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रक्षाबंधन तक अयोध्या के मंदिरों में सीता-राम को झूले पर बिठाकर झुलाने की परंपरा, गीत संगीत का आयोजन

अयोध्या का पारंपरिक उत्सव मणिपर्वत पर होता है. इस सावन उत्सव में अयोध्या के सभी मंदिरों से राम-सीता के विग्रह को मणिपर्वत लाया जाता है और उनको वहाँ झूले में झुलाया जाता है.

Ayodhya’s sawan jhoola Ayodhya’s sawan jhoola
हाइलाइट्स
  • अयोध्या का पारंपरिक उत्सव मणिपर्वत पर होता है.

दो साल बाद अयोध्या के मणिपर्वत का झूला उत्सव इस बार सम्पन्न हुआ. तीज के दिन होने वाले मणि पर्वत झूला उत्सव से अयोध्या के हर मठ मंदिर में झूला पड़ जाता है. कोविड के संकटकाल की वजह से इसका आयोजन दो साल नहीं हो पाया था. तीज से रक्षाबंधन तक चलने वाले सावन झूला उत्सव के दौरान लाखों की संख्या में लोग अयोध्या आते हैं और मेला लगता है. सावन झूला उत्सव में अयोध्या के मंदिरों में झूला डाला जाता है जिसमें राम और सीता को झूला झुलाने की परंपरा है.

रक्षाबंधन तक सभी मंदिरों में आयोजन 

अयोध्या का पारंपरिक उत्सव मणिपर्वत पर होता है. इस सावन उत्सव में अयोध्या के सभी मंदिरों से राम-सीता के विग्रह को मणिपर्वत लाया जाता है और उनको वहां झूले में झुलाया जाता है. रात में सभी विग्रह को उनके मंदिरों में वापस ले जाते हैं. उसके बाद से अयोध्या में झूलनोत्सव की शुरुआत हो जाती है जो राखी पूर्णिमा तक होता है. राम सीता के सभी विग्रहों को मंदिरों में वापस ले जाकर रक्षाबंधन तक हर दिन झूले में झुलाया जाता है. इस अवसर पर अयोध्या में मणिपर्वत के आस पास बड़ा मेला लगता है. इसमें हर साल लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं.

रक्षाबंधन तक सीता-राम के विग्रह को मंदिर के प्रांगण में झूले में बिठाया जाता है. उनको कजरी सुनायी जाती है. साधु संत भी राम और सीता की पूजा में विभिन्न आयोजन करते हैं. कई कलाकार इस मौके पर सीता राम के सामने गायन और नृत्य प्रस्तुत करते हैं. यहां अवधी में झूला गीत की परंपरा है.
 

Ayodhya’s sawan jhoola
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माँ सीता के झूला झूलने की इच्छा जताने के बाद शुरू हुआ था उत्सव 

कैसे शुरू हुआ ये पारंपरिक उत्सव इसको लेकर मान्यता है कि ये रामायण कालीन है. कहा जाता है कि जब जानकी विवाह के बाद अयोध्या आईं तो उन्होंने राम से सावन में झूला झूलने की इच्छा जताई.अपने मायके जनकपुर में पर्वतों पर जानकी अपनी सखियों के साथ झूला झूलती थीं लेकिन अयोध्या में पर्वत नहीं थे. तब सीता के झूला झूलने के लिए उनके पिता राजा जनक ने मणियों का एक पर्वत बना दिया. फिर उसमें झूला पड़ा और सीता ने अपनी सखियों संग झूला झूला. इसलिए ये झूलनोत्सव राम और सीता के प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है. तभी से मणिपर्वत का झूलनोत्सव प्रचलित हो गया. उसी तिथि से अयोध्या में मणिपर्वत का झूला उत्सव तीज के दिन होता है. उसके बाद जो आस पास सभी जगह रक्षाबंधन तक इस परम्परा का निर्वहन किया जाता है.

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मणिपर्वत पर बड़े पेड़ों को संख्या कम होने पर इस बार राम और सीता को सिंहासन रूपी झूले में भी झुलाया गया. विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा कहते हैं ‘सावन मास का विशेष महत्व है. ऐसे में अयोध्या का झूला उत्सव श्रीराम और माँ सीता को भी आनंदित करता है. ये प्राचीन परंपरा यहां आने वालों को मंदिरों से मठों से और साधु संतों से जुड़ने का एक अवसर भी देता है.’