

आरती देवी-देवताओं की कृपा पाने का सबसे सरल और आसान साधन है. हर पूजा-अर्चना में आरती सबसे आखरी में की जाती है. आरती से ही हर पूजा पाठ का समापन होता है. आइए जानते हैं आरती की थाली में क्या-क्या होना चाहिए और आरती करते वक्त कौन-कौन सी सावधानियां रखनी चाहिए?
क्या है आरती की महिमा
भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आरती करना सबसे उत्तम विधि है. पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान का समापन आरती से करने का मतलब यही है कि अब पूजन समाप्त हो गया है. मंदिरों में आरती शंख, ध्वनि, घंटे, घड़ियाल के साथ होती है, जिससे कई शारीरिक कष्ट दूर होते हैं और नई मानसिक ऊर्जा मिलती है. शास्त्र कहते हैं कि आरती करने से ही नहीं आरती देखने भर से बहुत पुण्य मिलता है. घर में कपूर से और मंदिरों में दीपक से आरती करने का विधान है.
आरती की थाली सजाने के तरीके
आरती की थाली सजाने के लिए किसी भी धातु की एक थाली लें. थाली में रोली से स्वास्तिक बनाएं. थाली में सुंदर सा फूल रखें. थाली में घी और सफेद रुई की बत्ती का दीपक रखें. विष्णु जी की आरती में पीले फूल रखें. देवी और हनुमान जी की आरती में लाल फूल रखें. शिव जी की आरती में फूल के साथ बेलपत्र भी रखें. गणेश जी की आरती में दूर्वा जरूर रखें. घर में की जाने वाली नियमित आरती में पीले फूल रखना ही उत्तम होगा.
आरती करते समय बरतें ये सावधानियां
आरती की शुरुआत शंख बजाकर ही करनी चाहिए. आरती हमेशा ऊंची स्वर में एक लय में गाएं. आरती हमेशा खड़े होकर ही करें. आरती होते समय बातें न करें. आरती में घंटी और ताली एक लय में बजाएं. आरती के बीच में रुकना नहीं चाहिए. आरती लेते समय सर ढक कर रखें.आरती लेने के 5 मिनट बाद तक पानी का स्पर्श न करें.
आरती का महत्व
आरती सुर, लय और राग में गाई जाती है. इसके पीछे धार्मिक कारण है कि संगीत में आरती भक्तों को प्रसन्न करती है. संगीत हर स्थिति में मन को सुकून देने वाला होता है. धर्मग्रंथों में कई प्रसंग हैं, जिनमें भगवान की प्रार्थना में आरती की महिमा बताई गई है. वाद्य यंत्रों के साथ-साथ भगवान की स्तुति सही सुर में गाने का विशेष महत्व है. ऐसी स्तुति गान से देवी-देवता शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. वेदों में आरती के नियम बताए गए हैं. स्कंद पुराण में कहा गया है, मंत्र हीनम क्रिया हीनम यत्कृतं पूजनम हरे सर्व सम्पूर्ण तामिती कृत्य निराजनी शिवम. इसका अर्थ है कि मंत्रहीन और क्रियाहीन पूजा भी आरती से पूर्ण हो जाती है.
आरती का अर्थ
आरती का अर्थ है भाव. बहुत हृदय से की गई उपासना को आरती बोलते हैं. जो लोग पंचोपचार विधि या शोधशोपचार विधि से ईश्वर की आराधना नहीं कर पाते हैं, उनके लिए कहा गया है कि वे सिर्फ आरती अपने भाव द्वारा कर लें तो पूरी पूजा का फल मिलता है. बिना आरती के कोई भी पूजा अपूर्ण मानी जाती है. कहते हैं यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन आरती कर लेता है तो भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर देते हैं. आरती करना सेहत के लिए भी लाभदायक है. शरीर ऊर्जावान होता है. मानसिक प्रबलता मिलती है. महसूस होता है कि ईश्वर की कृपा मिल रही है.