
क्या आपने कभी सुना है उस मंदिर के बारे में, जहां पानी का रंग बदलकर भविष्य की भविष्यवाणी करता है? जी हां, हम बात कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में स्थित माता खीर भवानी मंदिर की, जो कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी और आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. यह मंदिर न केवल अपनी आध्यात्मिक शक्ति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल भी पेश करता है. हर साल ज्येष्ठ अष्टमी पर यहां लगने वाला खीर भवानी मेला देश-विदेश से हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है.
एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर
गांदरबल जिले के तुलमुला गांव में बने खीर भवानी मंदिर को माता राग्न्या देवी को समर्पित माना जाता है, जिन्हें माता पार्वती का एक रूप कहा जाता है. इस मंदिर का नाम पड़ा है 'खीर' से, क्योंकि श्रद्धालु माता को खीर और दूध चढ़ाकर उनकी कृपा पाते हैं. मंदिर के बीचों-बीच एक पवित्र कुंड है, जिसके पानी का रंग बदलना इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य है.
कहते हैं कि जब कुंड का पानी सफेद या गुलाबी होता है, तो यह शुभ संकेत देता है, लेकिन जब यह लाल या काला हो जाता है, तो यह किसी अनहोनी की चेतावनी माना जाता है. हाल ही में 2022 में, जब कश्मीरी पंडित राहुल भट की हत्या हुई, कुंड का रंग लाल हो गया था, जिसे अशुभ माना गया. लेकिन इस साल 2025 में, कुंड के गुलाबी रंग ने श्रद्धालुओं में नई उम्मीद जगाई है.
इतिहास और पौराणिक कथा
ऐसी मान्यता है कि खीर भवानी मंदिर की स्थापना स्वयं हनुमान जी ने की थी, जब उन्होंने लंका से माता की मूर्ति को यहां स्थापित किया. एक अन्य कथा के अनुसार, एक स्थानीय पंडित रघुनाथ गदरू को माता ने स्वप्न में दर्शन दिए और इस पवित्र स्थल की स्थापना का निर्देश दिया. 19वीं सदी के अंत में डोगरा शासक महाराजा प्रताप सिंह ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, जिसे बाद में महाराजा हरि सिंह ने और भव्य बनाया. मंदिर की वास्तुकला और प्राकृतिक सुंदरता इसे कश्मीर घाटी का एक अनमोल रत्न बनाती है.
ज्येष्ठ अष्टमी और खीर भवानी मेला
हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को यहां खीर भवानी मेला लगता है, जो कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के बाद सबसे बड़ा हिंदू उत्सव माना जाता है. इस साल 3 जून 2025 को शुरू होने वाले मेले में हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं, भले ही हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भय का माहौल पैदा किया हो. स्थानीय मुस्लिम समुदाय इस मेले में पूजा सामग्री और दूध बेचकर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करता है. माता को खीर और दूध चढ़ाने की परंपरा और हवन के साथ यह मेला कश्मीरियत की भावना को जीवंत करता है.
इस साल पहलगाम हमले और भारत-पाकिस्तान के बीच चार दिन की सैन्य तनातनी ने श्रद्धालुओं के मन में डर पैदा किया. फिर भी, कश्मीरी पंडितों की आस्था अडिग रही. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी हाल ही में मंदिर में पूजा-अर्चना की और मेले के लिए पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था का भरोसा दिलाया.
हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद भी इस मंदिर की देखभाल स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने की, जो कश्मीर की सांप्रदायिक सौहार्द की जीवंत मिसाल है. मेले के दौरान मुस्लिम दुकानदार पूजा सामग्री बेचते हैं, और यह एकता हर बार कश्मीरियत की मिसाल बनती है.
खीर भवानी मंदिर श्रीनगर से लगभग 30 किमी दूर तुलमुला में स्थित है. नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मू है, जहां से बस या टैक्सी से मंदिर पहुंचा जा सकता है. मंदिर की शांत वादियां और पवित्र कुंड इसे पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए खास बनाते हैं. अमरनाथ यात्रा के दौरान भी कई श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं.
मंदिर के कुंड का रंग बदलना वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से रहस्यमय है. श्रद्धालु मानते हैं कि यह माता का संदेश है.
खीर भवानी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि कश्मीर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है. आतंकी खतरों के बावजूद श्रद्धालुओं की भीड़ और हिंदू-मुस्लिम एकता इस मंदिर को और खास बनाती है.