
मुजफ्फरपुर के तिरहुत प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय से प्रशाखा पदाधिकारी के पद से रिटायर हुए चंद्रशेखर कुमार ने यह दिखा दिया कि असली शिक्षक कभी रुकता नहीं है. जहां ज्यादातर लोग रिटायरमेंट के बाद आराम करना और अपनी निजी जिंदगी जीना पसंद करते हैं, वहीं चंद्रशेखर ने अपनी पेंशन और अनुभव का इस्तेमाल गरीब और जरूरतमंद बच्चियों की पढ़ाई के लिए करना शुरू किया.
सावित्रीबाई फुले के नाम पर शुरू हुआ शिक्षण केंद्र
साल 2022 में देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि पर चंद्रशेखर कुमार ने अपने मित्र, पूर्व बैंक अधिकारी महेश्वर प्रसाद सिंह के साथ मिलकर "सावित्रीबाई फुले शिक्षण केंद्र" की नींव रखी. यह पहल खासकर उन बच्चियों के लिए है, जो सरकारी स्कूल तो जाती हैं, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण कोचिंग या ट्यूशन नहीं ले पातीं.
10 बच्चों से शुरू हुआ सफर, अब 250 से अधिक पहुंचे तक
शुरुआत में इस केंद्र में सिर्फ 10 बच्चे पढ़ते थे, लेकिन आज तक 250 से अधिक बच्चे इस शिक्षण केंद्र से जुड़ चुके हैं. वर्तमान में करीब 50 बच्चे नियमित रूप से पढ़ाई कर रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बेटियां शामिल हैं. चंद्रशेखर बताते हैं कि कई मजदूर परिवार बेटे की पढ़ाई पर ध्यान देते हैं, लेकिन बेटियों को नजरअंदाज कर देते हैं. इस सोच को बदलने के लिए यह केंद्र काम कर रहा है.
बेटियों के लिए बना उम्मीद की किरण
यह शिक्षण केंद्र पूरी तरह निःशुल्क है. बच्चों को किताबें, कॉपियां और अन्य पढ़ाई की सामग्रियां चंद्रशेखर कुमार अपनी पेंशन से खुद उपलब्ध कराते हैं. उनके साथ चार और शिक्षक भी जुड़े हुए हैं, जिनमें शशि भूषण का भी अहम योगदान है.
बच्चियों की जुबानी उनकी नई कहानी
इस केंद्र में पढ़ने वाली सोना कुमारी और खुशबू कुमारी कहती हैं, हमारे घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, पढ़ाई छूटने की कगार पर थी. लेकिन चंद्रशेखर गुरुजी ने हमें संभाला. अब हम पढ़-लिखकर बड़े अधिकारी बनना चाहते हैं.
सिर्फ पढ़ाई नहीं, सोच भी बदल रहे चंद्रशेखर कुमार
चंद्रशेखर कुमार का मिशन केवल शिक्षा देना नहीं है, बल्कि समाज की सोच को भी बदलना है. वे कहते हैं, "अगर हम एक भी बेटी को पढ़ा पाए, तो समझिए देश की नींव को मजबूत कर पाए."
-मणि भूषण शर्मा की रिपोर्ट