Telephobia (Representative Image/Unsplash)
Telephobia (Representative Image/Unsplash) फोन की घंटी बजते ही 21 साल की श्वेता कौशिक का दिल धक-धक करने लगता है. चाहे वह डेंटिस्ट का कॉल हो या किसी अनजान नंबर से, श्वेता फोन उठाने से पहले सौ बार सोचती हैं. उनकी यह आदत कोई अकेली नहीं है. आज की टेक-सैवी जेन Z (1990 के अंत और 2010 की शुरुआत में जन्मी पीढ़ी) में फोन कॉल से डरने की समस्या तेजी से बढ़ रही है. इसे कहते हैं टेलीफोबिया- फोन कॉल का डर! आखिर क्यों नई पीढ़ी फोन कॉल से इतना घबराती है?
वायरल हुआ टेलीफोबिया का मुद्दा
यह मुद्दा तब सुर्खियों में आया जब कंटेंट क्रिएटर उप्टिन सईदी (2.35 लाख फॉलोअर्स) ने सीएनबीसी को दिए एक इंटरव्यू में दावा किया कि 75% जेन Z फोन कॉल से बचते हैं. उनका यह रील 20 लाख से ज्यादा बार देखा गया और सोशल मीडिया पर तहलका मच गया. कमेंट्स की बाढ़ आ गई, जिसमें यूजर्स ने फोन कॉल को "घुसपैठ करने वाला" और "घबराहट पैदा करने वाला" बताया. एक यूजर ने लिखा, "फोन कॉल मुझे पैनिक अटैक देता है!" तो दूसरे ने कहा, "मैं तो कॉल के बजाय 10 टेक्स्ट भेजना पसंद करता हूं."
आखिर क्यों डरती है जेन Z?
उप्टिन के मुताबिक, जेन Z दोस्तों या परिवार के साथ फोन पर बात करने में सहज है. लेकिन अनजान नंबर, बॉस का कॉल, या फोन इंटरव्यू जैसी चीजें उनके लिए डरावनी हैं. खासकर स्टूडेंट्स के लिए फोन पर प्रोफेशनल बातचीत करना एक चुनौती है. उप्टिन ने अपने वीडियो में कहा, "वे कभी भी फोन पर बात करने की प्रैक्टिस नहीं कर पाए."
कोविड-19 महामारी ने इस डर को और बढ़ा दिया. जब आमने-सामने की बातचीत रुक गई, तो टेक्स्ट, डीएम, और वॉयस मैसेज नॉर्मल हो गए. फोन कॉल में जहां तुरंत जवाब देना पड़ता है, वहीं टेक्स्टिंग में समय मिलता है सोचने और जवाब तैयार करने का. डॉ. मीनाक्षी मनचंदा, एशियन हॉस्पिटल की साइकियाट्री डायरेक्टर, कहती हैं, "जेन Z तेज, विजुअल, और कंट्रोल्ड कम्युनिकेशन के साथ बड़ी हुई है. फोन कॉल में रियल-टाइम इमोशनल एनर्जी चाहिए, जिसके लिए वे तैयार नहीं हैं."
डिजिटल डिस्ट्रैक्शन्स का बोझ
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, आज का युवा नोटिफिकेशन्स और डिजिटल डिस्ट्रैक्शन्स की बमबारी झेल रहा है. डॉ. प्रवीण गुप्ता, फोर्टिस हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी डायरेक्टर, कहते हैं, "टेक्नोलॉजी ने कनेक्शन के अनगिनत तरीके दिए, लेकिन साथ ही लगातार रुकावटें भी. फोन कॉल से बचना कई लोगों के लिए अपनी मेंटल स्पेस को बचाने और सोशल प्रेशर को कम करने का तरीका है." गलत बोलने या जज किए जाने का डर भी इस टेलीफोबिया को और बढ़ाता है.
दुनिया भर में फोन कॉल की क्लासेस!
कुछ देश इस समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं. यूके के नॉटिंघम कॉलेज ने खास क्लासेस शुरू की हैं, जहां स्टूडेंट्स को फोन कॉल करने और फोन एटिकेट सीखने की ट्रेनिंग दी जाती है. इन क्लासेस में रोल-प्लेइंग सेशन होते हैं, जैसे लोकल शॉप या रेस्टोरेंट को कॉल करना. यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया (यूएस) ने भी अपने कोर्स में फोन एटिकेट मॉड्यूल जोड़ा है.
टेलीफोबिया से कैसे निपटें?
मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि टेलीफोबिया से निपटने के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी), एक्सपोजर एक्सरसाइज, और ग्रुप सेशन मददगार हो सकते हैं. लेकिन आप घर पर भी कुछ आसान तरीकों से शुरुआत कर सकते हैं:
बता दें, टेलीफोबिया कोई छोटी-मोटी समस्या नहीं है. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी बढ़ रही है, वैसे-वैसे यह डर भी बढ़ सकता है. लेकिन अच्छी खबर यह है कि इसे समझा जा रहा है, और संस्थान से लेकर मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स तक इस पर काम कर रहे हैं.