
क्या आपने कभी ऐसा आम चखा, जिसकी मिठास और खुशबू 110 साल बाद भी वैसी ही हो? मध्य प्रदेश के राजगढ़ का कोठी बाग आज भी कालिया आम की उस मिठास को बरकरार रखे हुए है, जो 1914 में राजा रावत विनय सिंह ने शुरू की थी. इस बाग के रसीले आम न सिर्फ स्थानीय बाजारों में धूम मचाते हैं, बल्कि दिल्ली, जयपुर, मुंबई, इंदौर, भोपाल, और ग्वालियर जैसे शहरों में भी इनकी डिमांड आसमान छू रही है! लंगड़ा, मालदह, और कालिया जैसे आमों की खुशबू और स्वाद ने इसे देशभर में मशहूर कर दिया.
110 साल पहले शुरू हुई मिठास की कहानी
राजगढ़ रियासत के राजा रावत विनय सिंह को आमों का इतना शौक था कि उन्होंने 1914-1916 के बीच कोठी बाग में देश के कोने-कोने से कालिया, लंगड़ा, और मालदह जैसे आमों के पौधे मंगवाए. इन पौधों को उन्होंने अपने बाग में प्यार से रोपा, और तब से यह बाग हर साल मिठास की फसल दे रहा है. छगनसिंह सिसोदिया, राजपूत समाज के प्रमुख, बताते हैं, “राजा साहब के समय ये आम राजदरबार की शान थे. दरबारी और मेहमान इनके स्वाद के कायल थे.” लेकिन 1947 में देश आजाद होने के बाद यह बाग राजगढ़ कृषि विज्ञान केंद्र के हवाले हो गया, और अब यह मिठास जन-जन तक पहुंच रही है.
मिठास का खजाना
आज कोठी बाग में 70-80 साल पुराने पेड़ हर साल रसीले आमों से लद जाते हैं. डॉ. लाल सिंह, वैज्ञानिक, राजगढ़ कृषि विज्ञान केंद्र, बताते हैं, “यहां कालिया आम की क्वालिटी बेमिसाल है. इसके अलावा लंगड़ा और मालदह भी हैं, जो हर साल भरपूर फसल देते हैं. ये आम गुजरात, दिल्ली, मुंबई, इंदौर, भोपाल, और ग्वालियर तक सप्लाई होते हैं.” बाजार में आते ही ये आम शौकीनों की पहली पसंद बन जाते हैं. लोग न सिर्फ इन्हें खरीदते हैं, बल्कि अपने रिश्तेदारों को भी भेजते हैं.
कालिया आम की खासियत
कालिया आम की मिठास और खुशबू ऐसी है कि एक बार चखने वाला इसका दीवाना हो जाता है. असलम राईन, कोठी बाग के ठेकेदार, कहते हैं, “कालिया आम की डिमांड सबसे ज्यादा है. इसकी बनावट, रस, और स्वाद बाकी आमों से अलग है. हर साल हम इसे देश के बड़े शहरों में भेजते हैं.” कोठी बाग का ठेका हर साल लीज पर दिया जाता है, और ठेकेदार मजदूरों की मदद से आम तोड़कर बाजार तक पहुंचाते हैं. राकेश चौधरी, स्थानीय निवासी, बताते हैं, “जब कोठी बाग के आम बाजार में आते हैं, तो लोग टूट पड़ते हैं. जयपुर और दिल्ली तक इनकी मांग रहती है.”
आज भी जिंदा है राजा की विरासत
कोठी बाग सिर्फ आमों का बगीचा नहीं, बल्कि राजगढ़ की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत है. राजमहल और कोठी बाग की तस्वीरें राजा विनय सिंह के उस शौक को बयां करती हैं, जिसने इस बाग को मशहूर बनाया. यहां के देशी आमों की प्रजातियां आज भी संरक्षित हैं, और कृषि विज्ञान केंद्र इनकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ता. बाग में लटके रसीले आम, मजदूरों का आम तोड़ना, और बाजार में लोगों की भीड़- यह सब कोठी बाग की जिंदादिली को दर्शाता है.
देश की हस्तियों का पसंदीदा
कोठी बाग के आमों की मिठास ने कई मशहूर हस्तियों को भी लुभाया है. लखनऊ, दिल्ली, और मुंबई के बाजारों में इन आमों को नाम से जाना जाता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि बड़े-बड़े नेता और व्यापारी इन आमों को खास तौर पर मंगवाते हैं.
कोठी बाग के आमों की सप्लाई का जिम्मा ठेकेदार और व्यापारी उठाते हैं. मई से अगस्त तक बाग में आमों की बहार रहती है. मजदूर पेरनी (लंबी लकड़ी) से आम तोड़ते हैं, फिर उन्हें पाल (पत्तों में ढककर) पकाया जाता है. 7-10 दिन में पकने के बाद ये आम ट्रकों में लदकर देश के कोने-कोने में पहुंचते हैं. डॉ. लाल सिंह कहते हैं, “हमारी कोशिश है कि कोठी बाग की विरासत बरकरार रहे. इसके लिए वैज्ञानिक तरीके से देखभाल की जाती है.”
कोठी बाग सिर्फ आमों की कहानी नहीं, बल्कि राजगढ़ की शान और भारतीय कृषि की ताकत की कहानी है. 110 साल पुरानी यह मिठास साबित करती है कि सही देखभाल और प्यार से प्रकृति के खजाने को सदियों तक जिंदा रखा जा सकता है.
(पंकज शर्मा की रिपोर्ट)