
हिमाचल में कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव इस बार इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. वजह है कुल्लू के अंतर्गत आने वाले निरमंड के तांदी गांव के देवता कुईकांडा नाग का 365 साल बाद ढालपुर मैदान में मनाए जाने वाले दशहरा उत्सव में आगमन. हजारों श्रद्धालुओं की आस्था और युवाओं की प्रबल इच्छा शक्ति के आगे आखिर देवता ने भी सहमति दी और करीब 150 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा कर कुल्लू पहुंचे.
काफी पुराना है दशहरा उत्सव का इतिहास-
जाहिर है कुल्लू दशहरा उत्सव का इतिहास काफी पुराना है. 1660 में पहली बार यहां दशहरा उत्सव मनाया गया था. उस समय पहली बार देवता कुईकांडा नाग ने उत्सव में भाग लिया था. लेकिन फिर किसी कारण दशहरा यात्रा रुक गई. अब क्षेत्र के युवाओं और हारियानों की मांग पर देवता ने इस साल फिर से आना स्वीकार किया.
ढालपुर मैदान पहुंचा देवता का रथ-
ढोल-नगाड़ों की गूंज और पारंपरिक रीति-रिवाजों के बीच देवता का रथ जब ढालपुर मैदान पहुंचा तो मानो पूरा कुल्लू आस्था की भीड़ में डूब गया. 800 से अधिक लोग पैदल यात्रा में साथ चले जबकि मार्ग में हर गांव से एक व्यक्ति की भागीदारी अनिवार्य रही. गौरतलब है कि देवता कुईकांडा नाग किसी भी छत, दरवाजे या सुरंग से नहीं गुजरते, इसलिए रास्ते और व्यवस्था विशेष रूप से तय की गई. हर गांव को तय क्रम के अनुसार देवता का रथ उठाने की जिम्मेदारी दी गई. देवता कुईकांडा नाग को बूढ़ी नागिन माता का सबसे बड़ा पुत्र और नौ नागों के मुखिया के रूप में पूजा जाता है. इन्हें सूखा, महामारी और प्राकृतिक आपदा से बचाव करने वाला देवता माना जाता है.
पहली बार दशहरा शुरू होने के बाद पहुंचे- गोविंद
पुजारी गोविंद ने बताया कि वे लोग पहली बार दशहरे शुरू होने के बाद यहाँ पहुंचे हैं. उनका सफर करीब 150 किलोमीटर पैदल का रहा और इसमें सबसे लंबी यात्रा कुईकंडा नाग जी की रही. इस बार खास बात यह रही कि दोनों पंचायतों के युवाओं ने इच्छा जताई कि जब सारे देवी-देवता दशहरे में आते हैं तो हम क्यों पीछे रहें. युवाओं के आग्रह पर देवता जी राजी हुए और हम सबने मिलकर व्यवस्था बनाई. आज लगभग वे सभ करीब 800 लोग यहाँ रघुनाथ जी के दरबार में भजन-कीर्तन कर रहे हैं. देवता जी और मुख्य सामग्री पूरी तरह पैदल, लोगो के कंधों पर यहाँ तक लाई गई. समूचे क्षेत्र में मान्यता है कि कुईकंडा नाग जी आपदा निवारण के देवता हैं. जब भी सूखा पड़ता है या विपत्ति आती है, तो उनसे प्रार्थना करने पर बारिश होती है. हाल ही में आई हिमाचल प्रदेश की भारी बारिश के दौरान भी उनकेहिरीगढ़ क्षेत्र की दो पंचायतों में न कोई घर गिरा और न जान-माल का नुकसान हुआ. जब बारिश बहुत तेज हुई तो वे देवता जी के मूल स्थान पर इकट्ठा हुए और उनसे प्रार्थना की. यकीन नहीं करेंगे कि सिर्फ चार घंटे बाद बारिश थम गई और तब से केवल हल्की-फुल्की फुहारें ही पड़ीं.
पैरों का दर्द दूर हो गया- पदम सिंह
देवता के साथ आये पदम सिंह ने बताया कि उनकी उम्र अब 70 साल होने वाली है, इसलिए इतना लंबा पैदल सफर चलना आसान नहीं था. लेकिन फिर भी हम चले और देवता जी की कृपा से हमें कोई कष्ट नहीं हुआ. टांगों में दर्द था, वो भी ठीक हो गया. हम चौथे दिन सही सलामत यहाँ तक पहुँच गए, और आगे भी देवता जी हमें पहुँचाएंगे. जैसे यहाँ तक लाए, वैसे ही आगे भी ले जाएंगे।यह गाड़ी से आने वाला सफर नहीं है. अगर गाड़ी से आते तो एक दिन में पहुँच जाते, लेकिन यहाँ पैदल यात्रा में हर इंतज़ाम खुद करना पड़ता है खाना-पीना, सोना, सब कुछ रास्ते में ही तय करना पड़ा. यह सब देवता जी की देन है, क्योंकि उनके पास किसी चीज़ की कमी नहीं है. यहाँ बुज़ुर्ग से लेकर जवान तक सब पैदल आए. और यह भी सच है कि देवता जी खुद बुद्धि लगाते हैं. जो पहले कहता है कि मैं नहीं जाऊँगा, उसके मन में भी इच्छा जाग उठती है और वह कहता है. मैं भी जाना चाहता हूँ.
देवता संग कुल्लू दशहरा पैदल पहुंचे एक अन्य बुज़ुर्ग जगदीश चंद ने बताया कि देवता के साथ आये साभी लोग आज पहकी बार कुल्लू दशहरा पहुंचे है. आज तक उनमें से यहां कोई नहीं आया है, जो हो रहा है सब देवता की मर्ज़ी से हो रहा है. इसे कुल्लू ज़ीला का गढ़पति कहा जाता है. साथ ही इसे दिल्ली तक के लोग मानते है.
(मनमिंदर अरोड़ा की रिपोर्ट)
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