
घर से लेकर दफ्तर तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बनता जा रहा है. अगर आधुनिक तकनीक एक शरीर है तो एआई उसके दोनों बाज़ू बन गया है. इस बात पर अब भी लोगों में मतभेद है कि एआई समाज के लिए वरदान है या दो-दूनी चार के फॉर्मुले से फैलता हुआ कोई अमीबा, लेकिन इस बात पर लगभग हर कोई एकमत है कि कला के क्षेत्र में एआई का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.
आलोचकों का कहना है कि कला एक इंसान की आत्मा की अभिव्यक्ति होती है और जब एआई के पास आत्मा ही नहीं, तो वह कला को कैसे जन्म दे सकती है. हाल ही में तमिल कलाकार धनुष ने एआई के जरिए अपनी फिल्म रांझना का क्लाइमैक्स बदले जाने की प्रखर आलोचना की. उन्होंने सोशल मीडिया का रुख करते हुए कहा कि वह पहले ही इसपर अपना ऐतराज़ ज़ाहिर कर चुके थे लेकिन फिर भी निर्माता यह बदलाव करने के फैसले पर अडिग रहे.
यह पहली बार नहीं है कि एंटरटेनमेंट आर्ट्स के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया गया हो. हाल के दिनों में एआई की मदद से कई फिल्में बनाई जा चुकी हैं. कई गाने, यहां तक कि पूरी-पूरी एल्बम भी बनाई जा चुकी हैं. एक ओर जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानों की अभिव्यक्ति के इस क्षेत्र को 'दूषित' कर रहा है, वहीं सात दशक पहले ब्रिटेन के लेखक जॉर्ज ऑर्वेल ने इसकी भविष्यवाणी भी कर दी थी. सिर्फ यही नहीं, ऑर्वेल ने इससे होने वाला नुकसान का अंदेशा भी दे दिया था.
एआई आर्ट पर क्या लिख गए ऑर्वेल?
जॉर्ज ऑर्वेल ब्रिटेन के रहने वाले थे और उन्होंने 1949 में '1984' नाम की किताब लिखी थी. यह किताब एक ऐसे देश के बारे में थी जिसपर 'बिग ब्रदर' नाम के तानाशाह की पार्टी राज करती थी. पार्टी हर वक्त हर नागरिक पर नज़र रखती थी और कोई भी हरकत या विचार उससे छिपा नहीं रहता था. 1984 की कहानी का मुख्य किरदार विंस्टन स्मिथ बिग ब्रदर की नीतियों का विरोधी होता है और कहानी यहीं से आगे बढ़ती है.
एआई ऑर्वेल की इस दुनिया का एक अहम हिस्सा है लेकिन संगीत को लेकर यह कहानी एक अहम सबक सिखाती है. दरअसल 1984 में विंस्टन अपने कमरे की खिड़की से नीचे खड़ी एक महिला को एक गाना गाता हुआ सुनता है. इस गाने में बोल होते हैं, संगीत होता है, लेकिन कोई मतलब नहीं होता. जॉर्ज ऑर्वेल की 1984 की दुनिया में एक मशीन है जिसे "वर्सीफिकेटर" कहा जाता है. यह मशीन "नकली" संगीत बनाती है, यानी ऐसे गीत जो "बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के रचे गए हैं."
यह वर्सीफिकेटर सिर्फ म्यूजिक डिपार्टमेंट के पास होता है. म्यूजिक डिपार्टमेंट के बाहर संगीत बनाना प्रतिबंधित होता है. जॉर्ज ऑर्वेल की कहानी का यह हिस्सा इस बात की ओर इशारा करता है कि एआई भावनाओं को महसूस नहीं कर सकती इसलिए उसके बनाए हुए संगीत में किसी तरह के गहरे मायने नहीं होते. एआई आर्ट के आलोचकों का कहना है कि अगर इसके ज़रिए कला का प्रोडक्शन जारी रहा तो आने वाले 'ऑर्वेलियन' काल में आर्ट पूरी तरह अपना मतलब खो देगी.
1984 का अहम हिस्सा है एआई
ऑर्वेल ने अपनी किताब का नाम 1984 यह दिखाने के लिए रखा था कि निकट भविष्य में तकनीक इंसानों की दुनिया को बदल देगी. सरकारें कई तरीकों से हमारे जीवन को कंट्रोल करेंगी और हम पर नज़र रखेंगी. सरकार के विचार से मतभेद रखने वालों को बगावत की भारी कीमत चुकानी होगी. यह दिखाने के लिए ऑर्वेल की यह किताब एआई के कई अन्य प्रयोग दिखाती है.
1984 में सरकार टीवी के ज़रिए लोगों पर नज़र रखती है. एआई के इस्तेमाल से सरकारी आंकड़ों को बदला जाता है और सच साबित करने वाले सभी दस्तावेज़ों को नष्ट कर दिया जाता है. यहां तक कि अखबारों को भी बदल दिया जाता है. यह किताब कई तरीकों से बताती है कि अगर एआई का सही इस्तेमाल न किया जाए तो यह टेक्नोलॉजी जीना दूबर कर सकती है.