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मेरठ का दिव्यांग ढाबा जहां काम करने वाले सभी लोग दिव्यांग होने के साथ क्रिकेटर भी हैं...करते हैं होम डिलीवरी भी

दिव्यांग ढाबा में जितने भी लोग काम करते हैं वो सिर्फ दिव्यांग ही नहीं है बल्कि क्रिकेटर भी हैं. अमित ने ना सिर्फ इस दिव्यांग ढाबा की शुरुआत की बल्कि अमित मेरठ के पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने मेरठ में दिव्यांग क्रिकेट शुरू करवाया.

दिव्यांग ढाबा दिव्यांग ढाबा
हाइलाइट्स
  • कोई नहीं दे रहा था नौकरी

  • नहीं छूटा जुनून

अमूमन घर वाले अपने बच्चों से कहते हैं कि वह जल्द अपने पैरों पर खड़े हो जाएं लेकिन जब कोई बच्चा दिव्यांग हो तो उसके लिए मां बाप बस दुआ करते हैं. लेकिन दिव्यांगों के लिए अभी भी बहुत संकट है खासकर जब बात रोजगार की हो.

कोई नहीं दे रहा था नौकरी
मेरठ के ऐसे ही कुछ दिव्यांग युवा लगातार नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे थे. उन्हें कोई नौकरी देने को तैयार नहीं था कोई उनसे पूछता कि सीढ़ी कैसे चढ़ोगे तो कोई पूछता कि हमारे सामान की डिलीवरी टाइम पर कैसे करोगे. लेकिन इन सभी युवाओं के लिए एक दिव्यांग युवक आगे आया जो खुद भी नौकरी मांगते मांगते थक चुका था. लेकिन अब उसने यह ठान लिया कि वह सारे दिव्यांग लोगों को इकट्ठा करेगा और खुद कुछ काम करेगा. यहां से शुरुआत हुई दिव्यांग ढाबा की. मेरठ हाईवे पर यह दिव्यांग ढाबा है और ढाबे को शुरू करने वाले हैं अमित कुमार शर्मा. अमित कुमार का बचपन से ही एक पैर खराब है.

कौन संभालता है क्या जिम्मेदारी
आपको बता दें कि इस दिव्यांग ढाबा में जितने भी लोग काम करते हैं वो सिर्फ दिव्यांग ही नहीं है बल्कि क्रिकेटर भी हैं. अमित ने ना सिर्फ इस दिव्यांग ढाबा की शुरुआत की बल्कि अमित मेरठ के पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने मेरठ में दिव्यांग क्रिकेट शुरू करवाया. शावेज नाम का लड़का मेरठ का है वो दिल्ली में खेलता था उसने हमे आकर बताया तो हमने यहां दिव्यांगों का मैच करवाया. पैदा होते ही शावेज का एक पैर काटना पड़ा था. शावेज बताते हैं कि कि वह बचपन में अपने पिता के साथ दिल्ली में लिंब (नकली पैर) लगवाने जाते थे. तभी वहां उन्हें दिव्यांग क्रिकेट के बारे में मालूम हुआ. शावेज के पिता ने भी उनका बहुत साथ दिया. शावेज पहले दिल्ली की टीम से खेलते थे. लेकिन अब मेरठ में दिव्यांग क्रिकेट शुरू होने के बाद वो यूपी की टीम से खेलते हैं.

नहीं छूटा जुनून
इसी ढाबे में काम करने वाले लाल सिंह ढाबा में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में हैं. यहां वो खाने बनाने से लोकर सारे काम करते हैं. लेकिन क्रिकेट की पिच पर लाल सिंह एक मीडियम पेसर हैं. 2007 में एक एक्सीडेंट में उनका एक हाथ खराब हो गया था. गिरीराज सिंह ऑलराउंडर हैं. ढाबे पर भी और फील्ड में भी. गिरिराज कहते हैं कि क्रिकेट का जुनून कभी छूटा ही नहीं. पैर खराब होने के बावजूद न कभी घरवालों ने रोका न वो खुद रुके.

इन जुनूनी दिव्यागों ने अपने पैरों पर खड़े होने की पूरी कोशिश की है. दिव्यांग क्रिकेट और ढाबा दोनो साथ साथ चल रहे हैं. लेकिन अब इनकी निगाहें बीसीसीआई पर टिकी हैं जिसने हाल में दिव्यांग क्रिकेट की रुपरेखा तय करने के लिए एक कमेटी बनाई है.