

बिहार के पूर्णिया जिले के साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले सत्यम सुंदरम ने यह साबित कर दिया है कि अगर हौसला बुलंद हो तो हालात भी आपके सामने झुक जाते हैं. कोलकाता से एमबीए करने के बाद जब उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिली, तब उन्होंने खुद का बिज़नेस शुरू करने का ठान लिया. और इसी सोच ने उन्हें बना दिया ‘बांस का आर्किटेक्चर’ (Bamboo Architect). आज सत्यम न सिर्फ बांस से बोतल, कप और सजावटी सामान बना रहे हैं, बल्कि 200 से ज्यादा तरह के हस्तनिर्मित प्रोडक्ट्स तैयार कर देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुके हैं.
हालात से जंग, पर्यावरण से जुड़ाव
सत्यम सुंदरम का कहना है कि कोविड-19 के दौर ने उनकी सोच पूरी तरह बदल दी. उन्होंने ठाना कि अब वे ऐसा काम करेंगे, जो लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद हो. इसी सोच के साथ उन्होंने मणिपुर और असम जाकर बांस शिल्प (Bamboo Craft) की बारीकियां सीखी. वापस लौटकर उन्होंने बांस आधारित उत्पादों का निर्माण शुरू किया और धीरे-धीरे यह एक बड़े कारोबार का रूप ले लिया.
सत्यम सुंदरम बताते हैं, "कोविड ने हमें सिखाया कि प्रकृति के साथ चलना कितना जरूरी है. हमने सोचा कि शरीर और पर्यावरण के लिए सबसे अच्छा प्लांट-बेस्ड विकल्प बांस हो सकता है. यही सोच हमें इस दिशा में ले आई."
200 से ज्यादा उत्पाद, बढ़ता बाजार
आज सत्यम सुंदरम लगभग 200 से अधिक हस्तनिर्मित बांस के प्रोडक्ट्स बाजार में उतार चुके हैं. इनमें बोतल, कप, प्लेट, गिफ्ट आइटम्स और सजावटी चीजें शामिल हैं. उनकी खासियत यह है कि वे ग्राहक की मांग पर किसी भी आकृति का डिजाइन भी तैयार कर सकते हैं.
सत्यम कहते हैं कि बांस को ग्रीन गोल्ड कहा जाता है, क्योंकि यह कभी खत्म नहीं होता. यह प्लास्टिक का बेहतरीन विकल्प है और सरकार भी इसे बढ़ावा दे रही है.
सड़क से शुरू, उद्योग तक सफर
सत्यम सुंदरम ने अपने कारोबार की शुरुआत सड़क से की. मात्र दो लोगों के सहयोग से शुरू हुई यह यात्रा आज दर्जनों लोगों को रोजगार देने लगी है. उनकी मेहनत और लगन के चलते उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि वे न सिर्फ बांस उत्पाद बना रहे हैं बल्कि युवाओं को प्रशिक्षण (Training) देकर आत्मनिर्भर भी बना रहे हैं.
आज उनके बनाए उत्पादों की डिमांड न सिर्फ बिहार और भारत के अन्य राज्यों में है, बल्कि इन्हें विदेशों में भी निर्यात किया जा रहा है.
कामगारों की जिंदगी बदली
सत्यम के साथ काम करने वाले स्थानीय लोग भी इस पहल से खुश हैं. उनके सहयोगी मुन्ना कुमार और कुलदीप कुमार बताते हैं कि इस काम ने उनकी जिंदगी बदल दी है. पहले जहां रोजगार की कमी से संघर्ष करना पड़ता था, वहीं अब उनकी आमदनी अच्छी हो गई है और परिवार का भविष्य सुरक्षित हुआ है.
एक नई राह, नई सोच
सत्यम सुंदरम की यह यात्रा इस बात का उदाहरण है कि अगर इच्छा शक्ति मजबूत हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं. प्लास्टिक का बढ़ता इस्तेमाल पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए हानिकारक है. ऐसे में बांस आधारित उत्पाद न सिर्फ प्रकृति के अनुकूल हैं बल्कि स्वरोजगार का मजबूत जरिया भी बन रहे हैं.
सत्यम ने यह साबित कर दिया है कि एक अच्छी सोच और कठिन परिश्रम से बड़े बदलाव संभव हैं. आज वे पूर्णिया ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार और देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं.
(स्मित कुमार की रिपोर्ट)