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पड़ोसियों के ताने सुने लेकिन ट्रेनिंग नहीं छोड़ी...आज दिल्ली में डीटीसी बस चलाती है ये महिला, पति करता है घर का काम

कहते हैं अगर मन में सच्ची लगन हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है. ऐसी ही कुछ कहानी है शर्मीला की. शर्मीला साइकिल चलाना तक नहीं जानती थी. लेकिन जब बच्चे की तबियत खराब हुई तो लगा कि ड्राइविंग आना कितना जरूरी है.

Sharmila Sharmila
हाइलाइट्स
  • सास करती हैं घर के काम

  • 2019 में पूरी की ट्रेनिंग

ड्राइवरी एक ऐसा पेशा है, जिसे समाज पुरुषों से ही जोड़कर देखता है. लेकिन चरखी दादरी जिले के गांव अखत्यारपुरा निवासी शर्मिला ने हैवी ड्राइवर बनकर समाज के सामने नई मिसाल पेश की है. शर्मिला को कभी ट्रैक्टर ड्राइवरी सीखते समय ताने सुने थे. बावजूद इसके शर्मिला का संघर्ष रंग लाया और अब उनकी जॉइनिंग डीटीसी में बतौर चालक हुई है. अब वह दिल्ली की सडकों पर डीटीसी बस दौड़ा रही है.

2019 में पूरी की ट्रेनिंग
हैवी ड्राइवर बनीं महेंद्रगढ़ निवासी शर्मिला की आठवीं पास करते ही चरखी दादरी के गांव अखत्यापुरा में शादी हो गई थी. शादी के बाद दो बच्चे हुए और पति की मजदूरी से काम नहीं चला तो शर्मिला ने सरकारी स्कूल में कुक का काम किया. साथ ही सास के साथ मिलकर भैंस पालकर परिवार का पालन-पोषण किया. शर्मिला ने 2019 के बैच में अपना प्रशिक्षण पूरा किया. परिवार की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने ड्राइवरी सीखने का फैसला लिया था.

लोग करते हैं तारीफ
शर्मिला ने बताया कि बेटे ने उसको साइकिल चलानी सिखाई थी. एक बार बेटा बीमार हो गया और उसके पति को बाइक चलानी नहीं आती थी. बेटे को लगातार अस्पताल ले जाना पड़ता था और एक-दो दिन साथ जाने के बाद परिचितों ने भी मना कर दिया. इसके बाद उसने बाइक सीखी और बाद में हैवी लाइसेंस का प्रशिक्षण लिया. शुरुआत में जब उन्होंने बाइक या ट्रैक्टर चलाना सीखा तो लोगों के ताने सुनने को मिले. लोगों ने उनके मुंह पर बोला कि यह काम पुरुषों का है, न कि महिलाओं का. इन तानों को अनसुना कर उन्होंने अपना प्रशिक्षण जारी रखा और उनका संघर्ष रंग लाया है. शर्मिला का कहना है कि उन्हें ताने देने वाले ही जब ड्राइवरी की तारीफ करते हैं तो उन्हें खुशी होती है.

सास करती हैं घर के काम
चाची सास कमला देवी ने बताया कि शर्मिला ने संघर्ष कर ड्राइवरी सीखी है. उनकी बहू दिल्ली में डीटीसी की बसें चलाती है, ऐसे में उनको शर्मिला पर गर्व है. घर के काम तो सास और पति करते हैं. समय मिलने पर शर्मिला भी घर का काम करती है. वहीं ग्रामीण पवन कुमार ने कहा कि शर्मिला ने संघर्ष करते हुए डीटीसी में नौकरी पाई है. पहले लोग ताने मारते थे, अब गांव की बहू पर उन्हें नाज है कि वह दिल्ली में डीटीसी बस चला रही हैं.

(चरखी दादरी से प्रदीप साहू की रिपोर्ट)