गंध सिखाई जाती है. इसके बाद, लगातार ड्रिल के बाद उसे असली घटनाओं में भेजा जाता है.