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चील और गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है शव, बेहद अलग है पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की विधि

Parsis do not bury or cremate their deadbody: भारत के अल्पसंख्यक पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार की दोखमे नशीन परंपरा है. पारसी अग्नि, जल और धरती तीनों को ही पवित्र मानते हैं इसलिए वे लोग अपने समुदाय के लोगो का इन तीनों ही तरीकों से अंतिम संस्कार नहीं करते हैं.

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हाइलाइट्स
  • टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर डेड बॉडी को रख दिया जाता था.

  • शव नोच-नोचकर खा जाते हैं चील-कौव्वे.

पारसियों के बारे में कुछ बातें जो प्रचलित हैं वो ये कि ये लोग बेहद अमीर होते हैं, वे विंटेज गाड़ियों में चलते हैं, लजीजी खाना खाते हैं और बेहद बड़े घरों में रहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं पारसियों में आदमी की मृत्यु होने के बाद उसका अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है.

क्यों शव को दफनाते या जलाते नहीं पारसी?

पारसी धर्म में अंतिम संस्कार का तरीका एकदम अलग है. यहां न तो शव को जलाया जाता है न ही दफनाया जाता है. भारत के अल्पसंख्यक पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार की दोखमे नशीन परंपरा है. इस परंपरा में शव को गिद्धों या अन्य पक्षियों के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है. दरअसल पारसी समुदाय जल, पृथ्वी और अग्नि को काफी पवित्र मानते है. जिस कारण ये लोग मृत देह को जल, पृथ्वी और अग्नि के सुपुर्द नहीं करते हैं. 

मृत शरीर को हाथ भी नहीं लगाते पारसी

मुंबई में टावर ऑफ साइलेंस बनाया गया है. मृत शरीर को आसमान को सौंपने के लिए उसे इसी गोलाकार जगह की चोटी पर रख दिया जाता है. इसके बाद गिद्ध, चील और कौए शव को खा जाते हैं. पारसी समुदाय के लोग मृत शरीर को अपवित्र मानते हैं इसलिए मृत शरीर को हाथ भी नहीं लगाते. यहां समुदाय के ही कुछ खास लोग शव को टॉवर के ऊपर पर छोड़ देते हैं. इस रिवाज को पारसी समाज दुनिया के अन्य समुदाय के मुकाबले इको फ्रेंडली मानता है.

सख्त हैं पारसी समुदाय के नियम

दुनियाभर में पारसी समुदाय की आबादी 1 लाख के करीब है. भारत में पारसियों की संख्या पहले ही बहुत कम है. पारसी धर्म की स्थापना पैगंबर जराथुस्त्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी. भारत में ज्यादातर पारसी समुदाय के लोग मुंबई में रहते हैं. पारसी सिर्फ एक ही ईश्वर पर भरोसा करते हैं. पारसी समुदाय में अगर कोई लड़की दूसरे धर्म में शादी कर लेती है तो वो पारसी नहीं रह जाती.