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मिथिलांचल में भाई-बहन के अद्भुत प्रेम का पर्व सामा-चकेवा की धूम, जानें क्या है महत्व?

मिथिलांचल में इन दिनों सामा-चकेवा की धूम है. सामा-चकेवा का त्यौहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. जहां एक तरफ ये त्योहार भाई-बहन के प्रेम और स्नेह को मजबूत करता है. वहीं हम सभी को ये भी सीखता कि समाज में किसी के बारे में झूठी अफवाह फैलाना बुरी बात है.

भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है सामा चकेवा भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है सामा चकेवा
हाइलाइट्स
  • महापर्व छठ के बाद शुरू होता है ये त्योहार

  • भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है ये त्योहार

मिथिलांचल अपनी मीठी भाषा के साथ सांस्कृतिक समृद्धि के लिए भी जाना जाता है. इन दिनों मिथिलांचल की गलियों में सामा-चकेवा पर्व की धूम मची हुई है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णिमा तक चलने वाले इस ग्रामीण लोक पर्व की तैयारी भाई दूज से ही शुरू हो जाती है. बुजुर्ग महिलाओं के अलावा लड़कियां अपनी सहेली संग सामा-चकेवा के रंग में रंग जाती हैं. 

क्या है सामा-चकेवा?
ऐसा माना जाता है कि सामा-चकेवा मिथिला की पहचान में शामिल है. मिथिला की बेटियां अपने मायके आकर इस पर्व को मनाती हैं. मिथिला के ग्रामीण और शहरी इलाकों में इस पर्व की काफी धूम है. शास्त्रों की मानें तो सामा-चकेवा पर्व भगवान कृष्ण की बेटी सामा और बेटे चकेवा के प्रेम पर आधारित है. महापर्व छठ के खत्म होने के बाद भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक इस पर्व की शुरुआत होती है. छठ के दूसरे दिन से ही इस पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं.

क्यों मनाते है सामा-चकेवा?
शास्त्रों में कहा जाता है कि सामा भगवान कृष्ण की पुत्री थी, जिन पर प्रेम प्रसंग का गलत आरोप लगाया गया था. शास्त्रों के मुताबिक कृष्ण के दरबार में चूरक नाम का मंत्री था, जिसने सामा के बारे में झूठी अफवाह फैला रखी थी. क्रोध में आकर भगवान कृष्ण अपनी पुत्री को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया. लेकिन कृष्ण के पुत्र चकेवा ने कठोर तपस्या करके अपनी बहन को श्राप से मुक्त करवाया. उसके बाद से ही सामा-चकेवा का पर्व मनाया जाने लगा.

क्या है इस त्योहार का महत्व?
इस पर्व को मनाने के लिए महिलाएं, बेटियां अपने रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों और सहेलियों के साथ टोली बनाकर मिट्टी से बने सामा-चकेवा की मूर्तियों को डाले में डालती हैं. उसके बाद लोक गीत गाकर अपने भाइयों की सलामती की कामना करती हैं. सामा-चकेवा का पर्व भाई-बहन के अनूठे स्नेह और प्यार का पर्व है. जो भाई-बहनों में ये संदेश देता है कि किसी के बारे में झूठी अफवाह ना फैलाएं. 

कैसे मनाते हैं सामा-चकेवा?
सामा - चकेवा का त्योहार मनाने के लिए महिलाएं अपने सगे संबंधी व सहेलियों के साथ टोली बनाकर मिट्टी से बनी सामा-चकेवा की मूर्तियों को डाला में सजाती हैं. फिर लोक गीत गाकर अपने भाइयों की सलामती की कामना करती हैं. सामा-चकेवा का त्योहार भाई-बहन के प्रेम और स्नेह को जहां मजबूत करता है. वहीं हम सभी को ये सीख भी देता है कि समाज में किसी के बारे में झूठी अफवाह फैलाना बुरी बात है. लगभग 10 दिनों तक पूरे विधि विधान और गीत नाद के साथ सामा-चकेवा खेलने के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को धान की नयी फसल से तैयार चूड़ा और दही खिलाती हैं. उसके बाद सामा-चकेवा की मूर्तियों को जाते हुए खेतों में विसर्जित कर देते हैं. विसर्जन के समय महिलाएं उदास होकर समदाउन का गीत गाती हैं. सामा को फिर अगले बरस आने का न्योता देकर अपने-अपने घर लौट जाती हैं.