
पान का जिक्र हो और कत्थे की बात न हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है? पान का वो लाजवाब स्वाद, जो मुंह में घुलते ही ताजगी और सुकून देता है, उसका राज है कत्था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये कत्था आता कहां से है और बनता कैसे है?
दरअसल, मध्यप्रदेश का आगर मालवा, जहां का पठारी इलाका अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, वहां की पहाड़ियों पर खेर के पेड़ हर तरफ छाए हुए हैं. ये खेर का पेड़ ही है, जिसकी लकड़ी से बनता है वो कत्था, जो पान का स्वाद दोगुना कर देता है.
खेर का पेड़ गर्म जलवायु और कम पानी वाले इलाकों में पनपता है, और यही वजह है कि आगर मालवा की पहाड़ियां इसके लिए सबसे मुफीद जगह हैं. इन पेड़ों की लकड़ी का रंग कत्थई होता है, जो देखने में जितनी आकर्षक है, उतनी ही स्वाद और सेहत के लिए फायदेमंद भी.
खेर के पेड़ की पत्तियां छोटी-छोटी, सिर्फ 2-3 मिलीमीटर लंबी होती हैं, और इन पर खिलने वाले फूल सफेद, रुई जैसे और लंबे दिखते हैं. पेड़ की छाल के नीचे छिपी होती है वो खास लकड़ी, जिसे चंदन की तरह घिसकर कत्था तैयार किया जाता है. स्थानीय लोग इन पेड़ों की लकड़ी को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर दूर-दूर तक भेजते हैं, जहां से ये देशभर के पान प्रेमियों तक पहुंचता है.
पान का स्वाद और सेहत का राज
पान का स्वाद कत्थे के बिना अधूरा है. आगर मालवा के पान दुकानदार हेमराज गवली बताते हैं, "कत्था सिर्फ स्वाद ही नहीं बढ़ाता, बल्कि ये पाचन तंत्र के लिए भी बहुत फायदेमंद है. पान में सबसे पहले कत्था लगता है, फिर चूना और बाकी सामग्री. बिना कत्थे के पान का कोई मोल नहीं!" स्थानीय जानकार रामेश्वर और हरिनारायण यादव का कहना है कि खेर की लकड़ी से बना कत्था न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि ये प्राकृतिक और शुद्ध भी है.
खेर के पेड़ों पर मंडराता खतरा
लेकिन इस स्वाद की कहानी में एक चिंता भी छिपी है. लगातार जंगलों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन ने खेर के पेड़ों को खतरे में डाल दिया है. अगर इनका संरक्षण नहीं किया गया, तो आने वाले समय में हमें नकली और केमिकल युक्त कत्थे का इस्तेमाल करना पड़ सकता है. यह न केवल पान के स्वाद को प्रभावित करेगा, बल्कि सेहत के लिए भी हानिकारक हो सकता है. स्थानीय लोग और जानकार अब इन पेड़ों के संरक्षण की मांग कर रहे हैं, ताकि मालवा की ये अनमोल धरोहर बची रहे.
जंगल से पान तक
खेर के पेड़ों से शुरू होने वाली कत्थे की यात्रा जंगल की पहाड़ियों से लेकर आपके पान की दुकान तक पहुंचती है. लकड़ी को काटकर, उसे घिसकर और फिर प्रोसेस करके बनाया गया कत्था देश के हर कोने में भेजा जाता है. आगर मालवा की ये पहाड़ियां न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना हैं, बल्कि भारत के पान प्रेमियों के लिए एक अनमोल तोहफा भी.
आगर मालवा का खेर का पेड़ और उससे बनने वाला कत्था सिर्फ एक स्वाद की कहानी नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का हिस्सा है. अगर हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी इस शुद्ध और प्राकृतिक स्वाद का आनंद ले सकें, तो इन पेड़ों का संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत है.
(रिपोर्टर: प्रमोद कारपेंटर)