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यह महिला घर बैठे बन रही आत्मनिर्भर, जानिए कैसे ऑर्गेनिक साबुन बनाकर कमा रही हजारों रुपए

भोजपुर की महिला विभा देवी गांव की कुछ महिलाओं और लड़कियों को भी आर्गेनिक साबुन बनाने की गुर को सीखा रही हैं. ताकि अन्य महिलाएं, लडकियां किसी पर बोझ ना बनकर खुद आत्मनिर्भर बन सके. जानिए कितने प्रकार का और कैसे बनाता है ऑर्गेनिक साबुन.

Organic Soap/सांकेतिक तस्वीर/Aurelia Dubois/unsplash Organic Soap/सांकेतिक तस्वीर/Aurelia Dubois/unsplash
हाइलाइट्स
  • ऑर्गेनिक साबुन से ड्राई हैंड की समस्‍या होती है दूर

  • 50 रुपए में बिकता है एक साबुन

कोरोना काल के दौरान संक्रमण के प्रकोप ने साबुन और हाथों की साफ-सफाई के महत्व को और अधिक बढ़ा दिया है. बैक्टीरिया और अन्य जीवाणुओं से बचने और स्वस्थ रहने के लिए हाथों को अच्‍छे से धोना बेहद जरूरी है. हालांकि, ज्‍यादा हाथ धोने के कारण कई लोगों की शिकायत होती है कि बार-बार हाथ धोने से स्किन ड्राई हो जाती है. लेकिन अगर आप ऑर्गेनिक साबुन का इस्‍तेमाल करते हैं, तो यह आपकी ड्राई हैंड की समस्‍या को दूर कर सकती है.आज हम आपको कुछ ऐसे ही साबुन बना रही आत्मनिर्भर महिला विभा देवी के बारे में बताएंगे. दरअसल भोजपुर जिले के उदवंतनगर थाना अंतर्गत सरथुआ गांव में एक महिला जो आत्मनिर्भर होकर घर में साबुन का निर्माण करती हैं. इतना ही नहीं अपने गांव की कुछ महिलाओं और लड़कियों को भी इस आर्गेनिक साबुन बनाने की गुर को सीखा रही हैं ताकि अन्य महिलाएं, लडकियां किसी पर बोझ ना बनकर खुद आत्मनिर्भर बन सके.

7 प्रकार की बनाती हैं साबुन

विभा देवी ने बताया कि वो घर में सोप बेस की मदद से सात प्रकार की साबुन बनाती हैं. सबसे पहले लूफा की साबुन तैयार करती हैं, जिसे बनाने के लिए ननुआ के छिलके का इस्तमाल करती हैं. उन्होंने बताया कि नेनुआ के छिलके को छोटा-छोटा काट कर साबुन के अंदर डाल दिया जाता है. इससे शरीर पर जमे मैल (गंदगी ) को छुड़ाने के लिए अन्य किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती. इसी प्रकार नीम और तुलसी के पत्ते को सुखाकर साबुन बनाती हैं. उसके बाद उपटन के साबुन बनाती हैं. जिसमें बेसन, हल्दी, चंदन पाउडर और मुल्तानी मिट्टी डालती हैं. चारकोल के साबुन तैयार करती हैं. उन्होंने बताया कि चारकोल का साबुन चेहरे के लिए सबसे ज्यादा फायदामंद है. इसे लगाने से चेहरे पर पिंपल्स नहीं आते हैं. गुलाब का साबुन बनाने के लिए वो गुलाब फूल का इस्तमाल करती हैं. इसी प्रकार एलोवेरा और संतरा के साबुन भी बनाती हैं.

20 मिनट में तैयार होते हैं साबुन

भोजपुर की महिला विभा देवी ने बताया कि उनको यह सभी प्रकार के साबुन बनाने में करीब 20 मिनट का समय लग जाता है. साबुन बनाने के दौरान विभा बेस, कलर, सुगंधी, तील तेल, जाफर का इस्तमाल करती हैं. सबसे पहले एक बड़े से पतीले में पानी भरी जाती है. उसके बाद उसके अंदर एक छोटा पतीला रख दिया जाता है. उसके बाद छोटे वाले पतीले में सोप बेस का टुकड़ा काट कर डाल दिया जाता है. उन्होंने बताया कि बेस को पिछले तक छोलनी से चलाया जाता है. उसके बाद इसमें कलर, सुगंधी, तील तेल और जाफर मिलाकर चलाया जाता है. करीब 20 मिनट के बाद उसे एक सांचे में डाल दिया जाता है. वहीं ठंडा होने के बाद साबुन तैयार हो जाती है. विभा देवी ने बताया कि वो महीने में करीब 1000 साबुन बनाती हैं. जिसकी कीमत 50 रुपए प्रति साबुन है.

गांव की महिलाओं को भीृ सीखा रही हैं साबुन बनाने का हुनर

सरथुआ गांव निवासी रमेश प्रसाद की पत्नी विभा देवी ने बताया कि हम लोग सभी आत्मनिर्भर होकर काम कर रहे हैं. घर का काम करने के बाद दो तीन घंटे साबुन बनाने में लगाते हैं और दिनभर में करीब 50 से 100 साबुन बना लेते हैं. उन्होंने बताया कि उनके साथ गांव की लगभग 7 महिलाएं और कुछ लड़कियां इस हुनर को सीख रही हैं. उन्होंने आगे बताया कि बामिती पटना में उन्होंने तीन महीने जाकर साबुन बनाने का हुनर सीखा था. अब अपने गांव में सीखा रही हैं. वहीं साबुन बनाने के बाद वो जिले के हर एक कोने तक साबुन को पहुंचाना चाहती है. फिलहाल वो खुद साबुन की बिक्री कर रही है और उनके साथ उनके सहयोगी हर संभव मदद कर रहे हैं. वहीं रमेश प्रसाद एक निजी कंपनी (सूरत) में काम करते हैं.