
भैंस क्लोनिंग में सफलता मिलने के बाद पशु विज्ञान के क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-एनडीआरआई) देश में मवेशियों का क्लोन तैयार करने वाला पहला संस्थान बन गया है. अक्सर गाय को गर्भाधान कराने के लिए सांड की मदद ली जाती है. अगर सांड ना हो तो डॉक्टर इसके लिए कुछ उपाय करते हैं. लेकिन अब इन दोनों से इतर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने नया उपाय खोज लिया है जोकि इनकी क्लोनिंग का है.
NDRI करनाल के वैज्ञानिकों ने देश में पहली बार क्लोन बछिया पैदा की है. गिर नस्ल की इस बछिया का नाम गंगा रखा गया है. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने 2021 में उत्तराखंड लाइव स्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून के सहयोग से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल ने गिर, साहीवाल और रेड-सिंधी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग का कार्य शुरू किया था.
तीन जानवरों का हुआ इस्तेमाल
ये गाय अपनी विनम्र प्रकृति, रोग-प्रतिरोध, हीट-टॉलरेंस और उच्च दूध उत्पादन के लिए लोकप्रिय हैं. इसकी ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको और वेनेजुएला में भी उच्च मांग है. नवजात बछिया का जन्म 16 मार्च को हुआ था और उसका वजन 32 किलो है. गाय के इस बछड़े को पैदा करने के लिए वैज्ञानिकों ने तीन जानवरों का इस्तेमाल किया. अंडाणु को साहीवाल नस्ल से लिया गया था, दैहिक कोशिका गिर नस्ल से ली गई थी और एक सरोगेट पशु एक संकर नस्ल था. वैज्ञानिकों ने दावा किया कि विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी देसी गायों की नस्लों के संरक्षण में यह शोध मील का पत्थर साबित होगा.
वैज्ञानिक डॉ नरेश सेलोकर, डॉ मनोज कुमार सिंह, डॉ अजय पाल सिंह असवाल, डॉ एसएस लथवाल, डॉ सुभाष कुमार चंद, डॉ रंजीत वर्मा, डॉ कार्तिकेय पटेल और डॉ. एमएस चौहान को इस सफलता को हासिल करने में दो साल लग गए.एनडीआरआई के तत्कालीन निदेशक डॉ. चौहान के नेतृत्व में गिर, साहीवाल और रेड शिंडी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग के लिए उत्तराखंड पशुधन विकास बोर्ड (यूएलडीबी), देहरादून के सहयोग से एनडीआरआई द्वारा परियोजना 2021 में शुरू की गई थी. वैज्ञानिकों ने hand-guided क्लोनिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जो दुनिया की अन्य तकनीकों की तुलना में क्लोनिंग का एक किफायती और कुशल तरीका है.
कैसे किया गया प्रोसेस?
वैज्ञानिकों की टीम के प्रमुख डॉ. नरेश सेलोकर ने बताया कि करीब 15 साल से भैंस के क्लोनिंग पर काम कर रहे थे. अनुभव के बाद निर्णय लिया कि कैटल की भी क्लोनिंग करनी चाहिए. डॉ. नरेश सेलोकर ने बताया कि गिर गाय का सेल साहीवाल की ओपीयू से निकाला गया और उसके बाद केंद्रक निकाल दिया. जिस एनीमल गंगा का क्लोन करना था, गिर का क्लोन उसके अंदर डाला. इस विधि में अल्ट्रासाउंड और सुइयों का उपयोग करके जीवित पशु से अंडाणु लिया जाता है. फिर इसे अनुकूल परिस्थिति में 24 घंटे के लिए मैच्योर किया जाता है. फिर उच्च गुणवत्ता वाले गाय की दैहिक कोशिकाओं का उपयोग दाता के रूप में किया जाता है. जोओपीयू- व्युत्पन्न अंडाणु से जोड़ा जाता है. 7-8 दिन के इन विट्रो-कल्चर के बाद, विकसित ब्लास्टोसिस्ट को गाय में स्थान्तरित कर दिया जाता है. इसके 9 महीने बाद क्लोन बछडा या बछड़ी पैदा होता है.
इससे पहले भी हो चुकी है कोशिश