
क्या आपने कभी सोचा है कि भारत के प्रधानमंत्री की कोई रिटायरमेंट उम्र क्यों तय नहीं है? सिविल सर्वेंट्स 60 साल में रिटायर हो जाते हैं, सुप्रीम कोर्ट के जजों की विदाई 65 पर तय है, लेकिन प्रधानमंत्री चाहें तो 70, 75 या 80 की उम्र तक भी कुर्सी संभाल सकते हैं- बस एक शर्त है, उन्हें संसद का विश्वास हासिल रहना चाहिए. तो क्या यह सही है कि देश चलाने वाले नेता के लिए कोई उम्र की सीमा न हो? या फिर युवाओं को मौका देने के लिए कोई तय उम्र होनी चाहिए? चलिए जानते हैं विस्तार से.
क्यों नहीं है प्रधानमंत्री के लिए रिटायरमेंट उम्र?
भारत के प्रधानमंत्री का पद कोई सरकारी नौकरी नहीं, बल्कि यह एक राजनीतिक पद है. यही वजह है कि भारतीय संविधान में प्रधानमंत्री के कार्यकाल को उम्र नहीं बल्कि संसद और जनता का विश्वास तय करता है.
इसका सीधा मतलब यह है कि-
प्रधानमंत्री बनने की योग्यता क्या है?
संविधान के अनुच्छेद 84 और अनुच्छेद 75 में इसकी शर्तें बताई गई हैं:
क्या उम्रदराज प्रधानमंत्री देश चलाने में अक्षम हो सकते हैं?
बहुतों का मानना है कि अधिक उम्र वाले नेताओं के सामने स्वास्थ्य समस्याएं और बदलते समय के साथ तालमेल बिठाने में मुश्किलें आ सकती हैं. लेकिन इतिहास कुछ और ही कहता है. मोरारजी देसाई ने 81 साल की उम्र में प्रधानमंत्री पद संभाला था. दुनिया भर में भी कई नेता 70-80 की उम्र तक सफलतापूर्वक देश चलाते रहे हैं. यानी अनुभव, समझ और राजनीतिक पकड़ अक्सर उम्र से कहीं ज्यादा मायने रखते हैं.
क्या होना चाहिए प्रधानमंत्री के लिए रिटायरमेंट ऐज?
यह सवाल आज भी बहस का हिस्सा है. एक पक्ष कहता है कि 75 या 80 साल की उम्र तक कोई तय सीमा होनी चाहिए, ताकि युवा नेताओं को मौका मिले और शासन में ऊर्जा बनी रहे. दूसरा पक्ष मानता है कि जब तक नेता सक्षम है और जनता का विश्वास है, तब तक उसकी उम्र कोई मायने नहीं रखती.
साफ है कि भारत में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रिटायरमेंट की उम्र नहीं है और न ही अभी तक ऐसी कोई संभावना दिख रही है. आखिरकार, लोकतंत्र में फैसला जनता और संसद करती है, न कि उम्र. असल सवाल यह नहीं होना चाहिए कि प्रधानमंत्री कितने साल के हैं, बल्कि यह होना चाहिए कि वे कितनी दूरदर्शिता, क्षमता और निष्ठा से देश को आगे बढ़ा रहे हैं.