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गीतांजलि बब्बर ने जीबी रोड से निकालकर ऐसे बदल दी जिंदगी, पढ़िए सेक्स वर्करों की कहानी उनकी जुबानी

सेक्स वर्कर्स की तरह जीवन काट रही महिलाओं को गंदी गलियों से निकालकर उन्हें एक छत के नीचे लाने के लिए गीतांजलि बब्बर और उनकी संस्था 'कठ कथा' लगातार मेहनत कर रही है. उसका ही नतीजा है कि आज कोई सिलाई कर अपने पसंद के डिजाइनर कपड़े तैयार कर रहा है, तो कोई अपनी आजादी को गैस पर कुकिंग के जरिए मना रहा है. जानिए सेक्स वर्कर्स के लिए काम करतीं गीतांजलि ने कैसे बदली इनकी जिंदगी.

Geetanjali Babbar Geetanjali Babbar

कभी मजबूरियां ऐसी थी कि जिंदगी ने इन्हें जिंदगी के बारे में सोचने का मौका ही नहीं दिया. किसी को धोखे से, किसी को जबरदस्ती तो किसी को पैसे के लालच में किसी अपने ने ही बेच दिया. सेक्स वर्कर्स की तरह जीवन काटती इन महिलाओं ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके हाथों में कभी उनके मन का काम भी होगा. लेकिन गीतांजलि ने उनकी जिंदगी बदलने की ठान ली थी. 

एनजीओ का साथ छोड़ खुद शुरु की मुहिम

गीतांजली बताती हैं कि पहले वो एक एनजीओ के साथ सेक्स वर्कर्स के लिए काम करती थीं, लेकिन फिर उन्हें एहसास हुआ कि इनकी जरूरत बहुत ज्यादा है. गीतांजली बताती हैं कि कई सेक्स वर्कर अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं, कई खुद पढ़ना चाहती थीं. कई ये काम छोड़कर वहां से निकलना चाहती थीं लेकिन उन सबको इसके लिए रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं था. गीतांजलि बताती हैं कि इस काम में उनका पीरामल फाउंडेशन ने बहुत साथ दिया.

'जब किसी ने मेरा हाथ पकड़ लिया तो बहुत डर लगा'

गीतांजलि बताती हैं कि उन्होंने ये ठान तो लिया कि वो सेक्स वर्कर्स को बेहतर जिंदगी देंगी, उन्हें इस दलदल से निकालेंगी, लेकिन कई बार उन्हें भी कई खतरनाक चीजों का सामना करना पड़ा. वो एक किस्सा बताती हैं कि कैसे जब वो एक कोठे में लोगों से बात कर रही थीं तो एक बुढ्ढे ने उनका हाथ पकड़कर खींचना शुरु कर दिया. बहुत समझाने के बाद भी वो मानने को तै़यार नहीं था फिर उन्हें उस कोठे की मालकिन ने ही बचाया. गीतांजलि बताती हैं कि वो उस दिन बहुत डर गईं थीं.

'नौकरी का झांसा देकर सेक्स वर्कर बना दिया'

यहां जिंदगी गुजर करने वाली एक सेक्स वर्कर बताती हैं कि उन्हें नौकरी का झांसा देकर एक महिला जीबी रोड लेकर आ गई. वहां औरतों का मेकअप देखकर ही मुझे बहुत अजीब लगा. मैंने काम करने से मना किया तो मुझे मारते पीटते थे, कमरे में बंद करके रखते थे. खाना भी नहीं देते थे. ऐसे खाना देते थे जैसे किसी कैदी को दिया जाता था. 25-30 साल यूं ही बीत गए. अब आजाद हूं. जो मन में आता है, खाती-पीती हूं. जिससे मन होता है उससे बात करती हूं. अहमदाबाद गई वहां से कढ़ाई और सिलाई सीखी. मैं चाहती हूं जीबी रोड की और महिलाएं भी यहां आ जाएं.

'अपनी ही बेटी को पाने के लिए लड़ना पड़ा केस'

एक और महिला बताती हैं कि इलाज के नाम पर एक दीदी जीबी रोड लेकर पहुंच गई. जिसको मुझे बेचा गया वो किसी और को बेच रही थी. मेरी उम्र 15 साल थी. मारते पीटते थे, फिर मुझे मजबूरन मानना पड़ा. आखिर में जब मैंने काम छोड़ने का सोचा तो उन लोगों ने मेरी बेटी को मुझे सौंपने से मना कर दिया. अपनी ही बेटी को वापस लेने में केस लड़ना पड़ा. 2-2.5 लाख रुपए खर्च हो गए. लेकिन यहां जब से हम आए हैं, मेरी जिंदगी बदल गई है. पहले मेरी बेटी मुझसे बात नहीं करती थी. अब जब ये काम छोड़ा तो बेटी भी बात करने लगी है.

गीतांजलि बताती हैं कि वो लगातार कोशिश में लगी हुई हैं. अब तक उन्होंने 25 औरतें और 55 बच्चों को इस दलदल से बाहर निकाला है.