
आजकल की ज़िंदगी में नौकरी करने वाला या कोई भी बिजनस करने वाला या फिर किसी स्टार्ट-अप को शुरू करने वाला, हर कोई वर्क लाइफ बैलेंस की बात करते हैं. वर्क लाइफ बैलेंस का अर्थ होता है कि आप जितना समय काम को दे रहे हैं, उसी तरह निजी ज़िंदगी को भी समय दें. फिर चाहें इसमें परिवार के साथ बैठ या बातें करें. या फिर आप कहीं घूमने जा सकते हैं. यानि तराज़ू के एक तरफ आपका काम और दूसरी तरफ पर्सनल लाइफ हो, और तराज़ू में बैलेंस हो.
फिर भी जारी है बहस
जहां एक तरफ लोग वर्क लाइफ बैलेंस के फेवर में बात करते हैं. तो वहीं रीड हॉफमैन (लिंक्डइन के को-फाउंडर), कहते हैं कि जो लोग वर्क लाइफ बैलेंस को तव्वजो देते हैं, वो काम में जीत को लेकर सीरियस नहीं. इसके अलावा वह तो यहां तक कहते हैं कि किसी भी स्टार्ट-अप की सफलता उसमें लगी अपकी मेहनत और पर्सनल लाइफ के त्याग से आता है.
ग्रेट फाउंडर के ऊपर लेक्चर
रीड हॉफमैन ने स्टैंफर्ड यूनिवर्सिटी में पिछले महीने एक गेस्ट लेक्चर दिया था. इस लेक्चर का नाम का 'हाउ टू बी ए ग्रेज फाउंडर'. इन दौरान उन्होंने कहा कि सफल उद्यमी वही होते हैं, जो शुरुआती सालों में, अपनी कंपनी में सब दांव पर लगा देते हैं. साथ ही उन्होंने चेताया कि स्टार्ट-अप जर्नी बहुत मुश्किल होती है और कई बार बंद रास्ते बीच में आ खड़े होते है.
कैसा था लिंक्डइन का कल्चर
हॉफमैन की फिलोसॉफी केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि इस तरीके ने उनकी कंपनी को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई है. वह बताते हैं शुरुआती सालों में उन्होंने एम्प्लॉय्ज से उम्मीद रखी कि वह लोग परिवार के साथ रात का खाना खाने के बाद, अपना लैपटॉप खोल कंपनी काम के लिए तैयार रहें. यह बात हॉफमैन ने एक पॉडकास्ट में कही.
कल्चर ने बनाया एम्पलॉय्ज को अमीर
लिंक्डइन के इस कल्चर ने कंपनी को वित्तीय रूप से काफी मुनाफा पहुंचाया. साल 2016 में माइक्रोसॉफ्ट ने लिंक्डइन को टेकओवर कर लिया था. इसकी कीमत माइक्रोसॉफ्ट ने 26.2 बिलियन डॉलर चुकाई थी. इससे काफी एम्पलॉय्ज को फायदा पहुंचा. लेकिन हॉफमैन कहते हैं कि कंपनी के करीब शुरुआती 100 एम्पलॉय्ज को तो अब काम करने की ही जरूरत नहीं है.