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यहां पर थी महिलाओं को ब्रेस्ट ढ़कने की मनाही और ब्रेस्ट साइज के हिसाब से देना पड़ता था टैक्स!

इस कुप्रथा का एक महिला ने डटकर मुकाबला किया. इसका नाम था नांगेली, नांगेली त्रावणकोर के चेरथला की रहने वाली थीं. दिखने में खूब सुंदर. उसका नाम उसकी सुंदरता पर ही पड़ा. प्रथा के मुताबिक दूसरी दलित महिलाओं की तरह उनको भी सार्वजनिक स्थानों पर अपने स्तन को खुला रखने के लिए मजबूर किया गया. लेकिन उन्होंने इस कुप्रथा का डटकर मुकाबला करने का फैसला किया.

ब्रेस्ट टैक्स ब्रेस्ट टैक्स
हाइलाइट्स
  • महिलाओं को अपने स्तन ढ़कने के लिए अपने ब्रेस्ट की साइज के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ता है.

  • इसलिए त्रावणकोर की निचली जाति की महिलाएं सिर्फ कमर तक कपड़ा पहन सकती थी

आज पूरे देश में हिजाब को लेकर विवाद हो रहा है. ये विवाद कर्नाटक से निकलकर देश के दूसरे राज्‍यों में भी फैल चुका है. महिलाओं के सर ढ़कने की ये लड़ाई कोई नई नहीं है. इतिहास के पन्नों को पलटेगें या गूगल पर सर्च करेंगे तो पाएंगे कि एक वक्त ऐसा था जब महिलाओं को अपने स्तन ढ़कने की भी मनाही थी.  मनाही ऐसी कि महिलाएं अगर अपने स्तन ढ़क लें तो उन्हें अपने ब्रेस्ट की साइज के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ता है. बात 19वीं सदी की है , अगर कोई दलित महिला अपने स्तन ढ़क लेती थी तो छाती पर लगे कपड़े या ब्लाउज को चाकू से खींचकर फाड़ दिया जाता था. यानी महिलाओं  के साथ इस तरह की ऊंच नीच और भेदभाव की दास्तां कोई नई नहीं है. ये काफी पुरानी है. आईये इसके बारे में जानते हैं. 

दलित महिलाएं चुकाती थीं ‘ब्रेस्ट टैक्स’

1729 में मद्रास प्रेसीडेंसी में त्रावणकोर साम्राज्य की स्थापना हुई.  जाहिर है नया साम्राज्य बना तो नियम-कानून  भी बने होगें. इसी में एक कानून बना टैक्स वसूलने का. इसमें सबसे अजीब और हैरान करने वाला टैक्स था ब्रेस्ट टैक्स. ये कर दलित और ओबीसी वर्ग की महिलाओं पर लगाया गया

ब्रेस्ट साइज के हिसाब से टैक्स

त्रावणकोर की निचली जाति की महिलाएं सिर्फ कमर तक कपड़ा पहन सकती थी. अफसरों और ऊंची जाति के लोगों के सामने वे जब भी गुजरती उन्हें अपनी छाती खुली रखनी पड़ती थी.  अगर महिलाएं छाती ढ़कना चाहें तो उन्हें इसके बदले ब्रेस्ट टैक्स देना होगा. इसके दो नियम थे. पहला जिसका ब्रेस्ट छोटा उसे कम टैक्स और  दूसरा जिसका  ब्रेस्ट बड़ा उसे ज्यादा टैक्स. इस टैक्स का नाम था  मूलाक्रम.

चाकू से फाड़ देते थे महिलाओं के कपड़े

यहां पर अगर कोई निचली जाति की महिला अपने ब्रेस्ट को ढ़क लेती थी तो इसकी जानकारी राजपुरोहित तक पहुंच जाती थी. पुरोहित एक लंबी लाठी लेकर चलता था जिसके सिरे पर एक चाकू बंधी होती थी.  वह उसी से ब्लाउज खींचकर फाड़ देता था. और फटे हुए कपड़े को पेड़ों पर टांग देता था. यह एक तरह का संदेश था कि कोई भी दलित महिला अपने स्तन को ढकने की कोशिश ना करे.  

नांगेली की बहादुरी

इस कुप्रथा का एक महिला ने डटकर मुकाबला किया. इसका नाम था नांगेली, नांगेली  त्रावणकोर के चेरथला की रहने वाली थीं. दिखने में खूब सुंदर. उसका नाम उसकी सुंदरता पर ही पड़ा. प्रथा के मुताबिक दूसरी दलित महिलाओं की तरह उनको भी सार्वजनिक स्थानों पर अपने स्तन को खुला रखने के लिए मजबूर किया गया.  लेकिन उन्होंने इस कुप्रथा का डटकर मुकाबला करने का फैसला किया.

जब नांगेली ​बगावत पर उतरी

नांगेली ने सार्वजनिक  जगहों पर जाते समय हर समय अपना स्तन ढकना शुरू कर दिया.  इससे बड़ी बिरादरी के लोग उनसे चिढ़ने लगे. लेकिन नांगेली को किसी की परवाह नहीं थी. नांगेली के पति ने भी उनको सपोर्ट किया. राजा को ये महसूस हुआ कि  पूरा दलित समुदाय कहीं न बगावत कर दे. उसने नांगेली और उसके पति से जबरन टैक्स वसूलने के लिए अपने लोगों को भेजा. 

अफसरों को पत्ते पर सजाकर सौंप दिया अपना कटा स्तन

राजा के आदेश पर टैक्स लेने अफसर नांगेली के घर पहुंच गए. पूरा गांव नांगेली के घर इकट्ठा हो गया .अफसर बोले, "ब्रेस्ट टैक्स दो, किसी तरह की माफी नहीं मिलेगी. " नांगेली बोली, 'रुकिए मैं लाती हूं टैक्स. ' नांगेली अपनी झोपड़ी में गई.  बाहर आई तो लोग दंग रह गए.  अफसरों की आंखे फटी की फटी रह गई.  नांगेली केले के पत्ते पर अपना कटा स्तन लेकर खड़ी थी. अफसर ने जब कटा हुआ मांस का टुकड़ा देखा तो कांप उठे, और वहां से भाग गए.  लगातार ब्लीडिंग से नांगेली जमीन पर गिर पड़ी और फिर कभी न उठ सकी.   इस पर एक शॉर्ट मूवी भी बन चुकी है  जिसे आप देख सकते हैं, नाम है मुलाक्रम. 

नांगेली की चिता में कूदकर पति ने दी जान

नांगेली की मौत के बाद उसके पति चिरकंडुन ने भी चिता में कूदकर अपनी जान दे दी. ये मात्र भारतीय इतिहास में किसी पुरुष के 'सती' होने की  घटना है. लेकिन इस घटना के बाद विद्रोह  शुरू हो गया. जगह जगह हिंसा शुरू हो गई. नांगेली की कर्बानी बेकार नहीं गई, महिलाओं ने अपने बदन को ढ़कना शुरू कर दिया. और राजा ने हार मान ली. उन्हें घोषणा करनी पड़ी कि अब नादर जाति की महिलाएं बिना टैक्स के ऊपर कपड़े पहन सकती हैं.