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खुद को निहारते हुए टाइम बर्बाद कर रहे थे बच्चे, स्कूल ने मिरर पर ही लगा डाला बैन, टॉयलेट में लगे शीशे भी हटाए गए

बहुत से लोगों की शीशे में खुद को निहारने की आदत होती है...कुछ लोग तो घड़ी-घड़ी बस आईने में ही देखते रहते हैं...लेकिन लंदन के एक स्कूल में अब बच्चे खुद को शीशे में नहीं देख पाएंगे. क्योंकि इस स्कूल से सभी शीशे निकलवा दिए गए हैं...यहां तक की वॉशरूम से भी शीशे हटवा दिए गए हैं.

School bans mirrors School bans mirrors
हाइलाइट्स
  • शीशे के सामने खड़े होकर समय बर्बाद करते हैं बच्चे

  • कुछ ने किया बदलाव का समर्थन

बहुत से लोगों की शीशे में खुद को निहारने की आदत होती है...कुछ लोग तो घड़ी-घड़ी बस आईने में ही देखते रहते हैं...लेकिन लंदन के एक स्कूल में अब बच्चे खुद को शीशे में नहीं देख पाएंगे. क्योंकि इस स्कूल से सभी शीशे निकलवा दिए गए हैं...यहां तक की वॉशरूम से भी शीशे हटवा दिए गए हैं.

शीशे के सामने खड़े होकर समय बर्बाद करते हैं बच्चे
वेल्टन स्थित विलियम फर्र चर्च ऑफ इंग्लैंड कॉम्प्रिहेंसिव स्कूल के प्रिसिंपल ग्रांट एडगर ने यह नियम इसलिए लागू किया क्योंकि बच्चे स्कूल के टॉयलेट में शीशे के सामने खड़े होकर समय बर्बाद करते थे, और इस वजह से कई बार उनकी क्लास मिस हो जाती थी. कई बार तो वे क्लास में देर से पहुंचते थे.

क्लास में देरी से पहुंचते हैं बच्चे
उन्होंने कहा कि अगर स्कूल में बच्चों के लेट होने की वजह से क्लास दो मिनट भी देरी से शुरू हो रही है, तो विद्यार्थियों को 6.4 दिनों के बराबर सीखने का समय खोना पड़ेगा. एडगर ने बीबीसी को बताया कि जिन बच्चों को "मेडिकल रीजन" के लिए मिरर की जरूरत है वे रिसेप्शन पर जाकर इसका अनुरोध कर सकते हैं. हालांकि स्कूल का यह नियम पेरेंट्स को पसंद नहीं आया है.

कई पेरेंट्स को पसंद नहीं आया नियम
केली नाम की महिला ने टेलीग्राफ को बताया कि उन्हें चिंता थी कि यह अजीब कदम उनकी बेटी के लिए समस्याएं पैदा करेगा, जो कॉन्टैक्ट लेंस पहनती है और ब्रेसेज पहने हुए है. अगर उसे अपने कॉन्टैक्ट लेंस निकालने हैं तो उसे मिरर चाहिए होगा. स्कूल के इस फैसले से समस्या से छुटकारा नहीं मिल सकता है.

कुछ ने किया बदलाव का समर्थन
एक बच्चे की मां ने स्कूल में मिरर बैन करने के फैसले को "मूर्खतापूर्ण" बताया. महिला ने कहा, "वे सिर्फ शीशे हैं, है न? हमारे घर में तो शीशे हैं, तो स्कूल में क्यों नहीं?" एक अभिभावक ने इस बदलाव का समर्थन करते हुए कहा कि ''इससे उनकी बेटी समय पर अपनी कक्षा में जा सकेगी.''

बाल मनोवैज्ञानिक एम्मा केनी के अनुसार, स्कूलों को नियम बनाने का अधिकार है, लेकिन बच्चों को भी इन फैसलों में शामिल किया जाना चाहिए. क्योंकि ये उनके जीवन को भी प्रभावित करते हैं. आप नहीं जानते कि उस बच्चे के जीवन में क्या चल रहा है. बाथरूम वो जगह है जहांपर वह मेकअप के अलावा दाग-धब्बे भी छुपाते हैं.