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होली में भांग खाने और पीने के पीछे की ये है दिलचस्प कहानी, जानें

होली का नाम सुनते ही दिमाग में रंग-गुलाल, स्वादिष्ट-स्वादिष्ट मिठाई, एक से एक बेहतरीन वेज और नॉनवेज के साथ-साथ भांग का नाम आ जाता है... एक गाना भी है भंग का रंग जमा हो चकाचक, फिर लो पान चबाय...

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हाइलाइट्स
  • शिव भगवान को भांग से जोड़कर देखा जाता है

  • किवंदती के मुताबिक अर्थवेद के एक हिस्से में भांग का भी जिक्र किया गया है

होली का नाम सुनते ही दिमाग में रंग-गुलाल, मिठाईयां और तरह तरह के पकवानों का ख्याल आ जाता है, लेकिन एक चीज और है जो होली का जिक्र होते ही ज़हन में आ जाती है और वो है भांग. कहते ये भी हैं कि होली की मजा तब ही है जब भांग का रंग चढ़ा हो. देखा जाए तो आज होली और भांग का रिश्ता भारतीय संस्कृति में हिस्सा बन चुका है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि होली के मौके पर भांग खाने और पीने के पीछे की दिलचस्प कहानी क्या हो सकती है?  

भगवान शिव से नाता

हिन्दू धर्म के  शिव  भगवान को भांग से जोड़कर देखा जाता है. मान्यता है कि एक बार भगवान शिव किसी बात से नाराज हो गए थे और नाराज होने के बाद वो घर से निकल गए.  और वो रास्ता भटक गए, और बगल में ही भांग की खेत थी जहां उन्होंने सोकर रात गुजार दी. जब भगवान शिव सुबह में उठे तो उन्हें भूख लगी और कुछ नहीं मिलने पर भांग को ही खाने लगे.  इसके बाद भांग को भगवान शिव के साथ जोड़कर देखा जाने लगा. 

वेद में भांग का जिक्र

हिन्दू धर्म चारों वेद में आखरी वेद है अथर्ववेद. किवंदती के मुताबिक इस वेद के एक हिस्से में भांग का भी जिक्र किया गया है.  कहा जाता है कि भांग एक औषधीय पौधा है जिसके इस्तेमाल से कई बीमारियों को दूर भी किया जा सकता है. भांग को लेकर ये भी कहा जाता है कि अथर्ववेद के मुताबिक भांग के पेड़ की गिनती धरती के पांच सबसे पवित्र पौधे में होती है. 

राग दरबारी में भांग का जिक्र

भांग (Bhang) के बारे में हिंदी के उपन्यास राग दरबारी ने सबसे खूबसूरत वर्णन किया है. 1970 के दशक में श्रीलाल शुक्ल ने उत्तर प्रदेश के एक गांव की पृष्ठभूमि को पन्ने पर उतारा और इसमें भांग (Bhang) की  खास जगह दी. इसमें भांग (Bhang) ऐसी रमी है कि गांव का कोई गरीब बच्चा जिसे गाय-भैंस के दूध का स्वाद भी न पता हो लेकिन वह भांग (Bhang) का स्वाद जरूर पता होता है. 

हुमायूं को पंसद थी भांग से बनी मिठाई

मुगल बादशाह हुमायूं भी ‘माजूम’ का शौकीन थे. इसे भांग (Bhang) में दूध, घी, आटा और कुछ मीठा मिलाकर बनाया जाता था. वहीं मध्यकाल के मुगलिया दौर में यूनानी चिकित्सा में भी भांग (Bhang) का इस्तेमाल किया जाता था. 

1857 की क्रांति और भांग

भांग का नाता 1857 की क्रांति से भी जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि जब मंगल पांडेय ने विद्रोह का ब‍िगुल फूंका था तो उसके पीछे भांग की भूमिका थी. कहा जाता है कि जब मंगल पांडेय पर विद्रोह का मुकदमा चला तो उन्होंने भांग का सेवन करने की बात बोली थी.