
भक्ति और परंपरा का संगम
कोढण्यापुर से शुरू होने वाली माता रुक्मिणी की पालकी यात्रा महाराष्ट्र की सबसे प्राचीन और पवित्र परंपराओं में से एक है. यह यात्रा 33 दिनों की लंबी पदयात्रा है, जिसमें हजारों वारकरी संप्रदाय के अनुयायी पंढरपुर में भगवान विट्ठल और माता रुक्मिणी के दर्शन के लिए पैदल चलते हैं. केसरिया ध्वज थामे, भजन-कीर्तन और नृत्य के साथ वारकरी अमरावती के बियानी चौक से गुजरते हैं, जहां हर साल भक्तों का सैलाब उमड़ता है. इस बार भी चौक भक्तिरस और उत्साह से सराबोर था. यशोमती ठाकुर ने परंपरानुसार पालकी का फूलों से स्वागत किया और फुगड़ी जैसे पारंपरिक खेलों ने माहौल को और रंगीन बना दिया.
यशोमती ठाकुर ने कहा, “यह पालकी यात्रा सिर्फ धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक है. इस बार सैनिकों की पत्नियों का सम्मान कर हमने देशभक्ति को भी इस भक्ति से जोड़ा है.”
सैनिकों की पत्नियों का सम्मान
इस साल की वारी का सबसे प्रेरणादायक पल था पूर्व सैनिकों की पत्नियों का सम्मान. देश की सीमाओं पर अपनी जान की बाजी लगाने वाले वीरों के परिवारों को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी पत्नियों को मंच पर बुलाया गया. उन्हें शाल और श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया गया, जिसने न केवल श्रद्धालुओं के दिलों को छुआ, बल्कि देशभक्ति की भावना को भी प्रबल किया. एक स्थानीय वारकरी, रमेश पाटिल ने कहा, “सैनिकों और उनके परिवारों का सम्मान देखकर लगा कि यह वारी अब सिर्फ भक्ति का मेला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता का उत्सव है.”
431 साल पुरानी परंपरा का जादू
माता रुक्मिणी की पालकी यात्रा 431 वर्षों से अनवरत चली आ रही है. यह परंपरा महाराष्ट्र के लोगों के लिए सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व है. कोढण्यापुर से पंढरपुर तक की यह यात्रा भक्ति, एकता और समर्पण का प्रतीक है. रास्ते में भक्त नाचते-गाते, भजन-कीर्तन करते हुए आगे बढ़ते हैं. पालकी की आरती, भक्तों का उत्साह और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन इस यात्रा को अविस्मरणीय बनाती है.
इस साल बियानी चौक पर पालकी के स्वागत के दौरान स्थानीय युवाओं और महिलाओं की भागीदारी ने माहौल को और जीवंत कर दिया. फूलों की मालाओं से सजी पालकी और भक्तों की भक्ति ने अमरावती की सड़कों को भगवान विट्ठल और माता रुक्मिणी की महिमा से गुंजायमान कर दिया.
सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का मंच
इस पालकी यात्रा की खासियत यह है कि यह अब सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं रह गया है. यह सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का एक ऐसा मंच बन चुका है, जहां भक्ति के साथ-साथ समाज सेवा और देशभक्ति का संदेश भी दिया जाता है. पूर्व सैनिकों की पत्नियों का सम्मान इसका जीता-जागता उदाहरण है. यह पहल समाज को यह संदेश देती है कि देश के लिए बलिदान देने वालों का सम्मान हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है.
माता रुक्मिणी की पालकी यात्रा न केवल आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह सामाजिक एकता को भी मजबूत करती है. यह यात्रा हर साल हजारों लोगों को एकजुट करती है, जो धर्म, जाति और वर्ग से ऊपर उठकर भक्ति में डूब जाते हैं. इस बार सैनिकों के परिवारों का सम्मान इस यात्रा को और भी खास बना गया.
(धनंजय साबले की रिपोर्ट)