
बॉल पेन और जेल पेन के तेजी से बढ़ते दौर में जब हाथ से लिखने की कला और सुंदर लिखावट एक पिछली पीढ़ी की बात बनती जा रही है, तब भी कुछ लोग ऐसे हैं जो न सिर्फ फाउंटेन पेन की लिखावट से मोहब्बत करते हैं, बल्कि उसे अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा भी बनाए हुए हैं. इन्हीं में से एक इंटरनेशनल फाउंटेन पेन सोसाइटी के सदस्य और पेशे से पीडियाट्रिशन डॉ. विवेक शर्मा हैं. डॉ. विवेक का फाउंटेन पेन के प्रति प्रेम इतना गहरा है कि उन्होंने दुनिया भर से फाउंटेन पेन इकट्ठा कर एक अनोखा और दुर्लभ संग्रह तैयार किया है.
450 से अधिक किस्म के फाउंटेन पेन-
डॉ. विवेक शर्मा के पास इस समय लगभग 450 से अधिक फाउंटेन पेन, 150 तरह की स्याही, 9 एंटीक कलमें और 150 तरह की पेन की निब मौजूद हैं. उनका यह सफर वर्ष 1978 में शुरू हुआ, जब उन्होंने महज 1 रुपया 20 पैसे में अपना पहला फाउंटेन पेन खरीदा था. उस समय वह छठी कक्षा में पढ़ते थे और यह पेन आज भी उनके संग्रह में पूरी तरह सुरक्षित है. यही वह शुरुआती बिंदु था, जब पेन के प्रति उनका लगाव धीरे-धीरे जुनून में बदलता चला गया.
4 पीढ़ियों में बांटे हैं पेन-
डॉ. विवेक बताते हैं कि बीते 80 वर्षों में फाउंटेन पेन की बनावट और इंक भरने की प्रक्रिया में कई बदलाव आए हैं. वे इन पेनों को चार पीढ़ियों में बांटते हैं. सबसे पहली पीढ़ी में टंकी खोलकर स्याही भरने वाला पेन था, इसके बाद सेक्शन से भरने वाला पेन आया, फिर तीसरी पीढ़ी में पीछे से वैक्यूम क्रिएट कर इंक भरने वाले पेन लोकप्रिय हुए और अब चौथी पीढ़ी में रेडीमेड इंक कार्ट्रिज वाले फाउंटेन पेन उपलब्ध हैं. उनके कलेक्शन में फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, इंग्लैंड, तुर्की, चीन जैसे करीब एक दर्जन से अधिक देशों के पेन शामिल हैं.
इनमें दुनिया की प्रतिष्ठित ब्रांड्स जैसे शेफर, पार्कर, वाटरमेन और लेमी के विभिन्न मॉडल शामिल हैं. उनके पास वर्ष 1940 से लेकर 2019 तक के पेन मौजूद हैं, जो हर समय की तकनीकी और डिजाइन प्रवृत्तियों की झलक प्रस्तुत करते हैं. डॉ. विवेक का यह संग्रह केवल दिखावे या शौक का प्रतीक नहीं है, बल्कि वह अपने सभी पेन को नियमित रूप से अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग में लेते हैं, जिससे उनके संग्रह को एक जीवंतता और आत्मा मिलती है.
कौन हैं डॉ. विवेक-
उनके इस अद्भुत कलेक्शन में कई दुर्लभ वस्तुएं शामिल हैं, जिनमें से कुछ तो उनके पारिवारिक इतिहास से भी जुड़ी हुई हैं. डॉ. विवेक के परिवार में पांच पीढ़ियों से डॉक्टर्स रहे हैं और वे स्वयं चौथी पीढ़ी के डॉक्टर हैं. उनके पास जो कुछ दुर्लभ कलमें और कलमदान हैं, वे उन्हें विरासत में मिले हैं. जैसे 1890 की गोल्ड प्लेटेड ओनिक्स मार्बल का कलमदान और 1950 का लकड़ी का बना हुआ सुंदर कलमदान. यही नहीं, उनके पास वह स्याही की गोलियां भी हैं, जिन्हें पानी में घोलकर स्याही बनाई जाती थी. उस दौर में दो गोलियों को एक लीटर पानी में घोलने पर पेन के लिए उपयुक्त स्याही तैयार होती थी. ऐसी कई पुरानी स्याही की बोतलें भी उनके संग्रह का हिस्सा हैं. उनके पास 15 अलग-अलग रंगों की स्याही का भी शानदार संग्रह है, जो उनकी रचनात्मकता और विविधता के प्रति प्रेम को दर्शाता है.
इंटरनेशनल फाउंटेन पेन सोसाइटी के सदस्य हैं विवेक-
इतना ही नहीं, डॉ. विवेक को पुराने और खराब फाउंटेन पेन को ठीक करना भी पसंद है. वे इसके लिए आवश्यक सभी उपकरण अपने पास रखते हैं और पेन की मरम्मत को एक कला मानते हैं. उनके अनुसार हर पुराना पेन एक कहानी कहता है, और जब वह उसे फिर से लिखने लायक बना देते हैं, तो मानो उसकी कहानी दोबारा जीवंत हो उठती है. उनके संग्रह में कुछ पेन ऐसे भी हैं, जिनकी कीमत 45 हजार रुपये तक है, लेकिन उनके लिए हर पेन की अहमियत उसकी कीमत से नहीं, उसकी कहानी और भावनात्मक जुड़ाव से तय होती है.
दिलचस्प बात यह है कि इंटरनेशनल फाउंटेन पेन सोसायटी, जिसके वे सदस्य हैं, उसमें देशभर से केवल 7 सदस्य ही शामिल हैं, जिससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में डॉ. विवेक की विशेषज्ञता और समर्पण कितना विशेष है.
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